महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 109 श्लोक 1-20

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नवाधिकशततम (109) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

भीष्म और दुर्योधन का संवाद तथा भीष्म के द्वारा लाखों सैनिकों का संहार

धृतराष्ट्र ने पूछा - संजय ! पान्चालराजकुमार शिखण्डी ने समरभूमि में कुपित होकर नियमपु्र्वक व्रत का पालन करने वाले धर्मात्मा पितामह गंगानन्दन भीष्मपर किस प्रकार धावा किया ? पाण्डवों की सेना के किन-किन वीर महारथियों ने अस्त्र-श्स्त्र लेकर विजय की अभिलाषा से उस शीघ्रता के समय अपनी शीघ्रकारिता परिचय देते हुए श्खिण्डी का संरक्षण किया ? महापराक्रमी शान्तनुनन्दन भीष्म ने दसवें दिन पाण्डवों तथा संजयों के साथ किस प्रकार युद्ध किया ? रणक्षेत्र में शिखण्डी ने भीष्म पर आक्रमण किया, यह मुझसे सहन नही हो रहा है। कहीं उनका रथ तो नही टुट गया था अथवा बाणों का प्रहार करते- करते उनके धनुष के टुकडे-टुकडे तो नही हो गये थे? संजय ने कहा - भरतश्रेष्ठ ! संग्राम में युद्ध करते समय भीष्म के न तो धनुष के ही टुकडे -टुकडे हुए थे और न उनका रथ ही टुटा हुआ था। वे समरभूमि में झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा शत्रुओं का संहार करते जा रहे थे। राजन ! आपके कई लाख महारथी, हाथी और घोडे सुसज्जित हो पितामह भीष्म को आगे करके युद्ध के लिये बढ रहे थे। कुरूनन्दन ! युद्धविजयी भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार रणक्षेत्र में कुन्तीकुमारो ंका निरन्तर संहार कर रहे थे। बाणों द्धारा शत्रुओं को मारते हुए युद्धपरायण महाधनुर्धर भीष्म को पाण्डवों सहित सारे पान्चाल योद्धा भी आगे बढ़ने से रोक न सके। दसवें दिन शत्रु की सेना पर भीष्म के द्धारा सैकडों और हजारों पैन बाणों की वर्षा की जाने लगी पंरतु पाण्डव इसे रोक न सके। पाण्डु के ज्येष्ठ भ्राता घृतराष्ट्र ! पाशधारी यमराज के समान महाघनुर्घर भीष्म को युद्ध में जीतने के लिए पाण्डव कभी समर्थ न हो सके।
महाराज ! तदन्तर किसी से परास्त न होने वाले और बायें हाथ से भी बाण चलाने में समर्थ धनंजय अर्जुन समस्त रथियों को भंयभीत करते हुए उनक निकट आये। वे कुन्तीकुमार सिंह के समान उच्च स्वर से गर्जना करते हुए बारंबार अपने धनुष की डोर खीचने और बाणसमुहों की वर्षा करते हुए रणक्षेत्र में काल के समान विचरते थे। राजन् ! भरतश्रेष्ठ ! जैसे सिंह के शब्द से अत्यन्त भयभीत होकर मृग भाग जाते है, उसी प्रकार अर्जुन के सिंहनाद से संत्रस्त हुए आपके सैनिक महान् भय के कारण भागने लगे। पाण्डुनन्दन अर्जुन को जीतने और आपकी सेना को पीडित होती देख दुर्योधन अत्यन्त पीडित होकर भीष्म से बोला- तात ! ये श्वेत घोडोंवाले पाण्डुपुत्र अर्जुन, जिनके सारथि श्रीकृष्ण है, मेरे सारे सैनिकों को उसी प्रकार दग्ध करते है, जैसे दावानल वन को। योद्धाओं में श्रेष्ठ गंगानन्दन ! देखिये, मेरी सेनाएँ सब ओर भाग रही है और अर्जुन युद्धस्थल में खड़े हो उन्हें खदेड़ रहे है। शत्रुओं को संताप देने वाले पितामह ! जैसे चरवाहा जंगल में पशुओं को हाँकता है, उसी प्रकार मेरी यह सेना अर्जुन के द्वारा हाँकी जा रही है। धनंजय के बाणों से आहत हो व्यूह भंग करके इधर-उधर भागने वाली मेरी सेना को ये दुर्धर्ष वीर भीमसेन भी पीछे से खदेड़ रहे है। सात्यकि, चेकितान, पाण्डु और माद्री के पुत्र नकुल सहदेव और पराक्रमी अभिमन्यु भी मेरी सेेना को भगा रहे है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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