महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 62 श्लोक 19-34
द्विषष्टितम (62) अध्याय: कर्ण पर्व
राजन्। तदनन्तर कर्ण ने पतगों की तरह चलकर शत्रुओं के शरीर में घुस जाने वाले बाणों द्वारा वेगपूर्वक दसों दिशाओं में प्रहार आरम्भ किया । दिव्यास्त्रों का प्रदर्शन करता हुआ कर्ण मणि एवं सुवर्ण के आभूषणों से विभूषित तथा लाल चन्दन से चर्चित दोनों भुजाओं को बारंबार हिला रहा था । राजन्। तत्पश्चात् अपने बाणों से सम्पूर्ण दिशाओं को मोहित करते हुए कर्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को अत्यन्त पीडित कर दिया । महाराज। इससे कुपित हुए धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने कर्ण पर पचास पैने बाणों का प्रहार किया । उस समय भयंकर दिखायी देने वाला वह युद्ध बाणों के अन्धकार से व्याप्त हो गया। माननीय प्रजानाथ। जब धर्मपुत्र युधिष्ठिर कौरव सेना का वध करने लगे, उस समय आपके योद्धाओं का महान् हाहाकार सब ओर गूंज उठा। भरतश्रेष्ठ। धर्मात्मा युधिष्ठिर शिला पर तेज किये हुए कंकडपत्रयुक्त एवं नाना प्रकार के पैने बाणों, भांति-भांति के बहुसंख्यक भल्लों तथा शक्ति, ऋषि एवं दृष्टि एवं मुसलों द्वारा प्रहार करते हुए जहां जहां क्रोधरुपी दोष से पूर्ण दृष्टि डालते थे, वहीं –वहीं आपके सैनिक छिन्न-भिन्न होकर बिखर जाते थे । कर्ण भी अत्यन्त क्रोध में भरा हुआ था। वह अमर्षशील और क्रोधी तो था ही, रोष से उसका मुख फड़क रहा था। अप्रमेय आत्मबल से सम्पन्न उस वीर ने युद्धस्थल में नाराचों, अर्धचन्द्रों तथा वत्सदन्तों द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर पर धावा किया । इसी प्रकार युधिष्ठिर ने भी कर्ण को सोने की पांखवाले पैने बाणों द्वारा घायल कर दिया। तब कर्ण ने हंसते हुए से शिला पर तेज किये गये कंकडपत्रयुक्त तीन भल्लों द्वारा पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर की छाती में गहरी चोट पहुंचायी । उस प्रहार से अत्यन्त पीडित हो धर्मराज युधिष्ठिर रथ के पिछले भाग में बैठे गये और सारथि को आदेश देते हुए बोले ‘यहां से अन्यत्र रथ ले चलो, । उस समय राजा दुर्योंधनसहित आपके सभी पुत्र इस प्रकार कोलाहल करने लगे-‘राजा युधिष्ठिर को पकड़ लो’ ऐसा कहकर वे सभी ओर से उनकी ओर दौड़ पड़े । राजन्। तब प्रहार कुशल सत्रह सौ केकय योद्धा पाच्चालों के साथ आकर आपके पुत्रों को रोकने लगे । जिस समय वह जनसंहारकारी भयंकर युद्ध चल रहा था, उस समय महाबली दुर्योधन और भीमसेन एक दूसरे से जूझने लगे । इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्ण पर्व में संकुलयुद्ध विषयक बासठवां अध्याय पूरा हुआ ।
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