महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-20
त्रिषष्टितम (63) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
युद्धस्थल प्रचण्ड पराक्रमकारी भीमसेन का भीष्म के साथ युद्ध तथा सात्यकि और भुरिश्रवा की मुठभेड
संजय कहते हैं- महाराज ! हाथियों की उस सेना के मारे जाने पर आपके पुत्र दुर्योधन ने समस्त सैनिकों की आज्ञा दी कि सब मिलकर भीमसेन को मार डालो ।
तदनन्तर आपके पुत्र की आज्ञा से समस्त सेनाएं भैरव गर्जना करती हुई भीमसेन पर टूट पडी ।सेना का वह अनन्त वेग देवताओं के लिये भी दुःसह था। पूर्णिमा को बढे हुए समुद्र के समान अपार जान पड़ता था ।वह सैन्य-समुद्र रथ, हाथी और घोडो से भरा हुआ था। शंख और दुन्दुभियों को ध्वनि से कोलाहलपूर्ण हो रहा था। उनमें रथ और पैदलो की संख्या नही बतायी जा सकती थी तथा उस सेना में सब और धुल व्याप्त हो रही थी । दूसरे महासागर के समान उस अक्षोम्य सैन्य-समुद्र को युद्ध में भीमसेन ने तटप्रदेश की भांति रोक दिया ।राजन् ! उस समय संग्राम-भूमि में हम लोगों ने महामना पाण्डुनन्दन भीमसेन का अत्यन्त आश्चर्यमय अतिमानुष कर्म देखा था ।घोडे, हाथी तथा रथरहित जिनते भी भूपाल वहां आगे बढ रहे थे, उन सबको केवल गदा की सहायता से भीमसेन ने बिना किसी घबराहट के रोक दिया ।रथियों में श्रेष्ठ भीमसेन उस सारे सैन्य समूह को गदा द्वारा रोककर उस भयंकर युद्ध में मेरू पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ थे ।
उस महान् भयंकर तथा अत्यन्त दारूण भय के समय महाबली भीमसेन को उनके भाई, पुत्र, द्रुपदकुमार धृष्टघुम्न, द्रौपदी के पांचों पुत्र, अभिमन्यु और अपराजित वीर शिखण्डी- ये कोई भी छोड़कर नही गये । तत्पश्चात् पूर्णतः फौलाद की बनी हुई विशाल एवं भारी गदा हाथ में लेकर भीमसेन दण्डपाणि यमराज की भांति आपके सैनिको पर टूट पडे़ । फिर वे प्रभावशाली बलवान् पाण्डुनन्दन रथियों और घोडों समूह को नष्ट करके अपनी भुजाओं के वेग से रथों के समुदाय को खींचते और नष्ट करते हुए प्रलयकाल के यमराज की भांति संग्रामभूमि में विचरने लगे । पाण्डुनन्दन भीम अपने महान् वेग से रथसमूहों को खींचकर नष्ट कर देते और शीघ्र ही सारी सेना को उसी प्रकार रौंद डालते थे, जैसे हाथी नरकुल पौधों को ।महाबाहु भीमसेन रथों से रथियों को, हाथियों से हाथी सवारों को, घोडों की पीठों के घुडसवारों को और पृथ्वी पर पैदलों को मसलते हुए गदा से आपके पुत्र की सेना के सब लोगों को उसी प्रकार नष्ट कर देते थे, जैसे हवा अपने वेग से वृक्षों को उखाड फेकती है । हाथियों और घोड़ों को मार गिराने वाली उनकी वह गदा भी भज्जा, वसा, मांस तथा रक्त में सनकर बडी भयानक दिखायी देती थी ।जहां-जहां मरकर गिरे हुए मनुष्य, हाथी और घोड़ों से वह सारी रणभूमि मृत्यु के निवास स्थान-सी होती थी ।भीमसेन की उस संहारकारिणी भयंकर गदा को लोगों को प्रलय काल में पशुओं (जीवों) का संहार करने वाले रूद्र के पिनाक और यमदण्ड के समान भयंकर देखा। उसकी आवाज इन्द्र के व्रज के समान थी ।अपनी गदा को घुमाते हुए महामना कुन्तीकुमार भीमसेन का रूप युगान्त-काल के यमराज के समान अत्यन्त भयंकर प्रतीत होता था ।
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