महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-34

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द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-34 का हिन्दी अनुवाद

‘पाण्‍डुनन्‍दन ! जो पुरुष कपिला गौ के पंचगव्‍य से नहाकर शुद्ध होता है, वह मानों गंगा आदि समस्‍त तीर्थों में स्‍नान कर लेता है। ‘राजन् ! भक्‍तिपूर्वक कपिला गौ का दर्शन करके तथा उसके रंभाने की आवाज सुनकर मनुष्‍य एक दिन – रात के पापो को नष्‍ट कर डालता है। ‘एक मनुष्‍य एक हजार गौओं का दान करे और दूसरा एक ही कपिला गौ को दान में दे तो लोकपितामह ब्रह्माजी ने उन दोनों का फल बराबर बतलाया है। ‘इसी प्रकार कोई मनुष्‍य प्रमादवश यदि एक ही कपिला गौ की हत्‍या कर डाले तो उसे एक हजार गौओं के वध का पाप लगता है, इसमें संशय नहीं है। ‘ब्रह्माजी ने कपिला गौ के दस भेद बतलाये हैं । पहली स्‍वर्णकपिला, दूसरी गौरपिंगला, तीसरी आरक्‍तपिंगाक्षी, चौथी गलपिंगला, पांचवीं बभ्रुवर्णाभा, छठी श्‍वेतपिंगला, सातवीं रक्‍तपिंगाक्षी, आठवीं खुरपिंगला, नवीं पाटला और दसवीं पुच्‍छपिंगला – ये दस प्रकार की कपिला गौंएं बतलायी गयी हैं, जो सदा मनुष्‍यों का उद्धार करती हैं। ‘नरेश्‍वर ! वे मंगलमयीख्‍ पवित्र और सब पापों को नष्‍ट करने वाली हैं । गाडी खींचने वाले बैलों को भी ऐसे ही दस भेद बताये गये हैं। ‘उन बैलों को ब्राह्मण ही अपनी सवारी में जोते । दूसरे वर्ण का मनुष्‍य उनसे सवारी का काम किसी प्रकार भी न ले । ब्राह्मण भी कपिला गौ को खेत या रास्‍ते में न जोते। ‘गाडी में जुते रहने पर उन बैलों को हुंकार की आवाज देकर अथवा पत्‍तेवाली टहनी से हांके । डंडे से, छड़ी से और रस्‍सी से मारकर न हांके। ‘जब बैल भूख – प्‍यास और परिश्रम से थके हुए हों तथा उनकी इन्‍द्रियां घबरायी हुई हों, तब उन्‍हें गाड़ी में न जोते । जब तक बैलों को खिलाकर तृप्‍त न कर ले तब तक स्‍वयं भी भोजन न करे । उन्‍हें पानी पिलाकर ही स्‍वयं जलपान करे। ‘सेवा करने वाले पुरुष की कपिला गौएं माता और बैल पिता हैं । दिन के पहले भाग में ही भार ढोने वाले बैलों को सवारी में जोतना उचित माना गया है।‘ ‘दिन के मध्‍य भाग में – दुपहरी के समय उन्‍हें विश्राम देना चाहिये ; किंतु दिन के अन्‍तिम भाग में अपनी रुचि के अनुसार बर्ताव करना चाहिये अर्थात् आवश्‍यकता हो तो उनसे काम ले और न हो तो न ले । जहां जल्‍दी का काम हो अथवा जहां मार्ग में किसी प्रकार का भय आने वाला हो, वहां विश्राम के समय भी यदि बैलों को सवारी में जोते तो पाप नहीं लगता। ‘पाण्‍डुनन्‍दन ! परंतु जो विशेष आवश्‍यकता न होने पर भी ऐसे समय में बैलों को गाड़ी में जोतता है, उसे भ्रूण – हत्‍या के समान पाप लगता है और वह रौरव नरक में पड़ता है। ‘नराधिप ! जो मोहवश बैलों के शरीर से रक्‍त निकाल देता है, वह पापात्‍मा उस पाप के प्रभाव से नि:सदेह नरक में गिरता है। ‘वह सभी नरकों में सौ - सौ वर्ष रहकर इस मनुष्‍य लोक में बैल का जन्‍म पाता है। ‘अत: जो मनुष्‍य संसार से मुक्‍त होना चाहता हो, उसे कपिला गौ का दान करना चाहिये। ‘सब प्रकार के यज्ञों में दक्षिणा देने के लिये कपिला गौ की सृष्‍टि हुई, इसलिये द्विजातियों को यज्ञ में उनकी दक्षिणा अवश्‍य देनी चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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