महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 102 श्लोक 16-26

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द्वयधिकशततम (102) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-26 का हिन्दी अनुवाद

जहां सदा सत्य ही बोला जाता है और निर्बल मनुष्य ही बलवान से अपने प्रति किये गये अन्याय का बदला लेते हैं, मनुष्यों को संयम में रखने वाली यमराज की वही पुरी संयमनी नाम से प्रसिद्व है। वहीं मैं तुमसे अपना हाथी वसूल करूंगा । धृतराष्ट्र ने कहा- महर्षे। जो मदमत्त मनुष्य बड़ी वहन, माता और पिता के साथ शत्रु के समान वर्ताव करते हैं, उन्हीं के लिये यह यमराज का लोक है, परंतु धृतराष्ट्र वहां जाने वाला नहीं है । गौतम ने कहा- महान सौभाग्यशाली मंदाकिनी नदी राजा कुबेर के नगर में विराज रही है, जहां नागों का ही प्रवेश होना संभव है। गन्धर्व, यक्ष और अप्सराऐं उस मंदाकिनी का सदा सेवन करती हैं; वहां जाकर मैं तुमसे अपना हाथी वसूल करूंगा। धृतराष्ट्र बोले- जो सदा अतिथियों की सेवा में तत्पर रहकर उत्तम व्रत का पालन करने वाले हैं, जो लोग ब्राह्माण का आश्रय दान करते हैं, तथा जो अपने आश्रितों को बांटकर शेष अन्न का भोजन करते हैं, वे ही लोग उस मंदाकिनी तट की शोभा बढाते हैं (राजा धृतराष्ट्र को तो वहां भी नहीं जाना है) । गौतम बोले- मेरू पर्वत के सामने जो रमणीय वन शोभा पाता है, जहां सुन्दर फूलों की छटा छायी रहती है और किन्नरियों के मधुर गीत गूंजते रहते हैं, जहां देखने में सुन्दर विशाल जम्बू वृ़क्ष शोभा पाता है, वहां पहुंच कर भी मैं तुमसे अपना हाथी वसूल लूंगा । धृतराष्‍ट्र बोले- महर्षे। जो ब्राह्माण कोमल स्‍वभाव, सत्‍यशील, अनेक शास्‍त्रों के विद्वान तथा सम्‍पूर्ण भूतों को प्‍यार करने वाले हैं, जो इतिहास और पुराण का अध्‍ययन करते तथा ब्राह्माण का मधुर भोजन अर्पित करते हैं; ऐसे लोगों के लिये यह पूर्वोक्‍त लोक है; परंतु राजा धृतराष्‍ट्र वहां भी जाने वाला नहीं है। आपको जो-जो स्‍थान विदित हैं, उन सबका यहां वर्णन कर जाइये। मैं जाने के लिये उतावला हूं। यह देखिये, मैं चला । गौतम ने कहा- सुंदर-सुंदर फूलों से सुशोभित, किन्‍नरराजों से सेवित तथा नारद, गंधर्व और अप्‍सराओं को सर्वदा प्रिय जो नंदन नामक वन है, वहां जाकर भी मैं तुमसे अपना हाथी वापस लूंगा । धृतराष्‍ट्र बोले- महर्षे। जो लोग नृत्‍य और गीत में निपुण हैं; कभी किसी से कुछ याचना नहीं करते हैं तथा सदा सज्‍जनों के साथ विचरण करते हैं, ऐसे लोगों के लिये ही यह नंदन वन जगत है; परंतु राजा धृतराष्‍ट्र वहां भी जाना वाला नहीं है । गौतम बोले- नरेन्‍द्र। जहां रमणीय आकृति वाले उत्‍तर कुरु के निवासी अपूर्व शोभा पाते हैं, देवताओं के साथ रहकर आनन्‍द भोगते हैं, अग्नि, जल और पर्वत से उत्‍पन्‍न हुए दिव्‍य मानव जिस देश में निवास करते हैं, जहां इन्‍द्र संपूर्ण कमानाओं की वर्षा करते हैं, जहां की स्त्रियां इच्‍छानुसार विचरने वाली होती हैं तथा जहां स्त्रियों और पुरुषों में ईर्ष्‍या का सवर्था अभाव है, वहां जाकर मैं तुमसे अपना हाथी वसूल लूंगा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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