महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 50 श्लोक 22-44
पञ्चाशत्तम (50) अध्याय: कर्ण पर्व
‘विराटनगर में अज्ञातवास करते समय इन्होंतने द्रौपदी का प्रिय करने की इच्छा से छिपे-छिपे जाकर केवल बाहुबल से कीचक को उसके साथियों सहित मार डाला था । ‘वे ही आज क्रोध से आतुर हो कवच बांधकर युद्ध के मुहाने पर उपस्थित हैं; परंतु क्या ये दण्डआ धारण किये यमराज के साथ भी युद्ध के लिये रणभूमि में उतर सकते हैं । ‘मेरे ह्रदय में दीर्घकाल से यह अभिलाषा बनी हुई है कि समरागण में अर्जुन का वध करुं अथवा वे ही मुझे मार डालें। कदाचित् भीमसेन के साथ समागम होने से मेरी वह इच्छाध आज ही पूरी हो जाय। ‘यदि भीमसेन मारे गये अथवा रथहीन कर दिये गये तो अर्जुन अवश्यह मुझ पर आक्रमण करेंगे, जो मेरे लिये अधिक अच्छा होगा । तुम जो यहां उचित समझते हो, वह शीघ्र निश्चय करके बताओ। अमित शक्तिशाली राधापुत्र कर्ण का यह वचन सुनकर राजा शल्यि ने सूत पुत्र से उस अवसर के लिये उपयुक्त वचन कहा। ‘महाबाहो। तुम महाबली भीमसेन पर चढ़ाई करो।
भीमसेन को परास्त् कर देने पर निश्चय ही अर्जुन को अपने सामने पा जाओगे
‘कर्ण । तुम्हाारे ह्रदय में चिरकाल से जो अभीष्टर मनोरथ संचित है, वह निश्चय ही सफल होगा, यह मैं तुमसे सत्या कहता हूं । उनके ऐसा कहने पर कर्ण ने शल्य से फिर कहा 'मद्रराज। मैं युद्ध में अर्जुन को मारुं या अर्जुन ही मुझे मार डालें। इस उद्वेश्यर से युद्ध में मन लगाकर जहां भीमसेन हैं, उधर ही चलो'। संजय कहते है-प्रजानाथ । तदनन्तयर शल्यै रथ के द्वारा तुरंत ही वहां जा पहुंचे, जहां महाधनुर्धर भीमसेन आपकी सेना को खदेड़ रहे थे। राजेन्द्र । कर्ण और भीमसेन का संघर्ष उपस्थित होने पर फिर तूर्य और भेरियों की गम्भीडर ध्वयनि होने लगी। बलवान् भीमसेन ने अत्यरन्त कुपित होकर चमचमाते हुए तीखे नाराचों आपकी दुर्जय सेना को सम्पू।र्ण दिशाओं में खदेड़ दिया। प्रजानाथ । महाराज। कर्ण और भीमसेन के उस युद्ध में बड़ी भयंकर, भीषण और मार-काट हुई। राजेन्द्र पाण्डु पुत्र भीमसेन ने दो ही घड़ी में कर्ण पर आक्रमण कर दिया। उन्हें अपनी ओर आते देख अत्यन्त। क्रोध में भरे हुए धर्मात्माे वैकर्तन कर्ण ने एक नाराच द्वारा उनकी छाती में प्रहार किया। फिर अमेय आत्मनबल से सम्पान्न उस वीर ने उन्हे अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया।
सूतपुत्र के द्वारा घायल होने पर उन्होंने भी उसे बाणों से अच्छा दित कर दिया और झुकी हुई गांठ वाले नौ तीखे बाणों से कर्ण को बींध डाला। तब कर्ण ने कई बाण मारकर भीमसेन के धनुष के बीच से ही दो टुकड़े कर दिये। धनुष कट जाने पर उनकी छाती में समस्तक आवरणों का भेदन करने वाले अत्य़न्त तीखे नाराच से गहरी चोट पहुंचायी। राजन्। मर्मज्ञ भीमसेन ने दूसरा धनुष लेकर सूतपुत्र के मर्मस्था नों में पैने बाणों द्वारा प्रहार किया और पृथ्वी तथा आकाश को कंपाते हुए से उन्होंसने बड़े जोर से गर्जना की। कर्ण ने भीमसेन को पचीस नाराच मारे, मानो किसी शिकारी ने वन में उर्पयुक्त मदोन्म त्त गजराज पर उल्काहओं द्वारा प्रहार किया हो । फिर कर्ण के बाणों से सारा शरीर घायल हो जाने के कारण पाण्डुपुत्र भीमसेन क्रोध से मुर्छित हो उठे। रोष और अमर्ष से उनकी आंखें लाल हो गयीं। उन्होंने सूतपुत्र के वध की इच्छाय से अपने धनुष पर एक अत्य अन्त वेगशाली, भारसाधन में समर्थ, उत्तम और पर्वतों को भी विदीर्ण कर देने वाले बाण का संधान किया।
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