महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 68 श्लोक 13-21
अष्टषष्टितम (68) अध्याय: कर्ण पर्व
‘यह चन्द्रमा की कान्ति, वायु के वेग, मेरु की स्थिरता, पृथ्वी की क्षमा, सूर्य की प्रभा, कुबेर की लक्ष्मी, इन्द्र के शौर्य और भगवान् विष्णु के बल से सम्पन्न होगा ।‘कुन्ति। तुम्हारा यह महामनापुत्र अदिति के गर्भ से प्रकट हुए शत्रुहन्ता भगवान् विष्णु के समान उत्पन्न हुआ है। यह अमितबलशाली बालक स्वजनों की विजय और शत्रुओं के वध के लिये प्रसिद्ध एवं अपनी कुशपरम्परा का प्रवर्तक होगा’ । ‘शतश्रृग्ड़ पर्वत के शिखर तपस्वी महात्माओं के सुनते हुए आकाशवाणी ने ये बातें कही थी; परंतु उसका यह कथन सफल नहीं हुआ। निश्चय ही देवतालोग भी झूठ बोलते हैं । ‘इसी प्रकार दूसरे महर्षि भी सदा तुम्हारी प्रशंसा करते हुए ऐसी बातें कहा करते थे। उनकी बातें सुनकर ही मैं दुर्योधन के सामने कभी नतमस्तक न हो सका; परंतु मैं यह नहीं जानता था कि तुम अधिरथपुत्र कर्ण के भय से पीडित हो जाओगे । ‘दुर्योधन ने पहले ही जो यह बात कह दी थी कि ‘अर्जुन युद्ध में महाबली कर्ण के सामने नहीं खड़े हो सकेंगे, उसके इस कथन पर मैंने मूर्खतावश विश्वास नहीं किया था।‘इसलिये आज संतप्त हो रहा हूं। शत्रुओं के समुदाय में फंसकर असीम नरक-तुल्य संकट में पड़ गया हूं। अर्जुन। तुम्हें पहले ही यह कह देना चाहिये था कि ‘मैं सूत पुत्र कर्ण के साथ किसी प्रकार युद्ध नहीं करुंगा’। वैसी दशा में मैं सृंजयों, केकयो तथा अन्यान्य सुह्रदों को युद्ध के लिये आमन्त्रित नहीं करता ।‘आज जब ऐसी परिस्थिति है, तब सूतपुत्र कर्ण, राजा दुर्योधन तथा अन्य जो लोग मेरे साथ युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए हैं, उन सबके साथ छिड़े हुए इस संग्राम में मैं कौन-सा कार्य कर सकता हूं । ‘श्रीकृष्ण। मैं कौरवों, सुह्रदों तथा अन्य जो लोग युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए हैं, उन सबके बीच में आज सूतपुत्र कर्ण के अधीन हो गया। मेरे जीवन को धिक्कार है । ‘आज एकमात्र भीमसेन ही मेरे रक्षक हैं, जिन्होंने महान् भयदायक संग्राम में सब ओर से मेरी रक्षा की है। उन्होंने मुझे संकट से मुक्त करके अपने पैने बाण से कर्ण को बींध डाला था । भीमसेन का शरीर खून से नहा उठा था। फिर भी वे हाथ में गदा लेकर प्रलयकाल के यमराज की भांति रणभूमि में विचरते थे और प्राणों का मोह छोड़कर समरागण में एकत्र हुए कौरवों के साथ युद्ध करते थे। धृतराष्ट्र के पुत्रों के साथ युद्ध करते हुए भीमसेन का वह महान् सिंहनाद बारंबार सुनायी दे रहा है।। ‘पार्थ। यदि महारथियों में श्रेष्ठ और उत्तम रथी तुम्हारा पुत्र अभिमन्यु जीवित होता तो वह शत्रुओं का वध अवश्य करता। फिर तो समरभूमि में मुझे ऐसा अपमान नहीं उठाना पड़ता। यदि समरागण में घटोत्कच भी जीवित होता तो भी मुझे वहां से मुंह फेरकर भागना नहीं पड़ता ।
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