महाभारत कर्ण पर्व अध्याय श्लोक 45-63

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एकपञ्चाशत्तम (51) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 45-63 का हिन्दी अनुवाद

शत्रुओं को संताप देने वाले भीमसेन ने क्रुद्ध होकर प्रहार करने में कुशल और ईषादण्डस के समान दांतों वाले सात सौ हाथियों का सहसा संहार कर डाला। मर्मस्थईलों को जानने वाले बलवान् भीमसेन ने उन गजराजों के मर्मस्थाडनों, ओठों, नेत्रों, कुम्भकस्थ।लों और कपोलों पर भी गदा से चोट पहुंचायी। फिर तो वे हाथी भयभीत होकर भागने लगे। तत्पश्चात् महावतों ने जब उन्हें पीछे लौटाया, तब वे भीमसेन को घेरकर खड़े हो गये, मानो बादलों ने सूर्यदेव को ढक लिया हो। जैसे इन्द्र अपने वज्र के द्वारा पर्वतों पर आघात करते हैं, उसी प्रकार पृथ्वीो पर खड़े हुए भीमसेन सवारों, आयुधों और ध्वपजाओं सहित उन सात सौ गजराजों को गदा से ही मार डाला । तत्पडश्चात् शत्रुओं का दमन करने वाले कुन्तीेकुमार भीमसेन सुबलपुत्र शकुनि के अत्यान्ता बलवान् बावन हाथियों को मार गिराया। इसी प्रकार उस युद्धस्थील में आपकी सेना को संताप देते हुए पाण्डुोकुमार भीमसेन ने सौसे भी अधिक रथों और दूसरे सैकड़ों पैदल सैनिकों का संहार कर डाला। ऊपर से सूर्य तपा रहे थे और नीचे महामन्सदवी भीमसेन संतप्त कर रहे थे। उस अवस्था। में आपकी सेना आग पर रखे हुए चमड़े के समान सिकुड़कर छोटी हो गयी। भरतश्रेष्ठ । भीम के भय से डरे हुए आपके समस्त सैनिक समरागड़ण में उनका सामना करना छोड़कर दसों दिशाओं में भागने लगे।
तदनन्तसर चर्मय आवरणों से युक्त पांच सौ रथ घर्घराहट की आवाज फैलाते हुए चारों ओर से भीमसेन पर चढ़ आये और बाणसमूहों द्वारा उन्हें घायल करने लगे। जैसे भगवान् विष्णु असुरों का संहार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन ने पताका, ध्वज और आयुधों सहित उन पांच सौ रथी वीरों को गदा के आवात से चूर-चूर कर डाला। तदनन्तजर शकुनि के आदेश से शूर वीरों द्वारा सम्माानित तीन हजार घुड़सवारों ने हाथों में शक्ति, ऋष्टि और प्राप्त लेकर भीमसेन पर धावा बोल दिया। यह देख शत्रुओं का संहार करने वाले भीमसेन ने बड़े वेग से आगे जाकर भांति-भांति के पैंतरे बदलते हुए अपनी गदा से उन घोड़ों और घुड़सवारों को मार गिराया। भारत। जैसे वृक्षों पर पत्थएरों से चोट की जाय, उसी प्रकार गदा से ताडित होने वाले उन अश्वारोहियों के शरीर से सब ओर महान् शब्दा प्रकट होता था। इस प्रकार शकुनि के तीन हजार घुड़सवारों को मारकर क्रोध में भरे हुए भीमसेन दूसरे रथ पर आरुढ़ हो राधापुत्र कर्ण के सामने आ पहुंचे। राजन्। कर्ण ने भी समरागड़ण में शत्रुओं का दमन करने वाले धर्मपुत्र युधिष्ठिर को बाणों से आच्छाीदित कर दिया और सारथि को भी मार गिराया। फिर महारथी कर्ण युधिष्ठिर के सारथि रहित रथ को रणभूमि में इधर-उधर घूमते देख कंकडपत्रयुक्त सीधे जाने वाले बाणों की वर्षा करता हुआ उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। कर्ण को राजा युधिष्ठिर धावा करते देख वायुपुत्र भीमसेन कुपित हो उठे। उन्हों ने बाणों से कर्ण को ढककर पृथ्वी और आकाश को भी शरसमूह से आच्छा दित कर दिया। तब शत्रुसूदन राधापुत्र कर्ण ने तुरंत ही लौटकर सब ओर से बाणों की वर्षा करके भीमसेन को ढक दिया। भारत। तत्पहश्चात् अमेय आत्मकबल से सम्पन्न सात्यकि ने भीमसेन के रथ से उलझे हुए कर्ण को पीड़ा देना आरम्भ किया, क्योंकि वे भीमसेन के पृष्ठ भाग की रक्षा कर रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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