महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 111 श्लोक 96-114

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एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 96-114 का हिन्दी अनुवाद

भारत। पंद्रह वर्षों तक वह कीड़े की योनि में रहता है। फिर गर्भ में आकर वहीं गर्भस्थ षिषु की दशा में ही मर जाता है । इस तरह कई सौ बार वह जीव गर्भ की यंत्रणा भोगता है। तदनन्तर बहुत बार जन्म लेेने के पश्चात तिर्यक योनि में उत्पन्न होता है । इस योनियों में बहुत वर्षों तक दुःख भोगने के पश्‍चात वह फिर मनुष्य योनि में न आकर दीर्घकाल के लिये कछुआ हो जाता है । दुर्बधि मनुष्य दही की चोरी करके बगला होता है, कच्ची मछलियों की चोरी करके वह कारण्डव नामक जल पक्षी होता है और मधु का अपहरण करके वह डांस (मच्छर) की योनि में जन्म लेता है । फल, मूल अथवा पुए की चोरी करने पर मनुष्य को चींटी की योनि में जन्म लेना पड़ता है। निष्पाव (मटर या उड़द) की चोरी करने बाला हरगोलक नामक कीड़ा होता है । खीर की चोरी करने वाला तीतर की योनि में जन्म लेता है। आटे का पुआ चुराकर मनुष्य मरने के बाद उल्लू होता है । लोहे की चोरी करने वाला मूर्ख मानव कौवा होता है। कांस की चोरी करके खोटी बुद्वि वाला मनुष्य हारित नामक पक्षी होता है । चांदी का बर्तन चुराने वाला कबूतर होता है और सुवर्णमय भाण्ड की चोरी करके मनुष्य को कीड़े की योनि में जन्म लेना पड़़ता है । ऊनी वस्त्र चुराने वाला कृकल (गिरगिट) की योनि में जन्म लेता है। कौशेय (रेशमी) वस्त्र की चोरी करने पर मनुष्य बत्तक होता है । अंषुक (महीन कपड़े) की चोरी करके मनुष्य तोते का जन्म पाता है तथा दुकूल (उत्तरीय वस्त्र) की चोरी करके मृत्यु को प्राप्त हुआ मानव हंस की योनि में जन्म लेता है । सूती वस्त्र की चोरी करके मरा हुआ मनुष्य क्रोंच पक्षी की योनि में जन्म लेता है। भारत। पाटम्बर, भेड़ के ऊन का बना हुआ तथा क्षोम (रेशमी) वस्त्र चुराने वाला मनुष्य खरगोष नामक जंतु होता है । अनेक प्रकार के रंगों की चोरी करके मृत्यु को प्राप्त हुआ पुरूष मोर होता है। लाल कपड़े चुराने वाला मनुष्य चकोर की योनि में जन्म लेता है । राजन। जो मनुष्य लोभ के वशीभूत होकर वर्णक (अनुलेपन) आदि तथा चंदन की चोरी करता है, वह छछुन्दर होता है। उस योनि में वह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहता है । फिर अधर्म का क्षय हो जाने पर वह मनुष्य का जन्म पाता है। दूध चुराने वाली स्त्री बगुली होती है । राजन। जो मनुष्य मोह युक्त होकर तेल चुराता है, वह मरने पर तेलपाई नामक कीड़ा होता है । जो नीच मनुष्य धन के लोभ से अथवा शत्रुता के कारण हथियार लेकर निहत्थे पुरूष को मार डालता है, वह अपनी मृत्यु के बाद गदहे की योनि में जन्म पाता है । गदहा होकर वह दो वर्षों तक जीवित रहता है। फिर शस्त्र से उसका वध होता है। इस प्रकार मरकर वह मृग की योनि में जन्म लेता और हिंसकों के भय से सदा उद्वेग्न रहता है । मृग होकर वह साल भर में ही शस्त्र द्वारा मारा जाता है। मरने पर मत्स्य होता है, फिर वह जाल से बंधता है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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