महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 123-137

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सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 123-137 का हिन्दी अनुवाद

762 समाम्नायः-वेदस्वरूप, 763 असमाम्नायः-वेदभिन्न, स्मृति, इतिहास, पुराण और आगमरूप, 764 तीर्थदेवः-सम्पूर्ण तीर्थों के देवस्वरूप, 765 महारथः-त्रिपुरदाह के समय पृथ्वीरूपी विशाल रथ पर आरूढ़ होने वाले, 766 निर्जीवः-जड-प्रपंचस्वरूप, 767 जीवनः-जीवनदाता, 768 मन्त्रः-प्रणव आदि मन्त्रस्वरूप, 769शुभाक्षः-मंगलमयी दृष्टिवाले, 770 बहुकर्कषः-संहारकालमें अत्यन्त कठोर स्वभाववाले। 771 रत्नप्रभूतः-अनेक रत्नों के भण्डाररूप, 772 रत्नांगः-रत्नमय अंगवाले, 773 महार्णव-निपानवित्-महासागररूपी निपानों हौजों-को जाननेवाले, 774 मूलम्-संसाररूपी वृक्ष के कारण, 775 विशालः-अत्यन्त शोभायमान, 776अमृतः-अमृतस्व्रूप, 777 व्यक्ताव्यक्तः-साकार-निराकार स्वरूप, 778 तपोनिधिः-तपस्या के भण्डार। 779 आरोहणः-परम पदपर आरूढ़ होने के द्वारस्वरूप, 780 अधिरोहः-परम पदपर आरूढ़, 781शीलधारी-सुशीलसम्पन्न, 782 महायशा-महान् श्यषसे सम्पन्न, 783 सेनाकल्पः-सेना के आभूषणरूप, 784 महाकल्पः-बहुमूल्य अलंकारों से अलंकृत, 785 योगः-चितवृतियों के निरोधस्वरूप, 786 युगकरः-युगप्रवर्तक, 787 हरिः-भक्तों का दुःख हर लेनेवाले। 788 युगरूपः-युगस्वरूप, 789 महारूपः-महानपवाले, 790 महानागहनः-विशालकाय गजासुर का वध करनेवाले, 791 अवधः- मृत्युरहित, 792 न्यायनिर्वपणः-न्यायोचित दान करनेवाले, 793 पादः-शरण लेनेयोग्य पद्यते भक्तैः इति पादः, 794 पण्डितः-ज्ञानी, 795 अचलोपमः-पर्वत के समान अवचिल। 796 बहुमालः-बहुत-सी मालाएं धारण करनेवाले, 797 महामालः-महती-पैरोंतक लटकने-वाली माला धारण करनेवाले, 798शशी हरसुलोचनः-चन्द्रमा के समान सौम्य दृष्टियुक्त महादवे, 799 विस्तारो लवणः कूपः-विस्तृत क्षारसमुद्रस्वरूप, 800 त्रियुगः-सत्ययुग, त्रेता और द्वापर त्रिविध युगस्वरूप, 801 सफलोलदयः-जिसका अवताररूपमें प्रकट होना सफल हैं। 802 त्रिलोचनः-त्रिनेत्रधारी, 803 विषण्णंगः-अंगरहित अर्थात् सर्वथा निराकार, 804 मणिविद्धः-मणिका कुण्डल पहनने के लिये, छिदे हुए कर्णवाले, 805 जटाधरः-जटाधारी, 806 बिन्दुः-अनुस्वाररूप, 807 विसर्गः-विसर्जनीयस्वरूप, 808 सुमुखः-सुन्दर मुखवाले, 809 ष्षरः-अनुस्वाररूप, 810 सर्वायुधः-सम्पूर्ण आयुधों से युक्त, 811 सहः-सहनशील। 812 निवेदनः-सब प्रकार की वृति से रहित ज्ञान वाले, 813 सुखाजातः-सब वृतियों का लय होने पर सुखरूपसे प्रकट होने वाले, 814 सुगन्धारः- उतम गन्धसे युक्त, 815 महाधनुः-पिनाक नामक विषाल धनुष धारण करनेवाले, 816 भगवान गन्धपाली-उतम गन्ध की रक्षा करनेवाले भगवान्, 817 सर्वकर्मणामुत्थानः-समस्त कर्मों के उत्थानस्वरूप। 