महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 133 श्लोक 20-38

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त्रयस्त्रिंशदधिकशतकम (133) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकत्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 20-38 का हिन्दी अनुवाद

तब भीमसेन के वध की अभिलाषा रखकर कर्ण ने वेग पूर्वक एक शक्ति हाथ में ली, जिसका डंडा सुवर्ण और वैदूर्यमणि से जअित होने के कारण विचित्र दिखायी देता था। वह महाशक्ति दूसरी काल शक्ति के समान प्रतीत होती थी। महाबली राधा पुत्र कर्ण ने जीवन का अन्त कर देने वाली उस शक्ति को लेकर ऊपर उठाया और उसे धनुष पर रख कर भीमसेन पर चला दिया। इन्द्र के वज्र की भाँति उस शक्ति को छोड़कर बलवान् सूत नन्दन कर्ण ने बड़े जो से गर्जना की। उस समय उस सिंहनाद को सुनकर आपके पुत्र कड़े प्रसन्न हुए। कर्ण के हाथ से छूटकर आकाश में सूर्य और अग्नि के समान प्रकाशित होने वाली उस शक्ति को भीमसेन ने सात बाणों से आकाशउ में ही काट डाला। माननीय नरेश ! केचुल से छूटी हुई सर्पिणी के समान उस शक्ति के टुकड़े - टुकड़े करके फिर भीमसेन ने कुपित हो युद्ध स्थल में सूत पुत्र कर्ण के प्राणों की खोज करते हुए से सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए, यमदण्ड के समान भयंकर, मयूर प्रख एवं स्वर्ण पंख से विभूषित बाणों को उसके ऊपर चलाना आरम्भ किया। तब कर्ण ने भी सुवर्णमय पीठ वाले दूसरे दुर्धर्ष एवं विशाल धनुष को हाथ में लेकर खींचा और बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी।
राजन् ! वसुषेण ( कर्ण ) के छोड़े हुए नौ विशाल बाणों को पाण्डु पुत्र भीमसेन ने झुकी हुई गाँठ वाले नौ बाणों द्वारा काट गिराया। महाराज ! भीमसेन ने कर्ण के बाणों को काटकर सिंह के समान गर्जना की। वे दोनों बलवान् वीर कभी गाय के लिये लड़ने वाले दो साँड़ों के समान हँकड़ते और कभी मांस के लिये परस्पर जूझने वाले दो सिंहों के समान दहाड़ते थे। वे गोशाला में लड़ने वाले दो बड़े - बड़े साँड़ों के समान एक दूसरे पर चोट करने की इच्छा रखते हुए अवसर ढूंढ़ते और परस्पर आँखें तरेर कर देखते थे। जैसे दो विशाल गजराज अपने दाँतों के अग्र भागों द्वारा एक दूसरे से भिड़ गये हों, उसी प्रकार कर्ण और भीमसेन धनुष को पूर्णतः खींचकर छोड़े गये बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुँचाते थे। महाराज ! वे परस्पर शस्त्रों की वर्षा करके एक देसरे को दग्ध करते, क्रोध से आँखें फााड़ - फाड़कर देखते, कभी हँसते और कभी बारंबार एक दूसरे को डाँटते एवं शंखनाद करते हुए परस्पर जूझ रहे थे।
आर्य ! भीमसेन ने पुनः कर्ण के धनुष को मुट्ठी में पकड़ने की जगह से काट डाला, शंख के समान श्वेत रंग वाले उसके घोड़ों को भी बाणों द्वारा यमलोक पहुँचा दिया और उसके सारथि को भी मारकर रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। घोड़े और सारथि के मारे जाने पर समरांगण में बाणों द्वारा आच्छादित हुआ सूर्य पुत्र कर्ण दुस्तर चिन्ता में निमग्न हो गया। बाण समूहों से मोहित होने के कारण उसे यह नहीं सूझता था कि अब क्या करना चाहिये। कर्ण को इस प्रकार संकट में पड़ा देख राजा दुर्योधन क्रोध से काँपने लगा और दुर्जय को आदेश देता हुआ बोला - ‘दुर्जय ! जाओ ! राधा नन्दन कर्ण को सामने ही पाण्डु पुत्र काल का ग्रास बनाना चाहता है। तुम कर्ण का बल बढ़ाते हुए उस दिना दाढ़ी मूछ के भुंडे भीमसेन को शीघ्र मार डालो’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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