महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 117 श्लोक 22-40

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सप्तदशाधिकशततम (117) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-40 का हिन्दी अनुवाद

महाराज! उस समय रणक्षेत्र में शिखण्डी वज्र के समान स्पर्शवाले तथा सर्पविष के समान भयंकर बाणों द्वारा पितामह भीष्म को घायल करने लगा। परंतु जनेश्वशर ! उसके चलाये हुए वे बाण आपके ताऊ के शरीर में कोई घाव या वेदना नहीं उत्पन्न कर पाते थे। गंगानन्दन भीष्म उस समय मुस्कराते हुए उन बाणों की चोट सह रहे थे। जैसे गर्मी से कष्ट पाने वाला मनुष्य अपने ऊपर जल की धारा ग्रहण करता है, उसी प्रकार गंगानन्दन भीष्म शिखण्डी की बाण धारा को ग्रहण कर रहे थे। महाराज! उस युद्ध स्थल में समस्त क्षत्रियों ने देखा, भयंकर रूपधारी भीष्म महामना पाण्डवों की सेनाओं को दग्ध कर रहे थे। आर्य! उस समय आपके पुत्र ने अपने समस्त सैनिकों से कहा- ‘वीरों! तुम लोग समरभूमि में अर्जुन पर चारों ओर से धावा करो। ‘धर्मश भीष्म समरागंण में तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। अतः तुम लोग महान! भय का परित्याग करके पाण्डवों के साथ युद्ध करो। ‘सुवर्णमय तालचिन्ह से युक्त विशाल ध्वज से सुशोभित होने वाले भीष्मजी हम सबकी रक्षा करते हुए युद्ध के मैदान में खड़े हैं।
हम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों के लिये ही कल्याणकारी आश्रय और कवच हैं। ‘यदि सम्पूर्ण देवता भी एकत्र हो युद्ध के लिये उद्योग करें तो वे भी भीष्म् का सामना करने में समर्थ नहीं हो सकते, फिर कुन्ती के महाबली पुत्र तो मरणधर्मा मनुष्य ही हैं। वे उन महात्मा भीष्म का सामना क्या कर सकते हैं ? ‘अतः योद्धाओं! युद्धभूमि में अर्जुन को सामने पाकर पीछे न भागो। मैं स्वयं समरागंण में प्रयत्नपूर्वक आज पाण्डुकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करूंगा। तुम सब नरेश सब ओर से सावधान होकर मेरे साथ रहो। राजन! आपके धनुर्धर पुत्र की ये जोशभरी बातें सुनकर वे सभी महाबली और शक्तिशाली योद्धारोष में भर गये। ये विदेह, कलिंग, दासेरक, निषाद, सौवीर, बाह्लीक, दरद, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शरसेन, शिबि, वसाति, शाल्व, शक, त्रिगर्त, अम्बष्ठ और केकय देशों के नरेशगण उस महायुद्ध में कुन्ती कुमार अर्जुन पर उसी प्रकार धावा करने लगे, जैसे पतंग प्रज्वलित आग पर टूटे पड़ते हैं। राजेन्द्र! उस रणक्षेत्र में कुन्ती कुमार अर्जुन अप्रतिम तेजस्वी वीर थे और पूर्वोक्तल नरेश उनके सामने पतंगों के समान दोडे़ चले आ रहे थे। महाराज! महाबली धनंजय ने दिव्यास्त्रों का चिन्तन करके उनका धनुष पर संधान किया और उन महावेगशाली अस्त्रों द्वारा सेना सहित इन समस्त महारथियों को जलाकर भस्म कर डाला। जैसे आग पतंगों को जलाती है, उसी प्रकार अर्जुन ने अपने बाणों के प्रताप से उन सबको दग्ध कर दिया।
सुद्रढ़ धनुष धारण करने वाले अर्जुन जब सहस्त्रों बाणों की सृष्टि करने लगे, उस समय उनका गाण्डीव धनुष आकाश में प्रज्वलित-सा दिखायी देने लगा। महाराज! वे सब नरेश बाणों से पीडित हो गये थे। उनके विशाल ध्वज छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे। वे सब राजा एक साथ मिलकर भी कपिध्वज अर्जुन के सामने छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे। वे सब राजा एक साथ मिलकर भी कपिध्वज अर्जुन के सामने टिक न सके। किरीटधारी अर्जुन के बाणों से पीड़ित हो रथी अपने ध्वजों के साथ ही पृथ्वी पर गिर पडे़, घुड़सवार घोड़ों के साथ ही धराशायी हो गये और हाथियों सहित हाथी सवार भी ढह गये। अर्जुन की भुजाओं से छूटे हुए बाणों से एवं अनेक भागों में विभक्त होकर चारों ओर भागती हुई राजाओं की सेनाओं से वहां की सारी पृथ्वी व्याप्त हो रही थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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