महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-18

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द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-18 का हिन्दी अनुवाद

जो घर एवं आश्रय स्‍थान का दान करने वाले हैं, वे सोने के चबूतरों से युक्‍त और प्रात:कालीन सूर्य के समान कान्‍तिवाले गृहों के साथ धर्मराज के नगर में प्रवेश करते हैं। जो ब्राह्मणों को पैरों में लगाने के लिये उबटन, सिर पर मलने के लिये तेल, पैर धोने के लिये जल और पीने के लिये शर्बत देते हैं, वे घोड़े पर सवार होकर यमलोक की यात्रा करते हैं। जो रास्‍ते के थके – मांदे दुर्बल ब्राह्मण को ठहरने की जगह देकर उन्‍हें आराम पहुंचाते हैं, वे चक्रवाक से जुते हुए विमान पर बैठकर यात्रा करते हैं। जो घर पर आये हुए ब्राह्मणों को स्‍वागत पूर्वक आसन देकर उनकी विधिवत् पूजा करते हैं, वे उस मार्ग पर आनन्‍द के साथ जाते हैं। जो प्रतिदिन ‘नम: सर्वसहाभ्‍यश्‍च‘ ऐसा कहकर गौ को नमस्‍कार करता है, वह यमपुर के मार्ग पर सुखपूर्वक यात्रा करता है। प्रतिदिन प्रात:काल बिछौने से उठकर जो ‘नमोस्‍तु विप्रदत्‍तायै’ कहते हुए पृथ्‍वी पर पैर रखता है, वह सब कामनाओं से तृप्‍त और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित होकर दिव्‍य विमान के द्वारा सुखपूर्वक यमलोक को जाता है। जो सबेरे और शाम को भोजन करने क सिवा बीच में कुछ नहीं खाता तथा दम्‍भ और असत्‍य के बचे रहते हैं, वे भी सारयुक्‍त विमान के द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं। जो दिन – रात में केवल एक बार भोजन करते हैं और दम्‍भ तथा असत्‍य से दूर रहते हैं, वे हंसयुक्‍त विमानों के द्वारा बड़े आराम के साथ यमलोक को जाते हैं। जो जितेन्‍द्रीय होकर केवल चौथे वक्‍त अन्‍न ग्रहण करते हैं अर्थात् एक दिन उपवास करके दूसरे दिन शाम को भोजन करते हैं, वे मयूर युक्‍त विमानों के द्वारा धर्मराज के नगर में जाते हैं। जो जितेन्‍द्रीय पुरुष यहां तीसरे दिन भोजन करते हैं, वे भी सोने के समान उज्‍ज्‍वल हाथी के रथ पर सवार हो यमलोक जाते हैं। जो एक वर्ष तक छ: दिनों के बाद भोजन करता है और काम – क्रोध से रहित, पवित्र तथा सदा जितेन्‍द्रीय रहता है, वह हाथी के रथ पर बैठकर जाता है, रास्‍ते में उसके लिये जय – जयकार के शब्‍द होते रहते हैं। एक पक्ष उपवास करने वाले मनुष्‍य सिंह – जुते हुए विमान के द्वारा धर्मराज के उस रमणीय नगर को जाते हैं, जो दिव्‍य स्‍त्री समुदाय से सेवित है। जो इन्‍द्रियों को वश में रखकर एक मास तक उपवास करते हैं, वे भी सूर्योदय की भांति प्रकाशित विमानों के द्वारा यमलोक में जाते हैं। जो गौओं के लिये, स्‍त्री के लिये और ब्राह्मण लिये अपने प्राण दे देते हैं, वे सूर्य के समान कान्‍तिमान् और देवताओं से सेवित हो यमलोक की यात्रा करते हैं। जो श्रेष्‍ठ द्विज अधिक दक्षिणा वाले यज्ञों का अनुष्‍ठान करते हैं, वे हंस और सारसों से युक्‍त विमानों के द्वारा उस मार्ग पर जाते हैं। जो दूसरों को कष्‍ट पहुंचाये बिना ही अपने कुटुम्‍ब का पालन करते हैं, वे सुवर्णमय विमानों के द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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