महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 94 श्लोक 62-68
चतुनर्वतितम (94) अध्याय: कर्ण पर्व
अपने शंखनाद से नदियों, पर्वतों, कन्दराओं तथा काननों को प्रतिध्वनित करके आपके पुत्र की सेना को भयभीत करते हुए वे दोनों श्रेष्ठतम वीर युधिष्ठिर का आनंद बढ़ाने लगे।। भारत ! उस शंखध्वनि को सुनते ही समस्त कौरव योद्धा मद्रराज शल्य तथा भरतवंशियों के अधिपति दुर्योधन को वहीं छोड़कर वेगपूर्वक भागने लगे । उस समय उदित हुए दो सूर्याे के समान उस महासमर में प्रकाशित होनेवाले अत्यन्त कांतिमान् अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण के पास आकर समस्त प्राणी उनके कार्य का अनुमोदन करने लगे। समरभूमि में कर्ण के बाणों से व्याप्त हुए वे दोनों शत्रुसंतापी वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन अन्धकार का नाश करके आकाश में उदित हुए निर्मल अंशुमाली सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहे थे। उन बाणों को निकालकर वे अनुपम पराक्रमी सर्वसमर्थ श्रीकृष्ण और अर्जुन सुहृदों से घिरे हुए छावनी पर आये और यज्ञ में पर्दापण करने वाले भगवान विष्णु तथा इन्द्र के समान वे दोनों ही सुखपूर्वक शिविर के भीतर प्रविष्ट हुए। उस महासमर में कर्ण के मारे जाने पर देवता, गन्धर्व, मनुष्य, चारण, महर्षि, यक्ष तथा बडे़-बडे़ नागों ने भी आपकी जय हो, वद्धि हो ऐसा कहते हुए बड़ी श्रद्धा से उन दोनों का समादर किया। जैसे बलासुर का दमन करके देवराज इन्द्र को भगवान विष्णु अपने सुहृदों के साथ आनंदित हुए थे, उसी प्रकार श्रीकृष्ण और अर्जुन कर्ण का वध करके यथायोग्य पूजित तथा अपने उपार्जित गुण-समूहों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसित हो हितैषी-सम्बंधियों सहित बडे़ हर्ष का अनुभव करने लगे।
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