महाभारत आदि पर्व अध्याय 114 श्लोक 18-35
चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
मैंने कभी हास-परिहास के समय भी झूठी बात मुंह से नहीं निकाली है। फिर वरदान आदि अन्य अवसरों पर कही हुई मेरी बात झूठी कैसे हो सकती है। तुम शीघ्र ही सौ मटके (कुण्ड) तैयार कराओ और उन्हें घी से भरवा दो। फिर अत्यन्त गुप्त स्थान में रखकर उनकी रक्षा की भी पूरी व्यवस्था करो। इस मांसपिण्डों को ठंडे जल से सींचो। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! उस समय सींचे जाने पर उस मांसपिण्ड के सौ टुकड़े हो गये। वे अलग-अलग अंगूठे के पोरु के बरावर सौ गर्भों के रुप में परिणित हो गये। राजन् ! काल के परिवर्तन से क्रमश: मांसपिण्ड के यथायोग्य पूरे एक सौ एक भाग हुए। तत्पश्चात् गान्धारी ने उन सभी गर्भों को उन पर्वोक्त कुण्डों में रक्खा। वे सभी कुण्ड अत्यन्त गुप्त स्थानों में रक्खे हुए थे। उनकी रक्षा की ठीक-ठीक व्यवस्था कर दी गयी। तब भगवान् व्यास ने गान्धारी से कहा- ‘इतने ही दिन अर्थात पूरे दो वर्षों तक प्रतीक्षा करने के बाद इन कुण्डों का ढक्कन खोल देना चाहिये’। यों कहकर और पूर्वोक्त प्रकार से रक्षा की व्यवस्था कराकर परम बुद्धिमान् भगवान् व्यास हिमालय पर्वत पर तपस्या के लिये चले गये। तदनन्तर दो वर्ष बीतने पर जिस क्रम से वे गर्भ उन कुण्डों में स्थापित किये गये थे, उसी क्रम से उनमें सबसे पहले राजा दुर्योधन उत्पन्न हुआ। जन्मकाल के प्रमाण से राजा युधिष्ठिर उससे भी ज्येष्ठ थे। दुर्योधन के जन्म का समाचार परम बुद्धिमान् भीष्म तथा विदुरजी को बतया गया। जिस दिन दुर्घर्ष वीर दुर्योधन का जन्म हुआ, उसी दिन परम पराक्रमी महाबाहु भीमसेन भी उत्पन्न हुए। राजन् ! धृतराष्ट्र का वह पुत्र जन्म लेते ही गदहे के रेंकने की सी आवाज में रोने-चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनकर बदले में दूसरे गदहे भी रेंकने लगे। गीध, गीदड़ और कौए भी कोलाहल करने लगे। बड़े जोर की आंधी चलने लगी। सम्पूर्ण दिशाओं में दाह-सा होने लगा। राजन् ! तब राजा धृतराष्ट्र भयभीत-से हो उठे और बहुत-से ब्राह्मणों को, भीष्मजी और विदुरजी को, दूसरे-दूसरे सुहृदों तथा समस्त कुरुवंशियों को अपने समीप बुलवाकर उन-से इस प्रकार बोले- ‘आदरणीय गुरुजनों ! हमारे कुल की कीर्ति बढ़ाने वाले राजकुमार युधिष्ठर सबसे ज्येष्ठ हैं। वे अपने गुणों से राज्य को पाने के अधिकारी हो चुके हैं। उनके विषय में हमें कुछ नहीं कहना है। ‘किंतु उनके बाद मेरा यह पुत्र ही ज्येष्ठ है। क्या यह भी राजा बन सकेगा? इस बात पर विचार करके आप लोग ठीक-ठीक बतायें। जो बात अवश्य होने वाली है, उसे स्पष्ट कहें’। जनमेजय ! धृतराष्ट्र की यह बात समाप्त होते ही चारों दिशाओं में भयंकर मांसाहारी जीव गर्जना करने लगे। गीदड़ अमंगल सूचक बोली बोलने लगे। राजन् ! सब ओर होने वाले उन भयानक अपशकुनों को लक्ष्य करके ब्राह्मण लोग तथा परम बुद्धिमान विदुरजी इस प्रकार बोले- नरश्रेष्ठ नरेश्वर ! आपके ज्येष्ठ पुत्र के जन्म लेने पर जिस प्रकार ये भयंकर अपशकुन प्रकट हो रहे हैं, उनसे स्पष्ट जान पड़ता है कि आपका यह पुत्र समूचे कुल का संहार करने वाला होगा। यदि इसका त्याग कर दिया जाय तो सब विघ्नों की शान्ति हो जायगी और यदि इसकी रक्षा की गयी तो आगे चलकर बड़ा भारी उपद्रव खड़ा होगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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