महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 98 श्लोक 18-25

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अष्टनवतितम (98) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: अष्टनवतितम अध्याय: श्लोक 18-25 का हिन्दी अनुवाद

ये महातेजस्वी अग्निदेव वरुण देवता के सरोवर में प्रकाशित होते हैं । इन धुमरहित अग्निदेव ने भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को भी अवरुद्ध कर दिया था । वज्र की गांठ को 'गाँडीव' कहा गया है । यह धनुष उसी का बना हुआ है, इसलिए गाँडीव कहलाता है । जगत् का संहार करने के लिए इसका निर्माण हुआ है । देवतालोग सदा इसकी रक्षा करते हैं। यह धनुष आवश्यकता पड़ने पर लाख गुणी शक्ति से सम्पन्न हो वैसे-वैसे ही बल को धारण करता है और सदा अविचल बना रहता है। ब्रह्मवादी ब्रहमाजी ने पहले इस प्रचंड धनुष का निर्माण किया था । यह राक्षससदृश राजाओं में अदम्य नरेशों का भी दमन कर डालता है। यह धनुष राजाओं के लिए महान अस्त्र है और चक्र के समान उद्भासित होता रहता है । इस महान अभ्युदयकारी धनुष को जलेश वरुण के पुत्र धारण करते हैं । और यह सलिलराज वरुण का छत्र है, जो छत्रगृह में रखा हुआ है । यह छत्र मेघ की भांति सब ओर से शीतल जल बरसाता रहता है। इस छत्र से गिरा हुआ चंद्रमा के समान निर्मल जल अंधकार से आच्छन्न रहता है, जिससे दृष्टिपथ में नहीं आता है ॥ मातले ! इस वरुणलोक में देखने योग्य बहुत सी अद्भुत वस्तुएँ हैं; परंतु सबको देखने से तुम्हारे कार्य में रुकावट पड़ेगी, इसलिए हम लोग शीघ्र ही यहाँ से नागलोक में चलें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवदयान पर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक अट्ठानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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