महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-18
पञ्चम (5) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
भगवान श्रीकृष्ण का द्वारका गमन, विराट विराट द्रुपद के संदेश से राजाओं का पाण्डव पक्ष की ओर से युद्ध के लिये आगमन
(तत्पश्चात् भगवान) श्रीकृष्ण ने कहां-सभासदो ! सोमवंश के धुरंधर वीर महाराज द्रुपद जो बात कही है, वह उन्हीं के योग्य है । इसी से अमित तजस्वी पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर के अभीष्ट कार्य की सिद्ध हो सकती है। हम लोग सुनीति की इच्छा रखने वाले;अतः हमें सबसे पहले यही कार्य करना चाहिये । जो अवसर के विपरीत आचरण करता है, वह मनुष्य अत्यन्त मुर्ख माना जाता है। परंतु हम लोगों का कौरवों और पाण्डवों से एक- सम्बन्ध है । पाण्डव और कौरव दोनों ही हमारे साथ यथा-योग्य अनुकूल बर्ताव करते हैं। इस समय हम और सब लोग विवाहोत्सव में निमन्त्रित होकर आये है । विवाह कार्य सम्पन्न हो गया; अतः हम प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घरों को लौट जायँगे। आप समस्त राजाओं में अवस्था तथा शास्त्रज्ञान दोनांे ही दृष्टियों से सबकी अपेक्षा बडें है । इसमें संदेह नहीं कि हम लोग आपके शिष्य के समान है। राजा धृतराष्ट्र भी सदा आपको विशेष आदर देते है, आचार्य द्रोण और कृप दोंनो के आप सखा है। अतः आप ही आज पाण्डवों की कार्य-सिद्ध के अनुकूल संदेश भेजिये । आप जो भी संदेश भेजेगें, वह हम सब लोंगोंका निश्चित मत होगा। कुकुरुश्रेष्ठ दुर्योधन न्याय के अनुसार शान्ति स्वीकार करेगा, तो कौरव और पाण्डवों में परस्पर बन्धुजनोचित सौहार्द-वश महान संहार न होगा। यदि धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन मोहवंश घमंड में आकर हमारा प्रस्ताव न स्वीकार करें, तो आप दूसरे राजाओं को युद्ध का निमंत्रण भेजकर सबके बाद हम लोंगो आमंत्रित कीजियेगा। फिर तो गाण्डीवधन्वा अजु्रन कुपित होने पर मन्द बुद्धि दुर्योधन अपने मन्त्रियों और बन्धुजनो के साथ सर्वथा नष्ट हो जायेगा।
वैशमपायनजी कहते है--जनमेजय ! तदन्तर राजा विराट ने सेववृन्द तथा वान्धवोसहित वृष्णिकुल नन्दन भगवान श्रीकृष्ण का सत्कार करके उन्हें द्वारा का जाने के लिये बिदा किया। श्रीकृष्ण द्वारका चले गये जाने पर युधिष्ठिर आदि पाण्डव तथा राजा विराट युद्ध की सारी तैयारीयाँ करने लगे। बन्धुओं सहित राजा विराट तथा महाराज द्रुपद ने मिल-कर सब राजाओं के पास का युद्ध का निमन्त्रण भेजा। कुरूकुल के सिंह पाण्डव, मस्त्य नरेश विराट तथा पांचालराज द्रुपद के संदेश से (दूर-दूर के ) महाबळी नरेश बडे़ हर्ष और उत्साहो में भरकर वहां आने लगे। राजन् ! इस प्रकार कौरवों तथा पाण्डवों के उद्देश्य से दूर-दूर नरेश अपनी सेना लेकर प्रस्थान करने लगे । चतुरंगणी सेना से सारी पृथ्वी व्याप्त हुई सी जान पड़ने लगी। चारों ओर से उन वीरो के जो सैनिक आ रहे थे, वे पर्वतों और वनोसहित हस सारी पृथ्वी प्रकम्पित सी कर रहे थे। तदन्तर पांचाल नरेश ने युधिष्ठिर की सम्मति अनुसार बद्धि और अवस्था में भी बडे-चढे अपने पुरोहित को कौरवों के पास भेजा
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