महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 62 श्लोक 1-17

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

धृष्टघुम्न और शल्य आदि दोनो पक्ष के वीरो का युद्ध तथा भीमसेन के द्वारा गजसेना का संहार

धृतराष्ट्र बोले- संजय! में पुरूषार्थ की अपेक्षा भी दैवको प्रधान मानता हूं, जिससे मेरे पुत्र दुर्योधन की सेना पाण्‍डवों की सेना से पीड़ित हो रही है । तात ! तुम प्रतिदिन मेरे ही सैनिक के मारे जाने की बात कहते हो और पाण्‍डवों को सदा व्यग्रता से रहित तथा हषोल्लास से परिपूर्ण बताते हो ।संजय ! आजकल मेरे पुत्र और सैनिक पुरूषार्थ से हीन हो रहे हैं और शत्रुओं ने उन्‍हें धराशायी किया और मार डाला है। प्रतिदिन वे शत्रुओं के हाथ से मारे ही जा रहे हैं। उनके सम्बन्ध में तुम सदा ऐसे ही समाचार देते हो ।मेरे बेटे विजय के लिये यथाशक्ति चेष्टा करते हो और लड़ते हो, तो भी पाण्डव ही विजयी होते और मेरे पुत्रों की ही पराजय होती है ।तात ! ऐसा जान पड़ता है कि मुझे दुर्योधन के कारण सदा अत्यन्त दुःसह एवं तीव्र दुख की बहुत सी बातें सुननी पडेगी ।संजय ! मैं ऐसा कोई उपाय नही देखता, जिससे पाण्डव हार जाय और मेरे पुत्रों को युद्ध में विजय प्राप्त हो । संजय ने कहा- राजन् ! उस युद्ध में मानव शरीरों का भारी संहार हुआ है। हाथी, घोडे़ और रथों का भी विनाश देखा गया है। वह सब आप स्थिर होकर सुनिये। यह आपके ही महान् अन्याय का फल है ।
शल्य के बाणों से पीडित धृष्टघुम्न अत्यन्त कुपित हो उठे और उन्‍होंने लोहे के बने हुए नौ बाणों से मद्रराज शल्य को गहरी पीड़ा पहुंचायी ।वहां हम लोगों ने धृष्टधुम्न का यह अद्भुत पराक्रम देखा कि उन्‍होंने संग्राम भूमि में शोभा पाने वाले राजा शल्य को तुरन्त ही आगे बढने से रोक दिया ।उस समय उन दोनों महारथियों में पराक्रम की दृष्टि से कोई अन्तर नही दिखाई देता था। दो घडी तक दोनों मे समान-सा युद्ध होता रहा ।महाराज ! तदनन्तर राजा शल्य ने युद्ध स्थल में शाण पर तीक्ष्ण किये हुए पीले रंग के भल्ल नामक बाण से धृष्टघुम्न का धनुष काट दिया । इसके बाद जैसे बादल बरसात में पर्वत जल की वर्षा करते है, उसी प्रकार उन्‍होंने धृष्टघुम्न पर रणभूमि में बाणो की वर्षा करके उन्‍हें सब और से ढक दिया ।तदनन्तर धृष्टघुम्न के पीड़ित होने पर क्रोध से भरे हुए अभिमन्यु ने मद्रराज शल्य के रथ पर बडे वेग से आक्रमण किया । मद्रराज के रथ के निकट पहुंचकर अत्यन्त क्रोध से भरे हुए अनन्त आत्मबल से सम्पन्न अर्जुन कुमार ने अपने पैने बाणों द्वारा ऋतायनपुत्र राजा शल्य को घायल कर दिया । राजन् ! तब आपके पुत्र रणभूमि में अभिमन्यु को बन्दी बनाने की इच्छा से तुरन्त वहां आये और मद्रराज शल्य के रथ को चारो और से घेरकर युद्ध के लिये खडे हो गये ।भारत ! आपका भला हो । दुर्योधन, विर्कण, दुःशासन, विविंशति, दुर्भषण, दुःसह, चित्रसेन, दुर्मूख, सत्यव्रत तथ पुरूमित्र-ये आपके पुत्र मद्रराज के रथ की रक्षा करते हुए युद्धभुमि में डटे हुए थे ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।