महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 48 श्लोक 26-36

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अष्‍टचत्‍वारिंश (48) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: अष्‍टचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 26-36 का हिन्दी अनुवाद

संजय! धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा युद्ध के लिये आदेश पाकर उनके लिये प्राण देने को उद्यत रहने वाले भूमण्‍डल के नरेश जब तेजस्वी रथों पर आरूढ़ होकर कौरव-सेना पर आक्रमण करेंगे, उस समय उन्हें देखकर दुर्योधन को युद्ध के लिये अत्यन्त पश्र्चाताप करना पडे़गा । ‘जो अवस्था में बाल‍क होते हुए भी अस्त्र-शस्त्रों की पूर्ण शिक्षा पाकर युद्ध में नवयुवकों के समान पराक्रम प्रकाशित करते हैं, द्रौपद्री के वे पांचों शूरवीर पुत्र प्राणों का मोह छोड़कर जब कौरव-सेनापर टूट पडे़ंगे और कुरूराज दुर्योधन जब उन्हें उस अवस्था में देखेगा, तब उसे युद्ध छेड़ने की भूल-के कारण भारी पश्‍चाताप होगा । ‘जब सहदेव उत्तम जाति के सुशिक्षित घोड़ों से जुते हुए अपनी इच्छा के अनुकूल चलने वाले तथा पहियों की धूरी से तनिक भी आवाज न करने वाले रथपर, जो अलातचक्र की भांति घूमने के कारण सोने के गोलाकार तार के समान प्रतीत होता है, आरूढ़ हो अपने बाण समूहों द्वारा विपक्षी राजाओं के मस्तक काट-काटकर गिराने लगेंगे और इस प्रकार महान् भय का वातावरण छा जाने पर रथपर बैठे हुए अस्त्रवेत्ता सहदेव समरभूमि में डटे रहकर जब सभी दिशाओं में शत्रुओं पर आक्रमण करेंगे, उस दशा में उन्हें देखकर धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन के मन में युद्ध का परिणाम सोचकर महान् पश्र्चात्ताप होगा । ‘लज्जाशील, युद्धकुशल, सत्यवादी, महाबली, सर्वधर्म-सम्पन्न, वेगवान तथा शीघ्रतापूर्वक बाण चलाने वाले सहदेव जब घमासान युद्ध में शकुनि पर आक्रमण करके शत्रुओं के सैनिकों का संहार करने लगेंगे तथा जब दुर्योधन महाधनुर्धर शूरवीर अस्त्रविद्या में निपुण तथा रथयुद्ध की कला में कुशल द्रौपदी के पांचों पुत्रों को भयंकर विषवाले विषधर सर्पों की भांति आ‍क्रमण करते देखेगा, तब उसे युद्ध छेड़ने की भूलपर भारी पश्र्चात्ताप होगा । ‘अभिमन्यु साक्षात् भगवान् श्रीकृष्‍ण के समान पराक्रमी तथा अस्त्रविद्या में निपुण है, वह शत्रुपक्ष के वीरों का संहार करने में समर्थ है। जिस समय वह मेघ के समान बाणों की बौछार करता हुआ शत्रुओं की सेना में प्रवेश करेगा, उस समय धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन युद्ध के लिये मन-ही-मन बहुत ही संतप्त होगा । ‘सुभद्राकुमार अवस्था में यद्यपि बालक है, तथापि उसका पराक्रम युवकों के समान है। वह इन्द्र के समान शक्तिशाली तथा अस्त्रविद्या में पारङ्गत है। जिस समय वह शत्रु सेना पर विकराल काल में समान आक्रमण करेगा, उस समय उसे देखकर दुर्योधन को युद्ध छेड़ने के कारण बड़ा पश्र्चात्ताप होगा । ‘अस्त्र-संचालन में शीघ्रता दिखाने वाले, युद्धविशारद तथा सिंह के समान पराक्रमी प्रभद्रकदेशीय नवयुवक जब सेना सहित धृतराष्‍ट्र पुत्रों को मार भगायेंगे, उस समय दुर्योधन को यह सोचकर बड़ा पश्‍चात्ताप होगा कि मैंने क्यों यूद्ध छोड़ा? ‘जिस समय वृद्ध महारथी राजा विराट और द्रुपद अपनी पृथक्-पृथक् सेनाओं के साथ आक्रमण करके सैनिकों सहित धृतराष्‍ट्र पुत्रों पर दृष्टि डालेंगे, उस समय दुर्योधन को युद्ध का परिणाम सोचकर महान् पश्र्चात्ताप करना पडे़गा । ‘जब अस्त्रविद्या में निपुण राजा द्रुपद कुपित हो रथपर बैठकर समरभुमि में अपने धनुष से छोडे़ हुए बाणों द्वारा विपक्षी युवकों के मस्तकों को चुन-चुनकर काटने लगेंगे, उस समय दुर्योधन को इस युद्ध के कारण भारी पछतावा होगा ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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