महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-17

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सप्‍तचत्‍वारिंश (47) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 21-31 का हिन्दी अनुवाद

पाण्‍डवों के यहां से लौटे हुए संजय का कौरवासभा में आगमन

वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार महर्षि सनत्‍सुजात ओर बुद्धिमान् विदुरजी के साथ बातचीत करते हुए राजा घृतराष्‍ट्र की सारी रात बीत गयी। वह रात बीतनेपर जब प्रभातकाल आया, तब सब राजालोग सूतपुत्र संजय को देखने के लिये बड़े हर्ष के साथ सभामें आये। घृतराष्‍ट्र आदि समस्‍त कौरवों ने भी पाण्‍डवों की धर्मार्थयुक्‍त बातें सुनने की इच्‍छा से उन सुंदर एवं विशाल राजसभा में प्रवेशकिया, जो चूने से पुती होनेके कारण अत्‍यंत उज्‍जवल दिखायी देती थी। सुवर्णमय प्राड्गण उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। वह सभा चन्‍द्रमाकी श्‍वेत रश्मियों के समान प्रकाशित हो रही थी। वह देखने में अत्‍यंत मनोहर थी और उसने भीतर चंदनमिश्रित जल से छिड़काव किया गया था। उस राजसभामें सुवर्ण, काष्‍ठ, मणि तथा हाथीदांत के बने हुए सुंदर-सुंदर आसन सुरूचिपूर्ण ढंग से बिछे हुए थे और उनके ऊपर चादरें फैला दी गयी थीं। भरतश्रेष्‍ठ! भीष्‍म, द्रोण, कृपाचार्य, शल्‍य, कृतवर्मा,जयद्रथ, अश्‍वत्‍थामा, विकर्ण,सोमदत्‍त, बाहिृलक, परम बुद्धिमान् विदुर, महार‍थी युयुत्‍सु तथा अन्‍य सभी शूरवीर नरेश धृतराष्‍ट्रको आगे करके उस सुंदर सभा में एक साथ प्रविष्‍ट हुए। राजन्! दु:शासन, चित्रसेन, सुबलपुत्र शकुनि, दुर्मुख, दु:सह, कर्ण, उलूक और विविंशति-इन सबने अमर्ष में भरे हुए कुरूराज दुर्योधन को आगे करके उस राजसभामें ठीक वैसे ही प्रवेश किया, जैसे देवतालोग इन्‍द्रकी सभा में प्रवेश करते हैं। जनमेजय! उस समय परिघके समानसुदृढ़ भुजाओंवाले उन शूरवीर नरेशों के प्रवेश करनेसे वह सभा उसी प्रकार शोभा पाने लगी, जैसे सिंहो के प्रवेश करने से पर्वत की कन्‍दरा सुशोभित होतीहै। महान् धनुष धारण करनेवाले तथा सूर्यके समान कांतिमान् उन समस्‍त महातेजस्‍वी नरेशोंने सभामें प्रवेश करके वहां बिछे हुए विचित्र आसनोंको सुशोभित किया। भारत! जब वे सब राजा आकर यथायोग्‍य आसनों-पर बैठ गये,तब द्वारपालने सूचना दी कि संजय राजसभा-के द्वारपर उपस्थित है। यह वही रथ आ रहा है, जो पाण्‍डवों के पास भेजा गया था। रथ को अच्‍छी तरह वहन करनेवाले सिंधुदेशीय घोड़ोंसे जुते हुए इस रथपर हमारे दूत संजय शीघ्र आ पहुंचे हैं। द्वारपाल के इतना कहते ही कानों में कुण्‍डल धारण किये संजय रथ से नीचे उतरकर राजसभा के निकट आया और महामना महीपालोंसे भरी हुई उस सभाके भीतर प्रविष्‍ट हुआ।

संजय ने कहा-कौरवा! आपको विदित होना चाहिये कि मैं पाण्‍डवोके यहां जाकर लौटा हूं। पाण्‍डवलोग अवस्‍थाक्रम के अनुसार सभी कौरवों का अभिनंदन करते है। उन्‍होंने बड़े-बुढ़े को प्रणाम कहलाया है। जो समवयस्‍क हैं, उनके साथ मित्रोचित बर्ताव का संदेश दिया है तथा नवयुवकोंको भी उनकी अवस्‍था के अनुसार सम्‍मान देकर उनसे प्रेमालापक की इच्‍छा प्रकट की है। पहले यहांसे जाते समय महाराज धृतराष्‍ट्रने मुझे जैसा उपदेश दिया था, पाण्‍डवोंके पास जाकर मैंने वैसी ही बातें कही हैं। राजाओ! अब भगवान् श्रीकृष्‍ण और अर्जुनने जो धर्म के अनुकुल उत्‍तर दिया है, उसे आपलोग ध्‍यान देकर सुनें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अंतर्गत यानसंधिपर्वमें संजयके लौटनेसे संबंध रखनेवाला सैंतालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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