महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-18
पञ्चाषष्टितम (65) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
धृतराष्ट्र-संजय-संवाद के प्रसङ्ग में दुर्योधन के द्वारा पाण्डवों की विजय का कारण पूछने पर भीष्म का ब्रह्माजी के द्वारा की हुई भगवत्-स्तुति का कथन
धृतराष्ट्र बोले-संजय! पाण्डवों का देवताओं के लिये भी दुष्कर पराक्रम सुनकर मुझे बड़ा भारी भय और विस्मय हो रहा है । सूत संजय! अपने पुत्रों की सब प्रकार से पराजय का हाल सुनकर मेरी चिंता बढ़ती ही जा रही है। सोचता हूं कैसे उनकी विजय होगी ।संजय! निश्र्चय ही विदुर के वाक्य मेरे हृदय को जलाकर भस्म कर डालेंगे, क्योंकि उन्होंने जैसा कहा था, दैवयोग से वह सब वैसा ही होता दिखायी देता है । पाण्डवों की सेनाओं में ऐसे-ऐसे प्रहार कुशल योद्धा हैं, जो शस्त्रविद्या के ज्ञाता एवं योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म आदि समस्त महारथियों के साथ भी युद्ध कर लेते हैं ।तात! महाबली महात्मा पाण्डव किस कारणसे अवध्य है? किसने उन्हें वर दिया है अथवा कौन-सा ज्ञान वे जानते हैं? । जिससे आकाश के तारों के समान वे नष्ट नहीं हो रहे हैं। मैं पाण्डवों के द्वारा बांरबार अपनी सेना के मारे जाने की बात सुनकर सहन नहीं कर पाता हूं । दैववश मेरे ही ऊपर अत्यंत भयंकर दण्ड पड़ रहा है। संजय! क्यों पाण्डव अवध्य हैं और क्यों मेरे पुत्र मारेजा रहे है? यह सब यथार्थरूप से मुझे बताओ ।जैसे अपनी भुजाओं से तैरने वाला मनुष्य महासागर का पार नहीं पा सकता, उसी प्रकार मैं इस दु:ख का अंत किसी प्रकार नहीं देखता हूं ।निश्र्चय ही मेरे पुत्रों पर अत्यंत भयंकर संकट प्राप्त हो गया है। मेरा विश्वास है कि भीमसेन मेरे सभी पुत्रों को मार डालेंगे, इसमें संशय नहीं है ।मैं ऐसे किसी वीर को नहीं देखता, जो रणक्षेत्र में मेरे पुत्रों की रक्षा कर सके। संजय! अवश्य ही मेरे पुत्रों के विनाश की घड़ी आ पहुंची है ।अत: सूत! मैं तुमसे शक्ति और कारण के विषय में जो विशेष प्रदान कर रहा हूं, वह सब यथार्थरूप से बताओ ।युद्ध में अपने सैनिकों को विमुख हुआ देख दुर्योधन ने क्या किया? भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, शकुनि, जयद्रथ, महाधनुर्धर अश्वत्थामा और महाबली विकर्ण ने भी क्या किया? महाप्राज्ञ संजय! मेरे पुत्रों के विमुख होने पर उन महामना महारथियों ने उस समय क्या निश्र्चय किया? ।
संजय ने कहा-महाराज! सावधान होकर सुनिये और सुनकर स्वयं ही पाण्डवों की शक्ति[१] और अपनी पराजय[२] के कारण के विषय में निश्र्चय कीजिये। पाण्डवों में न कोई मन्त्र-का प्रभाव है और न कोई वैसी माया ही वे करते हैं । राजन्! पाण्डव लोग युद्ध में किसी विभीषका का प्रदर्शन नहीं करते। अर्थात् किसी भी प्रकार से भयभीत नहीं होते। वे न्यायपूर्वक युद्ध करते हैं। शक्तिशाली तो वे है ही ।भारत! कुंती के पुत्र जीवन-निर्वाह आदि के सभी कार्य सदा धर्मपूर्वक ही आरम्भ करते हैं। कारण कि वे जगत् में अपना महान् यशा फैलाना चाहते हैं । वे युद्ध से कभी पीछे नहीं हटते हैं। धर्मबल से सम्पन्न होने के कारण ही वे महाबली और उत्तम समृद्धि से युक्त है। जहां धर्म होता है, उसी पक्ष की विजय होती है ।
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