महाभारत वन पर्व अध्याय 145 श्लोक 1-16

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पंचचत्‍वारिं‍शदधि‍कशततम (145) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: पंचचत्‍वारिं‍शदधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

घटोत्‍कच और उसके साथि‍यों की सहायता से पाण्‍डवों का गन्‍धमादन पर्वत एवं बदरिकाश्रम में प्रवेश तथा बदरीवृक्ष, नरनारायण श्रम और गंगा का वर्णन

युधि‍ष्‍ठि‍र बोले- अत्‍यनत भयानक पराक्रम दि‍खाने वाले भीम ! तुम्‍हारा औरस पुत्र राक्षस श्रेष्‍ट घटोत्‍कच धर्मज्ञ, बलवान, शूरवीर, सत्‍यवादी तथा हमलोगो का भक्‍त है। यह हमें शीघ्र उठा ले चले। जि‍ससे भीमसेन ! तुम्‍हारे पुत्र घटात्‍कच द्वारा शरीर से कि‍सी प्रकार की क्षति‍ उठाये बि‍ना ही मैं द्रौपदी सहि‍त गन्‍धमादन पर्वत पर पहूंच जाउं । वैशम्‍पायनजी कहते है- राजन ! भाई की इस आज्ञा को शि‍रोधार्य करके नरश्रेष्‍ट भीमसेन ने अपने पुत्र शत्रुसूदन घटोत्‍कच को इस प्रकार आज्ञा दी । भीमसेन बोले- अपराजि‍त और आकाशचारी हि‍डि‍म्‍बा नन्‍दन ! तुम्‍हारी माता द्रौपदी बहुत थक गयी है। तुम बलवान एवं इच्‍दानुसार सर्वत्र जानमें में समर्थ हो; अत: तुम ( आकाशमार्ग से) ले चलो । बेटा ! तुम्‍हारा कल्‍याण हो। इसे कंधे पर बैठकार हम लोगों बीच रहते हुए आकाश मार्ग से इस प्रकार धीरे धीरे ले चलो, जि‍ससे इसे तनि‍क भी कष्‍ट न हो । घटोत्‍कच बोला– अनघ ! मैं अकेला रहूं तो भी धर्मराज युधि‍ष्‍ठि‍र, पुरोहि‍त धौम्‍य, माता द्रौपदी और चाचा नकुल-सहदेव को भी वहन कर सकता हूं; फि‍र आज तो मेरे और भी बहुत से संगी साथी मौजुद है। इस दशा में आप लोगों को ले चलना कौन बड़ी बात हैं। मेरे सि‍वा दूसरे भी सैकड़ो शूरवीर, आकाशचारी और इच्‍छानुसार रूप धारण करने वाले राक्षस मेरे साथ हे। वे ब्राह्मणों सहि‍त आप सब लोगो को एक साथ वहन करेंगे । ऐसा कहकर वीर घटोत्‍कच तो द्रौपदी को लेकर पाण्‍डवों के बीच में चलने लगा और दूसरे राक्षस पाण्‍डवों को भी ( अपने अपने कंधे पर बि‍ठाकर ) ले चले । अनुपम तेजस्‍वी महर्षि‍ लोमश अपने ही प्रभाव से दूसरे सूर्य की भांति‍ सि‍द्धमार्ग अथार्थ आकाश मार्ग से चलने लगे । राक्षसराज घटोत्‍कच की आज्ञा से अन्‍यसब ब्राह्मणों को भी अपने अपने कंधे पर चढ़ाकर वे भयंकर पराक्रमी राक्षस साथ-साथ चलने लगे । इस प्रकार अत्‍यन्‍त रमणीय वन और उपवनों का अवलोकन करते हुए वे सब लोग वि‍शाला बदरी ( बदरीकाश्रम तीर्थ ) की ओर प्रस्‍थि‍त हुए । उन महावेगशाली और तीव्र गति‍ से चलने वाले राक्षसों पर सवार हो वीर पाण्‍डवों ने उस वि‍शाल मार्ग को इतनी शीघ्रता से तय कर लि‍या, मानो वह बहुत छोटा हो । उस यात्रा में उन्‍होंने म्‍लेच्‍छों से भरे हुए बहुत से ऐसे देश देखें, जो नाना प्रकार की रत्‍नों की खानों से युक्‍त थे। वहां उन्‍हे नाना प्रकार के धातुओें से व्‍याप्‍त कि‍तने ही शाखापर्वत द्दष्‍टि‍गोचर हुए। उन पर्वतीय शि‍खरों पर बहुत-से विद्याधर, वानर, कि‍न्‍नर, कि‍म्‍पुरूष और गन्‍धर्व चारों ओर नि‍वास करते थे । मार, चमरी, गाय, बंदर, रूरूमृग, सूअर, गवय[१] और भैस आदि‍ पशु वहां वि‍चर रहे थे । वहां सब ओर बहुत-सी नदि‍यां बह रही थीं। अनेक प्रकार- के असंख्‍य पक्षी वि‍चर रहे थे। वह स्‍थान नाना प्रकार के मृगों से सेवि‍त और वानरों से सुशोभि‍त था ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गौ के समान एक प्रकार का जंगली पशु, जि‍सके गल कंबल नहीं होता।

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