महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 102 श्लोक 21-39

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द्वîधिकशततम (102) अध्यागय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्वîधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद

नरेश्वर ! द्रोणाचार्य के द्वारा युद्ध में पर्वतास्त्र का प्रयोग होने पर वायु शान्त और सम्पूर्ण दिशाएँ स्वच्छ हो गयी। तब वीरवर पाण्डुपुत्र अर्जुन ने त्रिगर्तराज के रथ समूहों को उत्साहरहित एवं पराक्रमशून्य करके उन्हें युद्ध से विमुख कर दिया। तब रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य, दुर्योधन, अश्वत्थामा, शल्य, काम्बोजराज सुदक्षिण, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द तथा बाहृीकदेशीय सैनिकों के साथ राजा बाहृीक पार्थकों की सम्पूर्ण दिशाओं को अर्थात् उनके सभी भागों को रोक दिया। उसी प्रकार भगदत्त तथा महाबली श्रुतायुने हाथियों की सेना द्वारा भीमसेन की सम्पूर्ण दिशाओं को रोक लिया। प्रजानाथ ! भूरिश्रवा, शल और शकुनि ने तीखे और चमकीले बाण समूहों की वर्षा करके माद्रीकुमार नकुल और सहदेव को रोका। भीष्म सैनिकों सहित आपके पुत्रों के साथ संगठित होकर युद्ध में राजा युधिष्ठिर के पास जाकर उन्हें सब ओर से घेर लिया। हाथियों की सेना को आते देख वीर कुन्तीकुमार भीमसेन जैसे वन में सिंह अपने जबड़ों को चाटता है, उसी प्रकार मुँह के दोनों कोनो को चाटने लगे। गदा हाथ में लिये हुए भीमसेन को देखकर उन गजारोही सैनिकों ने उन्हें यत्नपूर्वक चारों ओर से घेर लिया।
उस गजसेना के बीच में पड़े हुए पाण्डुनन्दन भीमसेन महान् मेघ-समूह के मध्य में स्थित हुए सूर्य के समान प्रकाशित होने लगे। पाण्डवश्रेष्ठ भीमसेन ने अपनी गदा की चोट से सारी गज सेनाओं को उसी प्रकार नष्ट कर दिया, जैसे वायु महान् मेघों की सब और फली हुई अनुपम घटा को छिन्न-भिन्न कर देती है। महाबली भीमसेन की गदा से आहत हुए दन्तार हाथी युद्ध स्थल में गरजते हुए मेघों के समान आर्तनाद करने लगे। हाथियों के दाँतों से अनेक बाद विदीर्ण हुए भीमसेन युद्ध के मुहाने पर खिले हुए अशोक के समान शोभा पा रहे थे। उन्होंने किसी दन्तार हाथी का दाँत पकड़कर उखाड़ लिया और उस हाथी को दन्तहीन बना दिया। फिर उसी दाँत के द्वारा उसके कुम्भस्थल में प्रहार करके दण्डधारी यमराज की भाँति समराडंण में उसे मार गिराया। खून से रँगी हुई गदा लेकर मेदा और मज्जा के लेप से अपनी शोभा बिगाड़कर रक्त का उबटन लगाये हुए भीमसेन भगवान् रूद्र के समान दिखायी दे रहे थे। राजन् ! इस प्रकार भीमसेन की मार खाकर मरने से बचे हुए महान् गज अपनी ही सेना को रौंदते हुए सम्पूर्ण दिशाओं में भागने लगे। भरतश्रेष्ठ ! सब ओर भागते हुए उन महान् गजराओं के साथ ही दुर्योधन की सारी सेना युद्धभूमि से विमुख हो चली।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीमपराक्रमविषयक एक सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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