महाभारत शल्य पर्व अध्याय 35 श्लोक 62-83
पन्चत्रिंश (35) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
यक्ष्मा से शरीर ग्रस्त हो जाने के कारण चन्द्रमा प्रतिदिन क्षीण होने लगे। राजन् ! उस यक्ष्मा से छूटने के लिये उन्होंने बड़ा यत्न किया । महाराज ! नाना प्रकार के यज्ञ-यागों का अनुष्ठान करके भी चन्द्रमा उस शाप से मुक्त न हो सके और धीरे-धीरे क्षीण होते चले गये । चन्द्रमा के क्षीण होने से अन्न आदि ओषधियां उत्पन्न नहीं होती थीं। उन सब के स्वाद, रस और प्रभाव नष्ट हो गये । ओषधियों के क्षीण होने से समस्त प्राणियों का भी क्षय होने लगा। इस प्रकार चन्द्रमा के क्षय के साथ-साथ सारी प्रजा अत्यन्त दुर्बल हो गयी । पृथ्वीनाथ ! उस समय देवताओं ने चन्द्रमा से मिल कर पूछा-‘आपका रूप ऐसा कैसे हो गया ? यह प्रकाशित क्यों नहीं होता है ? हम लोगों से सारा कारण बताइये, जिससे आप को महान् भय प्राप्त हुआ। आपकी बात सुनकर हम लोग इस संकट के निवारण का कोई उपाय करेंगे’ । उनके इस प्रकार पूछने पर चन्द्रमा ने उन सब को उत्तर देते हुए अपने को प्राप्त हुए शाप के कारण राजयक्ष्मा की उत्पत्ति बतलायी । उनका वचन सुनकर देवता दक्ष के पास जाकर बोले-‘भगवन् ! आप चन्द्रमा पर प्रसन्न होइये और यह शाप हटा लीजिये । ‘चन्द्रमा क्षीण हो चुके हैं और उनका कुछ ही अंश शेष दिखायी देता है। देवेश्वर ! उनके क्षय से लता, वीरुत्, ओषधियां भांति-भांति के बीज और सम्पूर्ण प्रजा भी क्षीण हो गयी है । ‘उन सब के क्षीण होने पर हमारा भी क्षय हो जायगा। फिर हमारे बिना संसार कैसे रह सकता है ? लोकगुरो ! ऐसा जानकर आपको चन्द्रदेव पर अवश्य कृपा करनी चाहिये’। उनके ऐसा कहने पर प्रजापति दक्ष देवताओं से इस प्रकार बोले-‘महाभाग देवगण ! मेरी बात पलटी नहीं जा सकती। किसी विशेष कारण से वह स्वतः निवृत्त हो जायगी । ‘यदि चन्द्रमा अपनी सभी पत्नियों के प्रति सदा समान बर्ताव करें और सरस्वती के श्रेष्ठ तीर्थ में गोता लगायें तो वे पुनः बढ़कर पुष्ट हो जायेंगे। देवताओ ! मेरी यह बात अवश्य सच होगी । ‘सोम आधे मास तक प्रतिदिन क्षीण होंगे और आधे मास तक निरन्तर बढ़ते रहेंगे। मेरी यह बात अवश्य सत्य होगी। ‘पश्चिमी समुद्र के तट पर जहां सरस्वती और समुद्र का संगम हुआ है, वहां जाकर चन्द्रमा देवेश्वर महादेवजी की आराधना करें तो पुनः ये अपनी कान्ति प्राप्त कर लेंगे’ । ऋषि ( दक्ष प्रजापति ) के इस आदेश से सोम सरस्वती के प्रथम तीर्थ प्रभास क्षेत्र में गये । महातेजस्वी महाकान्तिमान् चनद्रमा ने अमावास्या को उस तीर्थ में गोता लगाया। इससे उन्हें शीतल किरणें प्राप्त हुई और वे सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करने लगे ।
राजेन्द्र ! फिर सम्पूर्ण देवता सोम के साथ महान् प्रकाश प्राप्त करके पुनः दक्ष प्रजापति के सामने उपस्थित हुए । तब भगवान प्रजापति ने समस्त देवताओं को विदा कर दिया और सोम से पुनः प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘बेटा ! अपनी स्त्रियों तथा ब्राह्मणों की कभी अवहेलना न करना। जाओ, सदा सावधान रहकर मेरी आज्ञा का पालन करते रहो’ । महाराज ! ऐसा कहकर प्रजापति ने उन्हें विदा कर दिया। चन्द्रमा अपने स्थान को चले गये और सारी प्रजा पूर्ववत् प्रसन्न रहने लगी ।
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