महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 143 श्लोक 55-59

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त्रिचत्वारिंशदधिकशततम (143) अध्याय :अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रिचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 55-59 का हिन्दी अनुवाद

अपना कल्याण चाहने वाले ब्राह्मण को उचित है कि वह सज्जनों के मार्ग का अवलम्बन करके सदा अतिथि और पोष्यवर्ग को भोजन कराने के बाद अन्न ग्रहण करे, वेदोक्त पथ का आश्रय लेकर उत्तम बर्ताव करे। गृहस्थ ब्राह्मण घर में रहकर प्रतिदिन संहिता का पाठ और शास्त्रों का स्वाध्याय करे। अध्ययन को जीविका का साधन न बनावे। इस प्रकार जो ब्राह्मण सन्मार्ग पर स्थित हो सत्पथ का ही अनुसरण करता है तथा अग्निहोत्र एवं स्वाध्यायपूर्वक जीवन बिताता है, वह ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है । देवि! शुचिस्मिते! मनुष्य को चाहिये कि वह ब्राह्मणत्व को पाकर मन और इन्द्रियों को संयम में रखते हुए योनि, प्रतिग्रह और दान की शुद्धि एवं सत्कर्मों द्वारा उसकी रक्षा करे। गिरिराजकुमारी! शूद्र धर्माचरण करने से जिस प्रकार ब्राह्मणत्व को प्राप्त करता है तथा ब्राह्मण स्वधर्म का त्याग करके जाति से भ्रष्ट होकर जिस प्रकार शूद्र हो जाता है, यह गूढ़ रहस्य की बात मैंने तुम्हें बतला दी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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