महाभारत वन पर्व अध्याय 28 श्लोक 21-36

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अष्‍टविंश (28) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्‍टविंश अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवाद

जो उपकारी मनुष्यों और चोरों के साथ भी उत्तेजनायुक्त बर्ताव ही करता है, उससे सब उसी प्रकार उद्विग्न होते हैं, जैसे घर में रहने वाले सर्प से। जिससे सब लोग उद्विग्न होते हैं, उसे ऐश्वर्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है? उसका थोड़ा-सा भी छिद्र देखकर लोग निश्चय ही उसकी बुराई करने लगते हैं। इसलिये न तो सदा उत्तेजना ही प्रयोग करें और न सर्वदा कोमल ही बने रहें। समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार कभी कोमल और कभी तेज स्वभाव वाला बन जायें। जो मौका देखकर कोमल होता है और उपयुक्त अवसर आने पर भयंकर भी बन जाता है, वही इस लोक और परलोक में सुख पाता है। अब मैं तुम्हें क्षमा के योग्य अवसर बताता हूं, उन्हें विस्तारपूर्वक सुनो, जैसा कि मनीषी पुरुष कहते हैं, उन अवसरों का तुम्हें भी त्याग नहीं करना चाहिये। जिसने भी तुम्हारा पहले उपकार किया हो, उससे यदि कोई भारी अपराध हो जाये, तो भी पहले के उपकार का स्मरण करके उस अपराधी के अपराध को तुम्हें क्षमा कर देना चाहिये। जिन्होंने अनजाने में अपराध कर डाला हो, उनका वह अपराध क्षमा के ही योग्य है; क्योंकि किसी भी पुरुष के लिये सर्वत्र विद्वता ( बुद्धिमानी ) ही सुलभ हो, यह सम्भव नहीं है। परंतु जो जान-बूझकर किये हुए अपराध को भी उसे कर लेने के बाद अनजाने में किया हुआ बताते हों, उन उद्दण्ड पापियों को थोड़े-से अपराध के लिये भी अवश्य दण्ड देना चाहिये।सभी प्राणियों का एक अपराध तो तुम्हें क्षमा ही कर देना चाहिये। यदि उससे फिर दुबारा अपराध बन जाये तो थोड़े-से अपराध के लिये भी उसे दण्ड देना आवश्यक है। अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करने पर यदि यह सिद्ध हो जाये कि अमुक अपराध अनजाने में ही हो गया है, तो उसे क्षमा के ही योग्य बताया गया है। मनुष्य कोमल भाव ( सामनीति ) के द्वारा उग्र स्वभाव तथा शान्त स्वभाव के शत्रु का भी नाश कर देता है; मृदुता से कुछ भी असाध्य नहीं है। अतः मृदुतापूर्ण नीति को तीव्रतर ( उत्तम ) समझें। देश, काल तथा अपने बल का विचार करके ही मृदुता ( सामनीति ) का प्रयोग करना चाहिये। अयोग्य देश अथवा अनुपयुक्त काल में उसके प्रयोग से कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता, अतः उपयुक्त देशकाल की प्रतीक्षा करनी चाहिये। कहीं लोक के भय से भी अपराधी को क्षमा देने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार क्षमा के अवसर बताये गये हैं। इनके विपरीत बर्ताव करने वालों को राह पर लाने के लिये तेज ( उत्तेजनापूर्ण बर्ताव ) का अवसर कहा गया है।

( द्रौपदी कहती है- )-नरेश्वर ! धृतराष्ट्र के पुत्र लोभी तथा सदा आपका अपकार करने वाले हैं; अतः उनके प्रति आपके तेज के प्रयोग का यह अवसर आया है, ऐसा मेरा मत है। कौरवों के प्रति क्षमा का कोई अवसर नहीं है। अब आपको तेज प्रकट करने का अवसर प्राप्त है; अतः उन पर आपको अपने तेज का ही प्रयोग करना चाहिये। कोमलतापूर्ण बर्ताव करने वाले की सब लोग अवहेलना करते हैं और तीक्ष्ण स्वभाव वाले पुरुष से सबको उद्वेग प्राप्त होता है। जो उचित अवसर आने पर इन दोनों का प्रयोग करना जानता है, वही सफल भूपाल होता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में द्रौपदीवाक्यविषयक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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