फेरनान्यो पतोलेयो आल्वा
फेरनान्यो पतोलेयो आल्वा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 450 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री अवनींद्र्कुमार विद्यालंकार |
आल्वा, फेरनान्यो पतोलेयो (1507-82) स्पेनी सेनापति, राजनीतिज्ञ और डयूक। जन्म पीएद्राहिटा में; मृत्यु थोमर में। इसके दादा फ्रेद्रिक ने इसकी शिक्षा दी। सात साल की आयु में दादा के साथ नवर्रा की लड़ाई में गया। 16 साल की आयु में स्पेनी सेना में भी भरती हुआ। इसने फुएनतारिया जीता और उसका गवर्नर बनाया गया। 1529-1532 में सम्राट् चार्ल्स पंचम के साथ इटली में रहा। हंगरी में तुर्को से लड़ा और यश कमाया। 1535 में त्यूनीशिया की विजय को भेजी सेना का सेनापति बनाया गया और सफल हुआ। 1536 में मार्सेई के घेरे में भाग लिया, पर विफल रहा। लेकिन दुर्दांत महत्वाकांक्षा के कारण ऊँचा ही उठता गया। अल्जीरिया विजय के लिए जा रही स्पेनी सेना का सेनापति बना, किंतु यहां इसको अपयश ही मिला। सेना का इसने पुनस्संगठन किया।
प्राय: अजेय होकर भी वह अदूरदर्शी, अयोग्य और असहिष्ण् शासक एवं राजनीतिज्ञ था। फलत: इसकी विजयें व्यर्थ हो गईं। लूथरीय सेनाओं के साथ उसने जो बर्बरता बरती उससे जर्मनी और नेदरलैंड में स्पेनियों के प्रति घृणा हो गई।
रक्तपरिषद् (कौंसिल ऑव ब्लड) नेे राजद्रोह के संदेह मात्र में और प्रोटेस्टेंटों से सहानुभूति रखने के आरोप में ही पाँच सालों में 1,800 को फाँसी दी, 10,000 को देश से निर्वासित कर दिया। परंतु कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट का भेद न कर सब पर समान रूप से 'एलक्यूबेला' (एक स्पेनी कर) लगाया। इससे हालैंड और जीलैंड में असंतोष की ज्वाला भड़क उठी और स्पेनी शासन के प्रतिरोध की भावना उग्र हो गई। इसी समय स्पेनी बेड़ा भी नष्ट हो गया। इससे भी इसकी शक्ति कम हो गई। स्वास्थ्य नष्ट हो गया। इससे भी इसकी शक्ति कम हो गई। स्वास्थ्य नष्ट हो जाने के कारण स्पेन वापस बुलाने की माँग की, जो मान ली गई।
इटली में पोप की राजनीतिक सत्ता को फ्रांस की मददके बावजूद अंत करने का (1559) श्रेय आल्वा को ही है। फिलिप द्वितीय का यह आठ साल परराष्ट्रमंत्री रहा। लेकिन राजा की इच्छा के प्रतिकूल अपने पुत्र के विवाह में मदद देकर राजकोप भी भोगा और 1579 में निर्वासित कर दिया गया। उजेदो के किले में जब वह दिन बिता रहा था, तब पुर्तगाल में विद्रोह हो गया। इसको दबाने के लिए 1580 में उसको बुलाना पड़ा। आठ सप्ताहों में पुर्तगाल की उसने विजय कर ली। दो साल बाद 1582 में मर गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