महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 85 श्लोक 12-24

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पञ्चाशीतितम (85) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चाशीतितम अध्याय: श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद

इसके बाद अश्वत्थामाने सम्पूर्ण आयुधों, योद्धाओं और ध्वजाओं सहित अन्य तीन विशाल गजराजों को मार गिराया। उसके द्वारा मारे गये वे विशाल गजराज वज्र के मारे हुए महान् पर्वतों के समान प्राणशुन्य होकर पृथ्वी पर गिर पडे़।। कुलिन्दराज के छोटे भाई से भी जो छोटा था, उसने श्रेष्ठ बाणों द्वारा आपके पुत्र की छाती में चोट पहुँचायी । तब आपके पुत्र ने अपने तीखें बाणों से उसके शरीर और हाथी दोनों को घायल कर दिया। जैसे वर्षा काल में इन्द्र के वज्र से आहत हुआ गेरू का पर्वत लाल रंग का पानी बहाता है, इसी प्रकार वह गजराज अपने शरीर से सब ओर बहुत-सा रक्त बहाता हुआ कुलिन्दराज कुमार के साथ ही धराशायी हो गया। अब कुलिन्दराज कुमार ने दूसरा हाथी आगे बढाया। उसने क्राथ के सारथि, घोड़ो और रथ को कुचल डाला, परन्तु क्राथ के बाणों से पीड़ित हो वह हाथी वज्रताडि़त पर्वत के समान अपने स्वामी के साथ ही धराशायी हो गया। तदनन्तर जैसे आँधी का उखाड़ा हुआ विशाल वृक्ष पृथ्वी पर गिर जाता है, उसी प्रकार घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वजसहित दुर्जय महारथी क्राथ नरेश हाथी पर बैठे हुए एक पर्वतीय वीर के बाणों से मारा जाकर रथ से नीचे जा गिरा।।तब वृक ने उस पहाड़ी राजा को बारह बाण मारकर अत्यन्त घायल कर दिया। चोट खाकर पर्वतीय नरेश का वह विशाल गजराज वृक की ओर झपटा और उसने रथ और घोड़ों सहित वृक को अपने चारों पैरों से दबाकर तुरंत ही उसका कचूकर निकाल दिया। अंत में बभ्रुपुत्र के बाणों से अत्यन्त आहत होकर वह गजराज भी संचालकसहित धरतीपर लोट गया। फिर वह देवावृधकुमार भी सहदेव के पुत्र से पीड़ित हो धराशायी हो गया।।
तत्पश्चात् दूसरे कुलिन्दराज कुमार ने शकुनिको मार डालने के लिये दाँत, शरीर और सूँड़ के द्वारा बडे़-बडे़ योद्धाओं को मार गिरानेवाले हाथी के द्वारा उस पर वेगपूर्वक आक्रमण किया और उसे अत्यन्त घायल कर दिया। तब गान्धारराज शकुनि ने उसका सिर काट लिया। यह देख शतानीकने आपकी सेना पर आक्रमण किया। जैसे गरूड़के पंखों की हवा से आहत हुए सर्प पृथ्वी गिर पड़ते हैं, उसी प्रकार शतानीक द्वारा मारे गये आपके विशाल हाथी, घोडे़, रथ और पैदल विवश हो पृथ्वी पर गिरकर चूर-चूर हो गये। तदनन्तर मुस्कराते हुए कलिंगराज के पुत्र ने अपने बहुसंख्यक पैने बाणों द्वारा नकुल के पुत्र शतानीक को क्षत-विक्षत कर दिया। इससे नकुलकुमार को बड़ा क्रोध हुआ और उसने एक क्षुर के द्वारा कलिंगराजकुमार का कमलसदृश मुखवाला मस्तक काट डाला। तत्पश्चात् कर्णपुत्र वृषसेन ने लोहे के बने हुए तीन बाणों से शतानीक को घायल कर दिया। फिर उसने अर्जुन को तीन, भीमसेन को तीन, नकुल को सात, और श्रीकृष्ण को बारह बाणों से बींध डाला। अलौकिक पराक्रम करनेवाले वृक्षसेन के इस कर्म को देखकर समस्त कौरव हर्ष में भर गये और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे; परंतु जो अर्जुन के पराक्रम को जानते थे, उन्होंने निश्चित रूप से यह समझ लिया कि अब यह वृषसेन आग की आहुति बन जायगा। तदनन्तर शत्रुवीरों का संहार करने वाले मानवलोक के प्रमुख वीर किरीटधारी अर्जुन ने समस्त सेनाओं के बीच माद्रीकुमार नकुल के घोड़ों को वृषसेन द्वारा मारा गया और भगवान् श्रीकृष्ण को अत्यन्त घायल हुआ देख युद्धस्थल में वृषसेन पर धावा किया। वृषसेन उस समय कर्ण के सामने खड़ा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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