महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 36-52
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )
‘अभिमन्यु का स्वर वाणी की ध्वनि के समान सुखद, मनोहर तथा कोयल की काकली के तुल्य मधुर था । उसे न सुनने पर मेरे हृदय को क्या शान्ति मिलेगी ? । ‘उसके रूप की कहीं तुलना नहीं थी। देवताओं के लिये भी वैसा रूप दुर्लभ है । यदि वीर अभिमन्यु के उस रूप को नहीं देख पाता हूँ तो मेरे हृदय को क्या शान्ति मिलेगी ? ।‘प्रणाम करने में कुशल और पितृवर्ग की आज्ञा का पालन करने में तत्पर अभिमन्यु को यदि आज मैं नहीं देखता हूँ तो मेरे हृदय को क्या शान्ति मिलेगी ? । ‘जो सदा बहुमूल्य शय्या पर सोने के योग्य और सुकुमार था, वह सनाथशिरोमणि वीर अभिमन्यु आज निश्चय ही अनाथ की भांति पृथ्वी पर सो रहा है ।‘आज से पहले सोते समय परम सुन्दरी स्त्रियां जिसकी उपासना करती थीं, अपने क्षत-विक्षत अंगों से पृथ्वी पर पडे हुए उस अभिमन्यु के पास आज अमंगलजनक शब्द करने वाली सियारिनें बैठी होंगी ।‘जिसे पहले सो जाने पर सूत, मागध और बन्दीजन जगाया करते थे, उसी अभिमन्यु को आज निश्चय ही हिंसक जन्तु अपने भयंकर शब्दों द्वारा जगाते होंगे । ‘उसका वह सुन्दर मुख सदा छत्र की छाया में रहने योग्य था, परंतु आज युद्ध भूमि में उडती हुई धूल उसे आच्छादित कर देगी । ‘हा पुत्र ! मैं बडा भाग्यहीन हूँ । निरन्तर तुम्हें देखते रहने पर भी मुझे तृप्ति नहीं होती थी, तो भी काल आज बलपूर्वक तुम्हें मुझसे छीनकर लिये जा रहा है । ‘निश्चय ही वह संयमनी पुरी सदा पुण्यवानों का आश्रय है, जो आज अपनी प्रभा से प्रकाशित और मनोहारिणी होती हुई भी तुम्हारे द्वारा अत्यन्त उद्भासित हो उठी होगी ।‘अवश्य ही आज वैवस्वत यम, वरुण, इन्द्र और कुबेर वहां तुम जैसे निर्भय वीर को अपने प्रिय अतिथि के रूप में पाकर तुम्हारा बडा आदर-सत्कार करते होंगे । इस प्रकार बारंबार विलाप करके टूटे हुए जहाज वाले व्यापारी की भांति महान् दु:ख से व्याप्त अर्जुन ने युधिष्टिर से इस प्रकार पूछा - । ‘कुरुनन्दन ! क्या उन श्रेष्ठ वीरों के साथ युद्ध करता हुआ अभिमन्यु रणभूमि में शत्रुओं का संहार करके सम्मुख मारा जाकर स्वर्ग लोक में गया है ? । ‘अवश्य ही बहुत से श्रेष्ठ एवं सावधानी के साथ प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले योद्धाओं के साथ अकेले लडते हुए अभिमन्यु ने सहायता की इच्छा से मेरा बार-बार स्मरण किया होगा । ‘जब कर्ण, द्रोण और कृपाचार्य आदि ने चमकते हुए अग्रभाग वाले नाना प्रकार के तीखे बाणों द्वारा मेरे पुत्र को पीडित किया होगा और उसकी चेतना मन्द होने लगी होगी, उस समय अभिमन्यु ने बारंबार विलाप करते हुए यह कहा होगा कि यदि यहां मेरे पिताजी होते तो मेरे प्राणों की रक्षा हो जाती । मैं समझता हूँ, उसी अवस्था में उन निर्दयी शत्रुओं ने उसे पृथ्वी पर मार गिराया होगा । ‘अथवा वह मेरा पुत्र, श्रीकृष्ण का भानजा था, सुभद्रा की कोख से उत्पन्न हुआ था, इसलिये ऐसी दीनतापूर्ण बात नहीं कह सकता था ।‘निश्चय ही मेरा यह हृदय अत्यन्त सुदृढ एवं वज्रसार का बना हुआ है, तभी तो लाल नेत्रों वाले महाबाहु अभिमन्यु को न देखने पर भी यह फट नहीं जाता है।
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