महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 74 श्लोक 22-39
चतुःसप्ततितम (74) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
वहाँ हम सबने सोमदत्त पुत्र भूरिश्रवा का अद्भुत पराक्रम देखा। वह अकेला होने पर भी बहुत से वीरों के साथ निर्भीक सा युद्ध करता रहा। राजन्। उन सद महारथियों ने वह बाणों की वर्षा, करके महाबाहु भूरिश्रवा को चारों ओरसे घेरकर उसे मार डालने की तैयारी की। भरत-वंशी नरेश। उस समय क्रोध में भरे हुए भूरिश्रवा ने उन महारथियों के साथ युद्ध करते हुए ही समर भूमि में उनके धनुष काट डाले। भरतश्रेष्ठ। इनके धनुष कट जाने पर झुकी हुई गाँठवाले बाणों से भूरिश्रवा ने उनके मस्तक भी समरभूमि में काट गिराये। राजन्। वे दसों वीर वज्र के मारे हुए वृक्षों की भाँति रणभूमि में मरकर गिर गड़े। उन महाबली पुत्रों को संग्राम में मारा गया देख वीरवर सात्यकि ने गर्जना करते हुए वहाँ भूरिश्रवा पर आक्रमण किया। वे दोनों महाबली समरागंण में अपने रथ के द्वारादूसरे के रथ को पीड़ा देने लगे। उन्होंने आपस में एक दूसरे के रथ और घोड़ों को नष्ट करदिया। इस प्रकार रथहीन हुए वे दोनों महारथी उछलते-कूदते हुए एक-दूसरे का सामना करने लगे। वे दोनों पुरुषसिंह हाथ में बड़ी-बड़ी तलवारें और सुन्दर ढालें लिये युद्ध के लिये उद्यत होकर बड़ी शोभा पा रहे थे। वे तलवारों की मार से एक दूसरे को अत्यन्त घायल करने लगे। खंग के आघात से पीड़ित हो दोनों ही पृथ्वी पर रक्त बहाने लगे। उनके सारे अंग रक्तरजित हो रहे थे। अतः वे रण दुर्जय महापराक्रमी वीर खिलेहुए दो पलाश-वृक्षों की भाँति अत्यन्त सुशोभित होने लगे। राजन्। तदनन्तर उत्तम खडग धारण करने वाले सात्यकि के पास पहुँचकर भीमसेन ने उस समय तुरंत उन्हें अपने रथ पर बिटा लिया। महाराज। इसी प्रकार आपके पुत्र दुर्योधन ने भी युद्धस्थल में समस्त धनुर्धरों के देखते-देखते भूरिश्रवा को तुरंतअपने रथ पर चढ़ा लिया। भरतश्रेष्ठ। उस समय क्रोध में भरे हुए पाण्डव उस युद्ध में महारथी भीष्म के साथ युद्ध करने लगे। जब सूर्य अस्ताचल के पास पहुँचर लाल होने लगे, उस समय अर्जुन ने बड़ी उतावली के साथ बाण-वर्षा करके पच्चीस हजार महारथियों को मार डाला। वे सब-के-सब दुर्योधन की आज्ञा से अर्जुन का संहार करने के लिये आये थे। परंतु वे उस समय आग में गिरेहुए पतंगों की भाँति उनके पास आते ही नष्ट हो गये। तदनन्तर धनुर्विद्या में प्रवीण मत्स्य और केकय देश के वीर अभिमन्यु आदि पुत्रों से युत्थ महारथी अर्जुन को घेरकर कौरवों से युद्ध केलिये खड़े हो गये । इसी समय सूर्य अस्ताचल को चले गये। तब आपके समस्त सैनिकों पर मोह छा गया। महाराज। तब आपके ताऊ देवव्रत ने संध्या के समय अपनी सेना को पीछे हटा लिया। उनके वाहन बहुत थक गये थे। पाण्डवोंऔर कौरवों के पारस्परिक संघर्ष में दोनों ही सेनाएँ अत्यन्त उद्विग्न हो उठी थीं। अतः वे अपनी-अपनी छावनी को चली गयीं। भारत। तदनन्तर संजयों सहित पाण्डव, और कौरव अपने शिविर में जाकर वहाँ विधिपूर्वक विश्राम करने लगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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