महाभारत वन पर्व अध्याय 141 श्लोक 15-28
एकचत्वारिशदधिकशततम (141) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
यदि शत्रु भी शरण में आ जाय तो वह प्रतापी वीर उसके प्रति दयालु हो जाता और उसे निर्भय कर देता है। वह महाबली महामना अर्जुन ही हमलोगों का सहारा है। वही समंरागण में हमारे शत्रुओं को रौंद डालने की शक्ति रखता है। उसी ने हमारे लिये सब प्रकार के रत्न लाकर सुलभ किये थे और वही हम सबको सदा सुख पहूंचाने वाला है । जिसके पराक्रम हमारे पास पहले अनेक प्रकार की असंख्य सत्नराशि संचित हो गयी थी, जिसे सुयोधन ले लिया । वीर भीमसेन ! जिसके बाहुबल से पहले मेरे अधिकार में सम्पूर्ण रत्नों की बनी हुई त्रिभुवन विख्यात सभा थी । जो पराक्रम में भगवान श्रीकृष्ण और युद्ध में कार्तवर्य अर्जुन के समान है तथा जो समरभूमि मे एक हजार भी असख्ंया सा प्रतीत होता है, उस अजेय वीर अर्जुन को मैं बहुत दिनों से नहीं देख पा रहा हूं । भीमसेन ! शत्रुनासक अर्जुन अपने पराक्रम से महाबली बलराम की, तुझ अपराजित वीर की और वसूदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण की समानता कर सकता है । महाबाहो ! जो बाहुबल और प्रभाव में देवराज इन्द्र के समान है, जिसके वेग मे वायु, मुख में चन्द्रमा और क्रोध में समातन मृत्यु निवास है, उसी नरश्रेष्ट अर्जुन को देखने के लिये उत्सुक होकर हम सग लोग आज गन्धमादन पर्वत की घाटियों में प्रवेश करेंगे । गन्धमादन वही है, जहां विशाल बदरी का वृक्ष और भगवान नर नारायण का आश्रम है; उस समय पर्वत पर सदा यक्षगण निवास करते है; हमलोग उसका दर्शन करेगे। इसके सिवा, राक्षसों द्वारा सेवित कुबेर की सुरम्य पुक्ष्करिणी भी है, जहां हमलोग भारी तपस्या करते हुए पैदल ही चलेगें । भरतनन्दन ! वृकोदर ! उस प्रदेश में किसी सवारी से नहीं जाया जा सकता तथा जो क्रुर, लोभी और अशान्त है, ऐसे मनुष्य के लिये श्रद्धा की कमी के कारण उस स्थान पर जाना असम्भव है । भीमसेन ! हम सगब लोग अर्जुन की खोज करते हुए तलवार बांधकर अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित कहो इन महान वत्रधारी ब्राह्मणों के साथ वहां चलेगें । भीमसेन ! जो मन अपने मन ओर इन्द्रियों पर संयम नहीं रखता, ऐसे मनुष्य को वहां जाने पर मक्खी, डांस, मच्छर, सिंह, व्याघ्र और सर्पो का सामना करना पड़ता है, परंतु जो संमय नियम से रहने वाला है, उसे उन जन्तुओं का दर्शन तक नहीं होता । अत: हम लोग भी अर्जुन को देखने की इच्छा से अपने मन को संयम में रखकर स्वल्पाहार करते हुए गन्धमादन की पर्वतमालाओं में प्रवेश करेंगे ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत के वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशजी तीर्थ यात्रा के प्रसंग में गन्धमान प्रवेश विषयक एक सौ इकतालिसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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