महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 16 श्लोक 23-34

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षोडश (16) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 23-34 का हिन्दी अनुवाद

शक्र ! आपे जब उस महान् इन्द्र - पद का परित्याग कर दिया, तब देवतालोग भयभीत होकर दूसरे किसी इन्द्र की कामना करने लगे । तब देवता, पितर, ऋषि तथा मुख्य गन्धर्व - सब मिलकर राजा नहुष से इस प्रकार कहा ‘ आप हमारे राजा होइये और सम्पूर्ण विश्व की रक्षा कीजिये । ‘ यह सुनकर नहुष ने उनसे कहा -‘ मुझमें इन्द्र बनने की शक्ति नही है, अतः आपलोग अपने तप और तेज से मुझे आप्यायित ( पुष्ट ) कीजिये । उसके ऐसा कहने पर देवताओं ने उसे तप और तेज से बढ़ाया । फिर भयंकर पराक्रमी राजा नहुष स्वर्ग का राजा बन गया । इस प्रकार त्रिलोकी का राज्य पाकर वह दुरात्मा नहुष महर्षियों को अपना वाहन बनाकर सब लोको में घूमता है । यह देखने मात्र से सबका तेज हर लेता है । उसकी दृष्टि में भयंकर विष है । वह अत्यन्त घोर स्वभाव का हो गया है । तुम नहुष की ओर कभी देखना नही । सब देवता भी अत्यन्त पीडि़त हो गूूढरूप से विचरते रहते है ; पररंतु नहुष की ओर कभी देखते नही है ॥२६॥ शल्य कहते है - राजन् ! अंगिरा के पुत्रो मे श्रेष्ठ बृहस्पति जब ऐसा कह रहे थे, उसी समय लोकपाल कुबेर, सूर्यपुत्र यम, पुरातन देवता चन्द्रमा तथा वरूण भी वहाँ आ पहुंचे । वे सब देवराज इन्द्र से मिलकर बोले ! बडे़ सौभाग्य की बात है कि आपने त्वष्ठा के पुत्र वृत्रासुर का वध किया । हम लोग आपकेा शत्रु का वध करने के पश्चात् सकुशल अक्षत देखते है, यह भी बडे़ आनन्द की बात है, । उन लोकपालों से यथायोग्य मिलकर महेन्द्र को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होने उन सब को सम्बोधित करके राजा नहुष के भीतर बुद्धि भेद उत्पन्न करने के लिये प्रेरणा देते हुए कहा - ‘ इन देवताओं का राजा नहुष बड़ा भयंकर हो रहा है । उसे स्वर्ग से हटाने के कार्य में आप लोग मेरी सहायता करें ।‘ यह सुनकर उन्होंने उŸार दिया - देवेश्वर ! नहुष तो बडा भयंकर रूपवाला दृष्टि में विष है । अतः हमलोग उससे डरते हैं । ‘शक ! यदि आप हमारी सहायता से राजा नहुष को पराजित करने के लिये उद्यत है तो हम भी यज्ञ में भाग पाने के अधिकारी हो ।‘ इन्द्र ने कहा - ‘वरूण ! आप जल - के स्वामी हो, यमराज और कुबेर भी मेरे द्वारा अपने - अपने पद पर अभिषिक्त हो । देवताओं सहित हम लोग भयंकर दृष्टि वाले अपने शत्रु नहुष को परास्त करेेगे । ‘ तब अग्नि ने भी इन्द्र से कहा -‘प्रभो मुझे भी भाग दीजिये, मै आप की सहायता करूँगा । ‘ तब इन्द्र ने उन से कहा - अग्निदेव ! महायज्ञ में इन्द्र और अग्नि का एक सम्मिलित भाग होगा, जिस पर तुम्हारा भी अधिकार रहेगा ‘। पाकशासन भगवान् कुबेर को सम्पूर्ण यक्षों तथा धन का अधिपति बना दिया । इसी प्रकार वरदायक इन्द्र ने सोच समझकर बैच स्वत यम को पितरो का तथा वरूण को जल का स्वामित्व प्रदान किया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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