महाभारत आदि पर्व अध्याय 66 श्लोक 23-42

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षट्षष्टितम (66) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षट्षष्टितम अध्‍याय: श्लोक 23-42 का हिन्दी अनुवाद

अह के चार पुत्र हुए- ज्योति, शम, शान्त तथा मुनि। अनल के पुत्र श्रीमान् कुमार (स्कन्द) हुए, जिनका जन्मकाल में सरकंडो के वन में निवास था। शाख, विशाख और नैगमेय- ये तीनों कुमार के छोटे भाई हैं। छः कृत्तिकाओं को माता रूप में स्वीकार कर लेने के कारण कुमार का दूसरा नाम कार्तिकेय भी है। अनिल की भार्या का नाम शिवा है। उसके दो पुत्र हैं- मनोजव तथा अविज्ञातगति। इस प्रकार अनिल के दो पुत्र कहे गये हैं। देवल नामक सुप्रसिद्व मुनि को प्रत्यूष का पुत्र माना जाता है। देवल के भी दो पुत्र हुए। वे दोनों ही क्षमावान् और मनीषी थे। बृहस्पति की वहिन स्त्रियों में श्रेष्ठ एवं ब्रह्मावादिनी थीं। वे योग में तत्पर हो सम्पूर्ण जगत् में अनासक्त भाव से विचरती रहीं। वे ही वसुओं में आठवे वसु प्रभास की धर्मपत्नी थीं। शिल्पकर्म के ब्रह्मा महाभाग विश्‍वकर्मा उन्हीं से उत्पन्न हुए हैं। वे सहत्रों शिल्पों के निर्माता तथा देवताओं के बढ़ई कहे जाते हैं। वे सब प्रकार के आभूषणों को बनाने वाले और शिल्पियों में श्रेष्ठ हैं। उन्होंने देवताओं के असंख्य दिव्य विमान बनाये हैं। मनुष्य भी महात्मा विश्‍वकर्मा के शिल्प का आश्रय ले जीवन निर्वाह करते हैं और सदा उन अविनाशी विश्‍वकर्मा की पूजा करते हैं। ब्रह्माजी के दाहिने स्तन को विदीर्ण करके मनुष्य रूप में भगवान धर्म प्रकट हुए, जो सम्पूर्ण लोकों को सुख देने वाले हैं। उनके तीन श्रेष्ठ पुत्र हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के मन को हर लेते हैं। उनके नाम हैं- शम, काम और हर्ष। वे अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को धारण करने वाले हैं। काम की पत्नी का नाम रति है। शम की भार्या प्राप्ति है। हर्ष की पत्नी नन्दा है। इन्हीं में सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित हैं। मरीचि के पुत्र कश्‍यप और कश्‍यप के सम्पूर्ण देवता और असुर उत्पन्न हुए। नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार कश्‍यप सम्पूर्ण लोकों के आदि कारण हैं। त्वष्टा की पुत्री संज्ञा भगवान सूर्य की धर्मपत्नी है। वे परम सौभाग्वती हैं। उन्होंने अश्विनी (घोड़ी) का रूप का धारण करके अंतरिक्ष में दोनों अश्विनीकुमारों को जन्म दिया। राजन् ! अदिति के इन्द्र आदि बारह आदि पुत्र ही हैं। उनमें भगवान विष्णु सबसे छोटे हैं जिनमें ये सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है। इस प्रकार आठ वसु, ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य तथा प्रजापति और वसठकार हैं, ये तैतीस मुख्य देवता हैं। अब मैं तुम्हे इनके पक्ष और कुल आदि के उल्लेख पूर्वक वंश और गण आदि का परिचय देता हूं। रूद्रों का एक अलग पक्ष या गण है, साध्य, मरूत तथा वसुओं का भी पृथक-पृथक गण है। इसी प्रकार भार्गव तथा विश्‍वेदव गण को भी जानना चाहिये। विनतानन्दन गरूड़, बलवान अरूण तथा भगवान बृहस्पति की गणना आदित्यों में ही की जाती है। अश्विनीकुमार, सर्वोषधि तथा पशु इन सबको गुह्यक समुदाय के भीतर समझो। राजन् ! ये देवगण तुम्हें क्रमश: बताये गये हैं। मनुष्य इन सबका कीर्तन करके सब पापों से मुक्त हो जाता है। भगवान भृगु ब्रह्माजी के हृदय का भेदन करके प्रकट हुए थे। भृगु के विद्वान पुत्र कवि हुए और कवि के पुत्र शुक्राचार्य हुए, जो ग्रह होकर तीनों लोकों के जीवन की रक्षा के लिये वृष्टि, अनावृष्टि तथा भय और अभय उत्पन्न करते हैं। स्वयंभू ब्रह्माजी की प्रेरणा से समस्त लोकों का चक्कर लगाते रहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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