महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-20

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षष्टितम (60) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन और कर्ण के पराक्रम का वर्णन करके कर्ण को मारने के लिये अर्जुन को उत्साहित करना तथा भीमसेन के दुष्क्र पराक्रम का वर्णन करना

संजय कहते है-राजन्। इसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्मराज युधिष्ठिर का दर्शन कराते हुए से इस प्रकार कहा ‘पाण्डुहनन्दरन। ये इच्छा से महाबली महाधनुर्धर धृतराष्ट्र पुत्र शीघ्रता पूर्वक इनका पीछा कर रहे हैं। ‘रणदुर्मद महाबली पाच्चाल-सैनिक महात्मा युधिष्ठिर की रक्षा करते हुए बड़े रोष और आवेश में भरकर उनके साथ जा रहे हैं। ‘पार्थ। यह सम्पूर्ण जगत् का राजा दुर्योधन कवच धारण करके रथसेना के साथ राजा युधिष्ठिर का पीछा कर रहा है ।‘पुरुषसिंह। जिनका स्पणर्श विषधर सर्पो के समान भयंकर है तथा जो सम्पूर्ण युद्ध-कला में निपुण हैं, उन भाइयों के साथ बली दुर्योधन राजा युधिष्ठिर को मार डालने की इच्छास से उनके पीछे लगा हुआ है। ‘जैसे याचक किसी श्रेष्ठष पुरुष को पाना चाहते है, उसी प्रकार हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों सहित ये दुर्योधन के सैनिक युधिष्ठिर को पकड़ने के लिये उन पर चढ़ाई करते हैं। ‘देखो, जैसे अमृत का अपहरण करने की इच्छाठवाले दैत्योंउ को इन्द्रं और अग्नि‘ ने बारंबार रोका था, उसी प्रकार ये दुर्योधन के सैनिक सात्योकि और भीमसेन के द्वारा अवरुद्ध होकर पुन: खड़े हो गये हैं। ‘जैसे वर्षाकाल में जल के प्रवाह अधिक होने के कारण समुद्र तक चले जाते हैं, उसी प्रकार ये कौरव महारथी बहुसंख्यसक होने के कारण पुन: बड़ी उतावली के साथ पाण्डुहपुत्र युधिष्ठिर पर चढ़े जा रहे हैं। ‘वे बलवान् और महाधनुर्धर कौरव सिंहनाद करते, शंख बजाते और अपने धनुष को कंपाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ‘मैं तो समझता हूं कि इस समय कुन्तीहपुत्र युधिष्ठिर दुर्योधन के अधीन हो मृत्यु के मुख में चले गये हैं अथवा प्रज्व लित अग्रि की आहुति बन गये हैं। ‘पाण्डुनन्दन। दुर्योधन की सेना का जैसा व्यूयह दिखायी दे रहा है, उससे यह जान पड़ता है कि उसके बाणों के मार्ग में आ जाने पर इन्द्र भी जीवित नहीं छूट सकते। ‘क्रोध में भरे हुए यमराज के समान शीघ्रतापूर्वक बाण समूहों की वर्षा करने वाले वीर दुर्योधन का वेग इस युद्ध में कौन सह सकता है। ‘वीर दुर्योधन, अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा कर्ण के बाणों का वेग पर्वतों को भी विदीर्ण कर सकता है।
‘कर्ण ने शत्रुओं को संताप देने वाले, शीघ्रता पूर्वक हाथ चलानेवाले, बलवान् विद्वान् और युद्धकुशल राजा युधिष्ठिर को युद्ध से विमुख कर दिया है। ‘धुतराष्ट्र के महाबली शूरवीर पुत्रों के साथ रहकर राधा पुत्र कर्ण रणभूमि में पाण्डहव श्रेष्ठल युधिष्ठिर को अवश्ये पीड़ा दे सकता है । ‘संग्राम में जूझते हुए संयतचित्त कुन्तीैकुमार युधिष्ठिर के कवच को इन दुर्योधन आदि कुन्तीाकुमार युधिष्ठिर के कवच को इन दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र-पुत्रों तथा अन्यो महारथियों ने नष्ट कर दिया है । ‘भरतकुलशिरोमणि राजा युधिष्ठिर उपवास करने से अत्यनत दुर्बल हो गये हैं। ये ब्राह्मबल में स्थित हैं, क्षात्रबल प्रकट करने में समर्थ नहीं हैं।‘शत्रुओं को तपानेवाले ये पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर कर्ण के साथ युद्ध करके प्राणसंकट की अवस्था् में पहुंच गये हैं। ‘पार्थ। मुझे जान पड़ता है कि महाराज युधिष्ठिर जीवित नहीं है क्योंकि अमर्षशील शत्रुदमन भीमसेन संग्राम में विजय से उल्लमसित हो बड़े-बड़े शंख बजाते और बारंबार गर्जते हुए धृतराष्ट्रपुत्रों का सिंहनाद चुपचाप सहन करते हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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