महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 107 श्लोक 16-36

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सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-36 का हिन्दी अनुवाद

समरभूमि में क्रोध में भरे हुए यमराज, वज्रधारी इन्द्र, पाशधारी वरूण अथवा गदाधारी कुबेर को भी जीता जा सकता है; परंतु इस महासमर में कुपित भीष्म को पराजित करना असम्भव है। श्रीकृष्ण ! ऐसी स्थिति में मैं अपनी बुद्धि की दुर्बलता के कारण युद्धस्थल में भीष्म को सामने देखकर शोक के समुद्र में डूबा जा रहा हूंँ। दुर्धर्ष वीर श्रीकृष्ण ! अब मैं वन को चला जाऊँगा। मेरे लिये वन में जाना ही कल्याणकारी होगा। मुझे युद्ध अच्छा नहीं लग रहा है; क्योंकि उसमें भीष्म सदा ही हमारे सैनिकों का विनाश करते आ रहे है। जैसे पतंग प्रज्वलित आग की ओर दौड़ा जाकर एक मात्र मृत्यु को ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार हमने भी भीष्म पर आक्रमण करके मृत्यु का ही वरण किया है। वाष्र्णेय ! राज्य के लिये पराक्रम करके मैं क्षीण होता जा रहा हूं। मेरे शूरवीर भाई बाणों की मार से अत्यन्त पीडि़त हो रहे है। मधुसूदन ! मेरे लिये भ्रातृस्नेहवश ये भाई राज्य से वचिंत हुए और वन में भी गये। मेरे ही कारण कृष्णा को भरी सभा में अपमान का कष्ट भोगना पड़ा। इस समय मैं जीवन को ही बहुत मानता हूँ। आज तो जीवन भी दुर्लभ हो रहा है। अब से जीवन जितने दिन शेष हैं, उनके द्वारा मैं उत्तम धर्म का आचरण करूँंगा। केशव ! यदि भाईयों सहित मुझ पर आपका अनुग्रह है तो मुझे स्वधर्म के अनुकूल कोई हितकारक सलाह दीजिए।
करूणा से पे्ररित होकर कहे हुए युधिष्ठिर ये विस्तृत वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सान्त्वना देते हुए कहा। धर्म पुत्र ! सत्यप्रतिज्ञ कुन्ती कुमार ! विषाद न किजिए, आपके भाई बडे़ं ही शुरवीर, दुर्जय तथा शत्रुओं का सहांर करने समर्थ है। अर्जुन और भीमसेन वायु तथा अग्नि के समान तेजस्वी हैं। माद्रीकुमार नकुल और सहदेव भी पराक्रम में दो इन्द्रो के समान हैं। पाण्डुनन्दन ! महाराज ! आप सौहार्दवष मुझे भी आज्ञा दीजिए। मैं भीष्म के साथ यु़द्ध करूँगा। भला आप की आज्ञा मिल जाने पर मैं इस महासमर में क्या नहीं कर सकता। यदि अर्जुन भीष्म को मारना नहीं चाहते हैं तो मैं युद्ध मे पुरूषप्रवर भीष्म को ललकारकर धृतराष्ट्र पुत्रो के देखते-देखते मार डालुँगा। पाण्डुनन्दन ! यदि भीष्म के मारे जाने पर ही आपको अपनी विजय दिखायी दे रही है तो मैं एकमात्र रथ की सहायता से आज कुरूकुल वृ़द्ध पितामाह भीष्म रथ को मार डालुँगा। राजन्! कल युद्ध में इन्द्र के समान मेरा पराक्रम देखियेगा। मैं बडें-बडें अस्त्रों का प्रहार करने वाले भीष्म को रथ से मार गिराऊँगा। जो पाण्डवों का शत्रु है, वह मेरा भी शत्रु हैं, इसमें संदेह नहीं है। जो आपके सुहद् है, वे मेरे है और जो मेरे सुहद् है, वे आपके ही है। राजन् ! आपके भाई अर्जुन मेरे सखा, सम्बन्धी और शिष्य है। मैं अर्जुन के लिये अपना मांस भी काटकर दे दूंगा।
ये पुरूषसिंह अर्जुन भी मेरे लिये अपने प्राणों तक का परित्याग कर सकते है। तात ! हम लोगों में यह प्रतिज्ञा हो चुकी है कि हम एक दूसरे को संकट से उबारेंगे। राजेन्द्र ! आप मुझे युद्ध के काम में नियुक्त कीजिये। मैं आपका योद्धा बनूँगा। युद्ध के पहले उपप्लव्यनगर में सब लोगों के सामने अर्जुन जो यह प्रतिज्ञा की थी मैं गंगनन्दन भीष्म का वध करूँगा, बुद्धिमान पार्थ के उस वचन का पालन करना मेरे लिये आवश्यक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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