महाभारत आदि पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-19

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पञ्चसप्ततितम (75) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चसप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

दक्ष, वैवस्‍वत मनु तथा उनके पुत्रों की उत्‍पत्ति; पुरुरवा, नहुष और यया‍ति के चरित्रों का संक्षेप में वर्णन

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- निष्‍पाप जनमेजय ! अब मैं दक्ष प्रजापति, वैवस्‍वत मनु, भरत, कुरू, पुरु, अजमीढ़, यादव, कौरव तथा भरतवंशियों की कुल-परम्‍परा का तुमसे वर्णन करूंगा। उनका कुल परम पवित्र, महान् मंगलकारी तथा धन, यश और आयु की प्राप्ति कराने वाला है। प्रचेता के दस पुत्र थे, जो अपने तेज के द्वारा सदा प्रकाशित होते थे। वे सब-के-सब महर्षियों के समान तेजस्‍वी, सत्‍पुरुष और पुण्‍यकर्मा माने गये हैं। उन्‍होंने पूर्वकाल में अपने मुख से प्रकट हुई अग्नि द्वारा उन बड़े-बड़े वृक्षों को जलाकर भस्‍म कर दिया है था (जो प्राणियों को पीड़ा दे रहे थे)। उक्त दस प्रचेताओं द्वारा (मारिषा के गर्भ से ) प्राचेतस दक्ष का जन्‍म हुआ तथा दक्ष से समस्‍त प्रजाऐं उत्‍पन्न हुई हैं। नरश्रेष्ठ ! वे सम्‍पूर्ण जगत् के पितामह हैं। प्राचेतस मुनि दक्ष ने वीरिणी से समागम करके अपने ही समान गुण-शील वाले एक हजार पुत्र उत्‍पन्न किये। वे सब-के-सब अत्‍यन्‍त कठोर व्रत का पालन करने वाले थे। एक सहस्त्र की संख्‍या में प्रकट हुए उन दक्ष-पुत्रों को देवर्षि नारदजी ने मोक्ष्‍ा-शास्त्र का अध्‍ययन कराया। परम उत्तम सांख्‍य-ज्ञान का उपदेश किया। जनमेजय ! जब वे सभी विरक्त होकर घर से निकल गये, तब प्रजा की सृष्टि करने की इच्‍छा से प्रजापति दक्ष ने पुत्रिका के द्वारा पुत्र (दौहित्र) होने पर उस पुत्रि को ही पुत्र मानकर पचास कन्‍याऐं उपन्न कीं। उन्‍होंने दस कन्‍याऐं धर्म को, कश्‍यप को और काल का संचालन करने में नियुक्त नक्ष्‍ात्रस्‍वरुपा सत्ताईस कन्‍याऐं चन्‍द्रमा को ब्‍याह दीं। मरीचिनन्‍दन कश्‍यप ने अपनी तेरह पत्नियों में से जो सबसे बड़ी दक्ष-कन्‍या थीं, उनके गर्भ से इन्‍द्र आदि बारह आदित्‍यों को जन्‍म दिया, जो बड़े पराक्रमी थे। तदनन्‍तर उन्‍होंने अदिति से ही विस्‍वान् को उत्‍पन्न किया। विवस्‍वान् के पुत्रयम हुए, जो वैवस्‍वत कहलाते हैं। वे समस्‍त प्राणियों के नियन्‍ता हैं। विस्‍वान् के ही पुत्र परम बुद्धिमान् मनु हुए, जो बड़े प्रभावशाली हैं। मनु के बाद उन से यम नामक पुत्र की उत्‍पत्ति हुई, जो सर्वत्र विख्‍यात हैं। यमराज मनु के छोटे भाई तथा प्राणियों का नियमन करने में समर्थ हैं । बुद्धिमान मनु बड़े धर्मात्‍मा थे, जिन पर सूर्यवंश की प्रतिष्ठा हुई। मानवों से सम्‍बन्‍ध रखने वाला यह मनुवंश उन्‍हीं से विख्‍यात हुआ । उन्‍हीं मनु से ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सब मान उत्‍पन्न हुए हैं। महाराज ! तभी से ब्राह्मण कुल क्षत्रिय से सम्‍बद्ध हुआ। उनमें से ब्राह्मण जातीय मानवों ने छहों अंगों सहित वेदों को धारण किया। वेन, धृष्‍णु, नरिष्‍यन्‍त, नाभाग, इक्ष्‍वाकु, कारुष, शर्याति, आठवीं इला, नवें क्षत्रिय-धर्मपरायण पृषघ्र तथा दसवें नाभागारिष्ट- इन दसों को मनु पुत्र कहा जाता है। मनु के इस पृथ्‍वी पर पचास पुत्र और हुए। परंतु आपस की फूट के कारण वे सब-के-सब नष्ट हो गये, ऐसा हमने सुना है। तदनन्‍तर इला के गर्भ से विद्वान् पुरुरवा का जन्‍म हुआ। सुना जाता है, इला पुरुरवा की माता भी थी और पिता भी*। राजा पुरुरवा समुद्र के तेरह द्वीपों का शासन और उपभोग करते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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