महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 87 श्लोक 101-117

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सप्ताशीतिम (87) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्ताशीतिम अध्याय: श्लोक 101-117 का हिन्दी अनुवाद

इसी तरह कुन्तीनन्दन धनंजय ने भी अपने दृष्टि द्वारा कर्ण को परास्त कर दिया। तदनन्तर कर्ण ने शल्य से मुसकराते हुए कहा-शल्य ! सच बताओ, यदि कदाचित् आज रणभूमि में कुन्तीपुत्र अर्जुन मुझे यहाँ मार डालें तो तुम इस संग्राम का क्या करोगे ? शल्य ने कहा-कर्ण ! यदि श्वेतवाहन अर्जुन आज युद्ध में तुझे मार डालें तो में एकमात्र रथ के द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों का वध कर डालूँगा। संजय कहते हैं- रजान् ! इसी प्रकार अर्जुन ने भी श्रीकृष्ण से पूछा। तब श्रीकृष्ण ने हँसकर अर्जुन से यह सत्य बात कहीं-धनंजय ! सूर्य अपने स्थान से गिर जाय, समुद्र तूख जाय और अग्नि सदा के लिये शीतल हो जाय तो भी कर्ण तुम्हें मार नहीं सकता। यदि किसी तरह ऐसा हो जाय तो संसार उलट जायगा। में अपनी दोनों भुजाओं से ही युद्धभुमि में कर्ण तथा शल्य को मसल डालूँगा। भगवान् श्रीकृष्ण का यह वचन सुनकर कपिध्वज अर्जुन हॅस पडे़ और अनायास ही महान् कर्म करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण इस प्रकार बोले-जनार्दन ! ये कर्ण और शल्य तो मेंरे ही लिये पर्याप्त नहीं हैं। श्रीकृष्ण ! आज रणभूमि में आप देखियेगा, में कवच, छत्र, शक्ति, धनुष, बाण, ध्वजा, पताका, रथ, घोडे़ तथा राजा शल्य के सहित कर्ण को अपने बाणों से टुकडे़-टुकडे़ कर डालूँगा।। जैसे जंगल में दन्तार हाथी किसी पेड़ को टूक-टूक कर देता है, उसी प्रकार आज ही में रथ, घोडे़, शक्ति, कवच तथा अस्त्र-शस्त्रांे सहित कर्ण को चूर-चूर कर डालूँगा।
माधव ! आज राधापुत्र कर्ण की स्त्रियों के विधवा होने का अवसर उपस्थित है। निश्चय ही, उन्होंने स्वप्न में अनिष्ट वस्तुओं के दर्शन किये हैं। आज निश्चय ही, आज कर्ण की स्त्रियों को विधवा हुई देखेंगे। इस अदूरर्दशी मूर्ख ने सभा में द्रौपदी को आयी देख बारंबार उसकी तथा हमलोगों की हँसी उड़ायी और हम सब लोगों पर आक्षेप किया। ऐसा करते हुए इस कर्ण ने पहले जो कुकृत्य किया है, उसे याद करके मेरा क्रोध शांत नहीं होता है। गोविन्द ! जैसे मतवाला हाथी फले-फूले वृक्ष को तोड़ डालता है, उसी प्रकार आज में इस कर्ण को मथ डालूँगा। आप यह सब कुछ अपनी आँखों देखेंगे। मधुसूदन ! आज कर्ण के मारे जाने पर आपको मधुर बाते सुनने को मिलेंगी। हमलोग कहेंगे-वृष्णिनन्दन ! बडे़ सौभाग्य की बात है कि आज आपकी विजय हुई। जनार्दन ! आज आप अत्यन्त प्रसन्न होकर अभिमन्यु की माता सुभद्रा को और अपनी बुआ कुन्तीदेवी को सान्त्वा देंगे। माधव ! आज आप मुखपर आँसुओं की धारा बहाने वाली द्रुपदकुमारी कृष्णा तथा पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को अमृत के समान मधुर वचनों द्वारार सान्त्वना प्रदान करेंगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में कर्ण और अर्जुन का द्वैरथयुद्ध में समागतविषयक सतासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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