महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 80 श्लोक 17-32

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अशीतितम (80) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 17-32 का हिन्दी अनुवाद

गाण्डीव धनुष से छूटे हुए प्राण लेने वाले नाना प्रकार के बाण जो अलात, उल्का और बिजली के समान प्रकाशित हो रहे थे, आपकी सेना को दग्ध करने लगे। जैसे रात्रिकाल में किसी महान् पर्वत पर बांसों का वन जल रहा हो, उसी प्रकार अर्जुन के बाणों से पीड़ित हुई आपकी विशाल सेना आग की लपटों से घिरी हुई-सी प्रतीत हो रही थी। किरीटधारी अर्जुन ने आपकी सेना को पीस डाला, जला दिया, विध्वस्त कर दिया, बाणों से बींध डाला और सम्पूर्ण दिशाओं में भगा दिया। जैसे विशाल वन में दावानल से डरे हुए मृगों के समूह इधर-उधर भागते हैं, उसी प्रकार सव्यसाची अर्जुन के बाण रूपी अग्नि से जलते हुए कौरव सैनिक चारों और चक्कर काट रहे थे। रणभूमि में उद्विग्न हुई सारी कौरवसेना ने महाबाहु भीमसेन को छोड़कर युद्ध से मुंह मोड़ लिया। इस प्रकार कौरव सैनिकों के भाग जानने पर कभी पराजित न होने वाले अर्जुन भीमसेन के पास पहुंचकर दो घड़ी तक रूके रहे। फिर भीम से मिलकर उन्होंने कुछ सलाह की और यह बताया कि राजा युधिष्ठिर के शरीर से बाण निकाल दिये गये हैं, अतः वे इस समय स्वस्थ हैं। रथकी घर्घराहट से पृथ्वी और आकाश को गुंजाते हुए वहां से चल दिये। इसी समय आपके दस वीर पुत्रों ने, जो योद्धाओं में श्रेष्ठ और दुःशासन से छोटे थे, अर्जुन को चारों और से घेर लिया।
भरतनन्दन ! जैसे शिकारी लुआठों से हाथी को मारते हैं, उसी प्रकार अपने धनुष को ताने हुए उन शूर-वीरों ने नाचते हुए-से वहां अर्जुन को बाणों द्वारा व्यथित कर डाला। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण यह सोचकर कि अर्जुन द्वारा इन सबको यमलोक में भेज देना उचित नहीं है, रथ के द्वारा उन्हें शीघ्र ही अपने दाहिने भाग में कर दिया। जब अर्जुन का रथ दूसरी ओर जाने लगा, तब दूसरे मूढ़ कौरव योद्धा लोग उनपर टूट पडे़। उस समय कुन्तीकुमार अर्जुन ने उन आक्रमणकारियों के ध्वज, अश्व, धनुष और बाणों को नाराचों और अर्धचन्द्रों द्वारा शीघ्र ही काट गिराया। तदनन्तर अन्य बहुत से भल्लों द्वारा उन सबके मस्तक काट डाले। वे मस्तक रोष से लाल हुए नेत्रों से युक्त थे और उनके ओठ दांतोतले दबे हुए थे। पृथ्वी पर गिरे हुए उनके वे मुख बहुसंख्यक कमलपुष्पों के समान सुशोभित हो रहे थे। भारत! शत्रुओं का संहार करनेवाले अर्जुन सुवर्णमय पंखवाले महान् वेगशाली दस भल्लों द्वारा सोने के अंगदों से विभूषित उन दसो वीरों को बींधकर आगे बढ़ गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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