महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 293-306

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चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 293-306 का हिन्दी अनुवाद

आपके मस्‍तक पर उंचा छत्र तना है। आप सुन्‍दर किरीट धारण करते हैं। अर्द्धनारीश्‍वर रूप में आपके आधे अंग में ही हार, आधे में ही केयूर और आधे अंग के ही कान में कुण्‍डल शोभा पाता है। आपको नमस्‍कार है । आप वायु के समान वेगशाली हैं । आपको नमस्‍कार है । आप ही मेरे आराध्‍यदेव हैं । आपको बारंबार नमस्‍कार है। आप ही सुरेन्‍द्र, मुनीन्‍द्र और महेन्‍द्र हैं । आपको नमस्‍कार है । आप अपने आधे अंग को कमलों की माला से अलंकृत करते हैं और आधे में उत्‍पलों से विभूषित होते हैं । आधे अंग में चन्‍द का लेप लगाते हैं तो आधे शरीर में फूलों का गजरा और सुगन्धित अंगराग धारण करते हैं । ऐसे अर्द्धनारीश्‍वर रूप में आपको नमस्‍कार है । आपके मुख सुर्य के समान तेजस्‍वी हैं । सूर्य आपके नेत्र हैं । आपकी अंगकान्ति भी सूर्य के ही समान है तथा आप अधिक सादृश्‍य के कारण सूर्य की प्रतिमा-से जान पड़ते हैं । आप सोमस्‍वरूप हैं । आपकी आकृति बड़ी सौम्‍य है । आप सौम्‍य मुख धारण करते हैं । आपका रूप भी सौम्‍य है । आप प्रमुख देवता हैं और सौम्‍य दन्‍तावली से विभूषित होते हैं । आपको नमस्‍कार है । आप हरिहररूप होने के कारण आधे शरीर से सांवले और आधे से गोरे हैं । आधे शरीर में पीताम्‍बर धारण करते हैं और आधे में श्‍वेत वस्‍त्र वस्‍त्र पहनते हैं । आपको नमस्‍कार है । आपके आधे शरीर में नारी के अवयव हैं और आधे में नर के । आप स्‍त्री-पुरूष रूप हैं । आपको नमस्‍कार है । आप कभी बैल पर सवार होते हैं और कभी गजराज की पीठ पर बैठकर यात्रा करते हैं । आप दुर्गम हैं । आपको नमस्‍कार है, जो दुसरों के लिये अगम्‍य है, वहां भी आपकी गति है । आपको नमस्‍कार है । प्रथमगण आपकी महिमा गान करते हैं । आप अपने पार्षदों की मण्‍डली में रत रहते हैं आपके प्रत्‍येक मार्ग पर प्रथमण आपके पीछे-पीछे चलते हैं। आपकी सेवा ही गणों का नित्‍य-व्रत है । आपको नमस्‍कार है । आपकी कान्ति श्‍वेत बादलों के समान है । आपकी प्रभा संध्‍याकालीन अरूणराग के समान है । आपका कोई निश्चित नाम नहीं है । आप सदा स्‍वरूप में ही स्थित रहते हैं । आपको नमस्‍कार है । आपका सुन्‍दर वस्‍त्र लाल रंग का है । आप लाल सूत्र धारण करते हैं । लाल रंग की माला से आपकी विचित्र शोभा होती है। आप रक्‍त वस्‍त्र धारी रूद्र देव को नमस्‍कार है । आपका मस्‍तक दिव्‍य मणि से विभूषित है । आप अपने ललाट में अर्द्धचन्‍द्र का आभूषण धारण करते हैं। आपका सिर विचित्र मणि की प्रभा से प्रकाशमान है और आप आठ पुष्‍प धारण करते हैं । आपके मुख और नेत्र में अग्नि का निवास है । आपके नेत्र सहस्‍त्रों चन्‍द्रमाओं के समान प्रकाशित हैं । आप अग्नि स्‍वरूप, कमनीय विग्रह और दुर्गम गहन (वन) रूप हैं । आपको नमस्‍कार है । चन्‍द्रमा और सूर्य के रूप में आप आकशचारी देवता को नमस्‍कार है । जहां गौएं चरती हैं उस स्‍थान से आप विशेष प्रेम रखते हैं । आप पृथ्‍वी पर विचरने वाले और त्रिभुवन रूप हैं। अनन्‍त एवं शिवस्‍वरूप हैं । आपको नमस्‍कार है । आप दिगम्‍बर हैं । आपको नमस्‍कार है । आप सबके आवास-स्‍थान और सुन्‍दर वस्‍त्र धारण करने वाले हैं । सम्‍पूर्ण जगत् आप में ही निवास करता है । आपको सम्‍पूर्ण सिद्धियों का सुख सुलभ है । आपको नमस्‍कार है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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