महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-21
चतुःषष्टितम (64) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम, कौरवो की पराजय और चैथे दिन के युद्ध की समाप्ति
संजय कहते हैं- राजन् ! तब भूरिश्रवा ने अत्यन्त क्रुद होकर सात्यकि को नौ बाणों से उसी प्रकार बींध डाला, जैसे महान् गजराज को अंकुशाओद्वारा पीड़ित किया जाता है ।तब अमेय आत्मबल सम्पन्न सात्यकि ने भी झुकी हुई गांठवाले बाणों से सब लोगों के देखते देखते कुरूवंशी भुरिश्रवा को रोक दिया । यह देख भाईयों सहित राजा दुर्योधन ने युद्ध के लिये उघत होकर भूरिश्रवा को चारों और से घेरकर उनकी रक्षा में तत्पर हो गये ।उधर महान् तेजस्वी समस्त पाण्डव भी युद्ध में वेगपूर्वक आगे बढने वाले सात्यकि को सब और से घेरकर समरभूमि में डट गये ।भारत ! क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने गदा उठाकर आपके दुर्योधन आदि सब पुत्र को अकेले ही रोक दिया ।तब क्रोध और असमर्ष में भरे हुए आपके पुत्र नन्दक ने कई हजार रथियो के साथ आकर विशाल पर तेज किये हुए कंकपत्रयुक्त छः बाणों से महाबली भीमसेन को बींध डाला । कुपित हुए दुर्योधन ने भी महारथी भीमसेन को उस युद्ध में उनकी छाती को लक्ष्य करके नौ तीखे बाण मारे ।तब महाबली महाबाहु भीमसेन अपने श्रेष्ठ रथपर आरूढ हो गये और सारथि विशोक से इस प्रकार बोले- ।‘ये महारथी शूरवीर धृतराष्ट्र पुत्र अत्यन्त कुपित हो युद्ध में मुझे ही मारने के लिये उघत हो यहां आये है ।
‘सूत ! मेरे मन में बहुत वर्षों से जिसका चिन्तन हो रहा था, वह मनोरथरूपी वृक्ष आज सफल होना चाहता है; क्योकि इस समय यहां मैं दुर्योधन के भाईयों को एकत्रित देख रहा हूं । ‘विशोक ! जहां रथ के पहियों से ऊपर उडी हुई धुल बाणसमुहों के साथ अंतरिक्ष और दिगन्त मैं फेल रही है, वही स्वयं राजा दुर्योधन कवच आदि से सुसज्जित होकर युद्ध के लिये खडा है ।उसके कुलीन और मदोन्मत्त भाई भी वही कवच बांध कर खडे़ है। आज तुम्हारे देखते देखते मैं इन सब का विनाश करूंगा, इसमें संशय नही है। अतः सारथे ! तुम सावधान होकर संग्राम में मेरे घोड़ों को काबु में रखो । राजन् ! ऐसा कहकर कुन्तीकुमार भीम ने स्वर्णभूषित दस तीखे बाणों द्वारा आपके पुत्र दुर्योधन को बींध डाला और नन्द की छाती में भी तीन बाणों से गहरी चोट पहुंचायी । यह देख दुर्योधन साठ बाणों से महाबली भीमसेन को घायल करके अन्य तीन पैने बाणों से सारथि विशोक को भी घायल कर दिया
राजन् ! इसके बाद दुर्योधन ने युद्धस्थल में तीन तीखे भल्लों द्वारा हॅसते हुए-से भीम के तेजस्वी धनुष को भी बीच से काट दिया ।आपके धनुर्धर पुत्रद्वारा समरांगण में अपने सारथि विशोक को तीखे बाणों के आघात से पीड़ित होता देख भीमसेन सह न सके। उन्होंने कुपित होकर अपना दिव्य धनुष हाथ मे लिया । महाराज ! भरतश्रेष्ठ ! फिर आपके पुत्र के वध के लिये अत्यन्त कुपित होकर उन्होंने पंखयुक्त क्षुरप्रका संधान किया और उसके द्वारा राजा दुर्योधन के उत्तम धनुष को काट डाला ।राजन् ! धनुष कटने पर आपका पुत्र क्रोध से मूछित हो उठा। उसने उस कटे हुए धनुष को फेंककर तुरन्त ही उसे अधिक वेगशाली दूसरा धनुष ले लिया ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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