महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 153 श्लोक 1-20

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त्रिपञ्चाशदधिकततम (153) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन का सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण करने के लिये आज्ञा देना तथा सैनिकों की रणयात्रा के लिये तैयारी जनमेजय ने पूछा— मुने ! दुर्योधन ने जब यह सुना कि राजा युधिष्ठिर युद्ध की इच्‍छा से सेनाओं के साथ यात्रा करके भगवान श्रीकृष्‍ण के द्वारा सुरक्षित हो कुरूक्षेत्र में पहुँच गये और वहाँ सेना का पडाव डाले बैठे हैं, पुत्रों सहित राजा विराट और द्रुपद भी उनके साथ हैं, केकयराजकुमार, वृष्णिवंशी योद्धा तथा सैकडों भूपाल उन्‍हें घेरे रहते हैं तथा वे आदित्‍यों सहित घिरे हुए देवराज इन्‍द्र की भाँति अनेक महारथी योद्धाओं द्वारा सुरक्षित हैं, तब उसने क्‍या किया । महामते ! कुरूक्षेत्र के उस भयंकर समारोह में जो कुछ हुआ हो वह सब में विस्‍तारपूर्वक सुनना चाहता हूँ । तपोधन ! पाण्‍डव, भगवान श्रीकृष्‍ण, विराट, द्रुपद, पांचाल राजकुमार ध्रष्‍टद्यम्न, महारथी शिखण्‍डी तथा देवताओं के लिये भी दुर्जय महापराक्रमी युधामन्‍यु— ये सब तो संग्राम में एकत्र होने पर इन्‍द्रसहित सम्‍पूर्ण देवताओं को भी पीड़ित कर सकते हैं; अत: वहाँ कौरवों तथा पाण्‍डवों ने जो-जो कर्म किया था वह सब विस्‍तारपूर्वक सुनने की मेरी इच्‍छा है ।

वैशम्‍पायनजी कहते हैं— राजन ! भगवान श्रीकृष्‍ण के चले जाने पर उस समय राजा दुर्योधन ने कर्ण, दुशासन और शकुनि से इस प्रकार कहा। श्रीकृष्‍ण यहाँ से कृतकार्य होकर नहीं गये हैं । इसके लिये वे क्रोध में भरकर पाण्‍डवों को निश्‍चय ही युद्ध के लिये उत्‍तेजित करेंगे, इसमें तनिक भी संशय नहीं है। वास्‍तव में श्रीकृष्‍ण यही चाहते हैं कि पाण्‍डवों के साथ मेरा युद्ध हो। भीमसेन और अर्जुन— ये दोनों भाई तो श्रीकृष्‍ण के मत में रहने वाले हैं।अजातशत्रु युधिष्ठिर भी अधिकतर भीमसेन के वश में रहा करते हैं। इसके सिवा मैंने पहले सब भाइयों सहित उनका तिरस्‍कार भी किया है।विराट और द्रुपद तो मेरे साथ पहले से ही वैर रखते हैं। वे दोनों पाण्‍डव-सेना के संचालक तथा श्रीकृष्‍ण की आज्ञा के अधीन रहने वाले हैं। अत: अब हम लोगों का पाण्‍डवों के साथ होने वाला यह युद्ध बडा ही भयंकर और रोमांचकारी होगा। इसलिये राजाओं ! आप स‍ब लोग आलस्‍य छोडकर युद्ध की सारी तैयारी करें । भूमिपालो ! आप कुरूक्षेत्र सैकडों और हजारों की संख्‍या में ऐसे शिविर तैयार करावें, जिनमें अपनी आवश्‍यकता के अनुसार पर्याप्‍त अवकाश हो तथा शत्रुलोग जिन पर अधिकार न कर सके। उनमें पास ही जल और काष्‍ठ आदि मिलने की सुविधाएं हों। उनमें ऐसे मार्ग होने चाहिए जिनके द्वारा खाद्य सामग्री सुविधा से लायी जा सके और शत्रुलोग उसे नष्‍ट न कर सके तथा उनके चारों तरफ किलेबन्‍दी कर देनी चाहिए । उन शिविरों को नाना प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों से भरपूर तथा ध्‍वज-पता‍काओं से सुशोभित रखना चाहिये। शिविरों का जो नगर बसाया जाये, उससे बाहर अनेक सीधे तथा समतल मार्ग उन शिविरों में जाने के लिये बनाये जाये । आज ही यह घोषणा करा दी जाये कि कल सवेरे ही युद्ध के लिये प्रस्‍थान करना है। इसमें विलम्‍ब नहीं होना चाहिये। दुर्योधन यह आदेश सुनकर बहुत अच्‍छा- ऐसा ही होगा यह प्रतिज्ञा करके महामना कर्ण आदि ने अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर सवेरा होते ही राजाओं के निवास के लिये शिविर बनवाने आरम्‍भ कर दिये ।उन्‍होंने अपने कमलसदृश करों से मस्‍तक पर पगडी बाँध ली; फिर धोती, चादर और सब प्रकार के आभूषण धारण कर लिये ।  



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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