महाभारत आदि पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-26

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पञ्चषष्टितम (65) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद

मरीचि आदि महषिर्यों तथा अदिति आदि दक्ष कन्याओं के वंश का विवरण

वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! देवताओं सहित इन्द्र ने भगवान विष्णु के साथ स्वर्ग एवं बैकुण्ठ से पृथ्वी पर अंशतः अवतार ग्रहण करने के सम्बन्ध में कुछ सलाह की। तत्पश्‍चात सभी देवताओं को तदनुसार कार्य करने के लिये आदेश देकर वे भगवान नारायण के निवास स्थान बैकुण्ठ धाम से पुनः चले आये। तब देवता लोग सम्पूर्ण लोकों के हित तथा राक्षसों के विनाश के लिये स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर क्रमश: अवतीर्ण होने लगे। नृपश्रेष्ठ ! वे देवगण अपनी इच्छा के अनुसार ब्रह्मर्षियों अथवा राजर्षियों के वंश में उत्पन्न हुए। वे दानव, राक्षस, दुष्ट गन्धर्व, सर्प तथा अनान्य मनुष्य भक्षी जीवों का बार-बार संहार करने लगे। भरतश्रेष्ठ ! वे बचपन में भी इतने बलवान थे कि दानव, राक्षस, गन्धर्व तथा सर्प उनका बाल बांका तक नहीं कर पाते थे। जनमेजय बोले- भगवन् ! मैं देवता, दानव समुदाय, गन्धर्व, अप्सरा, मनुष्य, अक्ष, राक्षस तथा सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति यर्थाथ रूप से सुनना चाहता हूं। आप कृपा करके आरम्भ से ही इन सबकी उत्पत्ति का यथावत वर्णन कीजिये। वैशम्पायनजी ने कहा- अच्छा, मैं स्वयंभू भगवान ब्रह्मा एवं नारायण को नमस्कार करके तुमसे देवता आदि सम्पूर्ण लोगों की उत्पत्ति और नाश का यथार्थ वर्णन करता हूं। ब्रह्माजी के मानस पुत्र छः महर्षि विख्यात हैं- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्थ्य, पुलह और क्रतु। मरीचि के पुत्र कश्‍यप थे और कश्‍यप से ही यह समस्त प्रजाऐं उत्पन्न हुई हैं। (ब्रह्माजी के एक पुत्र दक्ष भी हैं) प्रजापति दक्ष के परम सौभाग्शालिनी तेरह कन्याऐं थीं। नरश्रेष्ठ उनके नाम इस प्रकार हैं- अदिति, दिति, दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा (क्रूरा), प्राधा, विष्वा, विनता, कपिला, मुनि और कद्रु। भारत ! ये सभी दक्ष की कन्याऐं हैं। इनके बाल पराक्रम सम्पन्न पुत्र-पौत्रों की संख्या अनन्त है। अदिति के पुत्र बारह आदित्य हुए, जो लोकेश्‍वर हैं। भरतवंशी नरेश ! उन सबके नाम तुम्हे बता रहा हूं। धाता, मित्र, अर्यमा, इन्द्र, वरूण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, दवे सविता, ग्यारहवें त्वष्टा और बारहवें विष्णु कहे जाते हैं। इन सब आदित्यों में विष्णु छोटे हैं; किन्तु गुणों में वे सबसे बढकर हैं। दिति का एक ही पुत्र हिरण्युकशिपु अपने नाम से विख्यात हुआ। उस महामना दैत्य के पांच पुत्र थे। उन पांचों में प्रथम का नाम प्रहलाद है। उससे छोटे को संगहलाद कहते हैं। तीसरे का नाम अनुहलाद उसके बाद चौथे शिवि और पांचवे बाष्कल हैं। भारत ! प्रहलाद के तीन पुत्र हुए जो सर्वत्र विख्यात हैं। उनके नाम ये हैं- विरोचन, कुंभ और निकुंभ। विरोचन के एक ही पुत्र हुआ, जो महाप्रतापी बलि के नाम से प्रसिद्व है। बलि का विश्‍वविख्यात पुत्र वाण नामक महान असुर है। जिसे सब लोग भगवान शंकर के पार्षद् श्रीमान् महाकाल के नाम से जानते हैं। भारत ! दनु के चौंतीस पुत्र हुए जो सर्वत्र विख्यात हैं। उनमें महायशस्वी राजा विचित्ति सबसे बड़ा था। उके बाद शम्बर, नमुचि, पुलोमा, असिलोमा, केषी, दुर्जय, अयःशिरा, अश्‍वशिरा, पराक्रमी, अश्‍वषंक, गगनमूर्धा, वेगवान्, केतुमान्, स्वर्भानु, अश्‍व, अश्‍वपति, वृषपर्वा, अजक, अश्‍वग्रीव, सूक्ष्म, महाबली तुहुण्ड, इषुपाद, एकचक्र, विरू, पाक्ष, हर, अहर, निचन्द्र, निकुम्भ, कुपट, कपट, शरभ, शलभ, सूर्य और चन्द्रमा हैं। ये दनु के वंश में विख्यात दानव बताये गये हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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