महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 65 श्लोक 13-23

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पच्चष्टितम (65) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व:पच्चष्टितमअध्याय: श्लोक 13-23 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- ह्रषीकेश। अब आप इस शत्रुसेनारुपी समुद्र को छोड़कर घोड़ों को यहां से हांक ले चलें। केशव। मैं अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर का दर्शन करना चाहता हूं । संजय उवाच संजय कहते हैं- राजन्। तदनन्‍तर सम्‍पूर्ण दाशार्ह वंशियों में प्रधान भगवान् श्रीकृष्‍ण अपने घोडे हांकते हुए वहां भीमसेन से इस प्रकार बोले’कुन्‍तीनन्‍दन भीम । आज यह पराक्रम तुम्‍हारे लिये कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मैं जा रहा हूं। तुम शत्रु-समूहों का संहार करो’ । राजन्। यह कहकर भगवान् ह्रषीकेश गरुड़ के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा शीघ्र से शीघ्र वहां जा पहुंचे, जहां राजा युधिष्ठिर विश्राम कर रहे थे । राजेन्‍द्र। शत्रुओं का सामना करने के लिये शत्रुदमन वृकोदर भीमसेन को स्‍थापित करके और युद्ध के विषय में उन्‍हें पूर्वोक्त संदेश देकर वे दोनों पुरुष-शिरोमणि अकेले सोये हुए राजा युधिष्ठिर के पास जा रथ से नीचे उतरे और उन्‍होंने धर्मराज के चरणों में प्रणाम किया । पुरुषसिंह पुरुष्‍प्रवर श्रीकृष्‍ण एवं अर्जुन को सकुशल देखकर तथा दोनों कृष्‍णों को इन्‍द्र के पास गये हुए अश्विनी कुमारों के समान प्रसन्नतापूर्वक अपने समीप आया जान राजा युधिष्ठिर ने उनका उसी तरह अभिनन्‍दन किया, जैसे सूर्य दोनों अश्विनीकुमारों का स्‍वागत करते हैं। अथवा जैसे महान् असुर जम्‍भ के मारे जाने पर बृहस्‍प‍िति ने इन्‍द्र और विष्‍णु का अभिनन्‍दन किया था । शत्रुओं को संताप देने वाले धर्मराज युधिष्ठिर ने कर्ण को मारा गया मानकर हर्षग्दद वाणी से प्रसन्नतापूर्वक वार्तालाप आरम्‍भ किया । सेना के अग्रभाग में युद्ध करने वाले पुरुषों में प्रमुख वीर विशाल एवं लाल नेत्रों वाले श्रीकृष्‍ण और अर्जुन जब समीप आये, तब उनके सारे अंगों में बाण धंसे हुए थे। वे खून से लथपथ हो रहे थे; उन्‍हें देखकर युधिष्ठिर ने निम्‍नाकित रुप से बातचीत आरम्‍भ की । एक साथ आये हुए महान् शक्तिशाली श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को देखकर उन्‍हें यह पक्का विश्वास हो गया था कि गाण्‍डीवधारी अर्जुन ने युद्धस्‍थल में अधिरथपुत्र कर्ण को मार डाला है । भरतश्रेष्‍ठ। यही सोचकर कुन्‍तीकुमार युधिष्ठिर ने मुस्‍कराकर शत्रुसूदन श्रीकृष्‍ण और अर्जुन की प्रशंसा करते हुए परम मधुर और सान्‍त्‍वनापूर्ण वचनों द्वारा उन दोनों का अभिनन्‍दन किया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में यधिष्ठिर के पास श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का आगमन विषयक पैंसठवां अध्‍याय पूरा हुआ ।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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