818 मन्थानो बहुलो वायुः-विश्व को मथ डालनेमें समर्थ प्रलयकाल की महान् वायुस्वरूप, 819 सकलः-सम्पूर्ण कलाओंसे युक्त, 820 सर्वलोचनः-सबके द्रष्टा, 821 तलस्तालः-हाथ पर ही ताल देनेवाले, 822 करस्थली-हाथोंसे ही भोजनपात्र का काम लेनेवाले, 823संहननः-सुदृढ़ शरीरवाले, 824 महान्-श्रेष्ठतम्। 825 छत्रम्-छत्र के समान पाप-तापसे सुरक्षित रखनेवाले, 826 सुच्छत्रः-उतम छत्रस्वरूप, 827 विख्यातो लोकः- सुप्रसिद्ध लोकस्वरूप, 828 सर्वाश्रयः क्रमः-सबके आधारभूत गति, 829 मुण्डः-मुण्डित-मस्तक, 830 विरूपः-विकट रूपवाले, 831 विकृतः-सम्पूर्ण विपरीत क्रियाओं को धारण करनेवाले, 832 दण्डी-दण्डधारी, 833 कुण्डी-खप्परधारी, 834 विकुर्वणः-क्रियाद्वारा अलभ्य। 835 हर्यक्षः-सिंहस्वरूप, 836 ककुभः-सम्पूर्ण दिशास्वरूप, 837 वज्री-वज्रधारी, 838शतजिहवः-सैकड़ो जिहवावाले, 839 सहस्त्रपात् सहस्त्रमूर्धा-सहस्त्रों पैर और मस्तकवाले, 840 देवेन्द्रः-देवताओं के राजा, 841 सर्वदेवमयः-सम्पूर्ण देवस्वरूप, 842 गुरूः-सब के ज्ञानदाता। 843 सहस्त्रबाहुः-सहस्त्रों भुजाओंवाले, 844 सर्वांगः- समस्त अंगोसे सम्पन्न, 845शरण्यः-षरण लेने के योग्य, 846 सर्वलोककृत्-सम्पूर्ण लोकों के उत्पन्न करनेवाले, 847 पवित्रम्-परम पावन, 848 त्रिककुन्मन्त्रः-त्रिपदा गायत्रीरूप, 849 कनिष्ठः- अदिति के पुत्रोंमें छोटे, वामनरूपधारी विष्णु, 850 कृष्णपिगंलः-श्याम-गैरहरि-हर-मूर्ति।851 ब्रहादण्डविनिर्माता-ब्रहादण्ड का निर्माण करनेवाले, 852शतध्नीपाषशक्तिमान्-शतध्नी, पाश और शक्तिसे युक्त, 853 पद्यगर्भः-ब्रहास्वरूप, 854 महागर्भः-जगत्रूप गर्भ को धारण करने वाले होनसे महागर्भ, 855 ब्रहागर्भः-वेदको उदरमें धारण करनेवाले, 856 जलोभ्दवः-एकार्णव के जल में प्रकट होनेवाले। 857 गभस्तिः-सूर्यस्वरूप, 858 ब्रहाकृत्-वेदोंका आविष्कार करनेवाले, 859 ब्रहा-वेदाध्यायी, 860 ब्रहावित्-वेदार्थवेता, 861 ब्राहाणः-ब्रहानिष्ठ, 862 गतिः-ब्रहानिष्ठोंकी परमगति, 863 अनत्नरूपः-अनन्त रूपवाले, 864 नैकात्मा-अनेक शरीरधारी, 865 तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः-ब्रहाजी की अपेक्षा प्रचण्ड तेजस्वी। 866आत्मा-देश-काल-वस्तुकृत उपाधिसे अतीत स्वरूपवाले, 867 पशुपतिः-जीवोंके स्वामी, 868 वातरंहाः-वायुके समान वेगशाली, 869 मनोजवः-मनके समान वेगशाली, 870 चन्दनी-चन्दनचर्चित अंगवाले, 871 पद्यनालाग्रः-पद्यनाल के मूल विष्णुस्वरूप, 872 सुरभ्युतरणः- सुरभि को नीचे उतारनेवाले, 873 नरः-पुरूषरूप। 874 कर्णिकारमहास्त्रग्वी-करेनकी बहुत बड़ी माला धारण करनेवाले, 875 नीलमौलिः-मस्तकपर नीलमणिमय मुकुट धारण करनेवाले, 876 पिनाकधृत्-पिनाक धनुष को धारण करने वाले, 877 उमापतिः-उमा-ब्रहाविद्याके स्वामी, 878 उमाकान्तः-पार्वती के प्राण-प्रियतम, 879 जाहवीधृत्-गंगा को मस्तकपर धारण करनेवाले, 880 उमाधवः-पार्वतीपति।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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