महाभारत वन पर्व अध्याय 121 श्लोक 19-24

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एकविंशत्‍यधि‍कशततम (121) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: एकविंशत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 19-24 का हिन्दी अनुवाद

लोमशजी ने कहा- कुन्‍तीनन्‍दन ! वैदर्य पर्वत का दर्शन करके नर्मदा में उतरने से मनुष्‍य देवताओं तथा पुण्‍यात्‍मा राजाओं के समान पवि‍त्र लोकों को प्राप्‍त कर लेता है । नरश्रेष्‍ठ ! वह वैदर्य पर्वत त्रेता और द्वापर की सन्‍धि‍ में प्रकट हुआ है, इसके नि‍कट जाकर मनुष्‍य सब पापों से मुक्‍त हो जाता है । तात ! यह राजा शर्ताति‍ के यज्ञ का स्‍थान प्रकाशि‍त हो रहा है, जहां साक्षात इन्‍द्र ने अश्‍वि‍नीकुमारों के साथ बैठकर सेाम पान कि‍या था । महाभाग ! यही महातप्‍स्‍वी भृगुनन्‍दन भगवान च्‍यवन देवराज इन्‍द्र पर कुपि‍त हुए थे और उन्‍होने इन्‍द्र को स्‍तम्‍भि‍त भी कर दि‍या था । इतना ही नही, मुनि‍ प्रवर च्‍यवन ने सही अश्‍वि‍नीकुमारों को यज्ञ में सोमपान का अधि‍कारी बनाया था । और इसी स्‍थान पर राजकुमारी सुकन्‍या उन्‍हें पत्‍नी रूप में प्राप्‍त हुई थी । युधि‍ष्‍ठि‍र ने पूछा- मुने ! महातपस्‍वी भृगुपुत्र महर्षि‍ च्‍यवन भगवान इन्‍द्र का स्‍त्‍भन कैसे कि‍या उन्‍हे इन्‍द्र पर क्रोध कि‍स लि‍ये हुआ । तथा ब्रह्मन ! उन्‍होने अश्‍वि‍नीकुमारों को यज्ञ में सामपान का अधि‍कारी कि‍स प्रकार बनाया ये सब बातें आप यथार्थ रूप में मुझे बतावें ।[१]


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशतीर्थ यात्रा के प्रसंग में सुकन्‍योपाख्‍यान वि‍षयक एक सौ इक्‍कीसवां अध्‍याय पुरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1 यूप के उपर का गालाकार काष्‍ठ। 2 यूप- यज्ञ स्‍तम्‍भ। 3 चमस- सोमपान का पात्र 4 बटलोई । 5 पकी पकायी रखने का सामग्री पात्र ।6 वि‍हष्‍य अर्पण करने का उनकरण । 7 घृत आदि‍ की आहूति‍ डालने का सामान

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