महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 83 श्लोक 20-39

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त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 20-39 का हिन्दी अनुवाद

उन दोनों के छोडे़ हुए महान् वेगशाली सुवर्ण भूषित बाणों ने सूर्य के पथ पर पहुंचकर आकाश को आच्छादित कर दिया । तब इरावान् ने भी रणक्षेत्र में क्रुद्ध होकर उन दोनों महारथी बन्धुओं पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी और उनके सा‍र‍थि को मार गिराया ।सारथि के प्राणशून्य होकर पृथ्‍वी पर गिर जाने के पश्‍चात् उस रथ के घोडे़ घबराकर भागने लगे और इस प्रकार वह रथ सम्पूर्ण दिशाओं में दौड़ने लगा । महाराज! इरावान् नागराज-कन्या उलूपी का पुत्र था। उसने विन्द और अनुविन्द को जीतकर अपने पुरूषार्थ का परिचय देते हुए तुरंत ही आपकी सेना का संहार आरम्भ कर दिया । युद्धक्षेत्र में इरावान् से पीड़ित होकर आपकी विशाल सेना विषपान किये हुए मनुष्‍य की भांति नाना प्रकार से उद्वेग प्रकट करने लगी ।दूसरी ओर राक्षसराज महाबली घटोत्कचने सूर्य के समान तेजस्वी एवं ध्‍वजयुक्त रथ के द्वारा भगदत्त पर आक्रमण किया ।जैसे पूर्वकाल में तारकामय-संग्राम के अवसर पर वज्रधारी इन्द्र ऐरावत नामक हाथी पर आरूढ़ होकर युद्ध के लिये गये थे, उसी प्रकार इस महायुद्ध में प्राग्ज्जयोतिष पुर के स्वामी राजा भगदत्त एक गजराज पर चढ़कर आये थे ।वहां युद्ध देखने के लिये आये हुए देवताओं, गन्धर्वों तथा ॠषियों की भी समझमें यह नही आया कि घटोत्कच और भगदत्त में पराक्रम की दृष्टि से क्या अन्तर है ।जैसे देवराज इन्द्र ने दानवों को भयभीत किया था, उसी प्रकार भगदत्त ने पाण्‍डव-सैनिकों को भयभीत करके भगाना आरम्भ किया ।
भारत! भगदत्त के द्वारा खदेडे़ हुए पाण्‍डव-सैनिक सम्पूर्ण दिशाओं में भागते हुए अपनी सेनाओं में भी कहीं कोई रक्षक नहीं पाते थे । भरतनन्दन! उस समय वहां हम लोगों ने केवल भीमपुत्र घटोत्कच को ही रथ पर स्थिर भाव से बैठा देखा। शेष महारथी खिन्नचित्त होकर वहीं से भाग रहे थे । भारत! जब पाण्‍डवों की सेनाएं पुन: युद्धभूमि में लौट आयीं, तब उस युद्धक्षेत्र में आपकी सेना के भीतर घोर हाहाकार होने लगा ।राजन्! उस समय उस महायुद्ध में घटोत्कचने अपने बाणों द्वारा भगदत्त को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे बादल मेरूपर्वत को ढक लेता हैं ।राक्षस घटोत्कच के धनुष से छूटे हुए उन सभी बाणों को नष्‍ट करके राजा भगदत्त ने रणक्षेत्र में तुरंत ही घटोत्कच के सभी मर्मस्थानों पर प्रहार किया । झुकी हुई गांठ वाले बहुत-से बाणों द्वारा आहत होकर भी विदीर्ण किये जाने वाले पर्वत की भांति राक्षस राज घटोत्कच व्यथित एवं विचलित नहीं हुआ । प्राग्ज्योतिष पुर नरेश ने कुपित हो उस राक्षस पर चौदह तोमर चलाये, परंतु उसने समरभूमि में उन सबको काट दिया ।उन तोमरों को तीखे बाणों से काटकर महाबाहु घटोत्कचने कंकपत्रयुक्त सत्तर बाणों द्वारा भगदत्त को भी घायल कर दिया ।भारत! तब राजा प्राग्ज्योतिष (भगदत्त) ने हंसते हुए-से उस युद्ध में अपने सायकों द्वारा घटोत्कच के चारों घोड़ों-को मार गिराया ।घोड़ों के मारे जाने पर भी उसी रथ पर खडे़ हुए प्रतापी राक्षसराज घटोत्कचने भगदत्त के हाथी पर बडे़ वेग से शक्ति-का प्रहार किया । उस शक्ति में सोने का डंडा लगा हुआ था। वह अत्यन्त वेगशालिनी थी। उसे सहसा आती देख राजा भगदत्त ने उसके तीन टुकडे़ कर डाले। फिर वह पृथ्‍वी पर बिखर गयी ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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