महाभारत शल्य पर्व अध्याय 53 श्लोक 22-26

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त्रिपन्चाशत्तम (53) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: त्रिपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 22-26 का हिन्दी अनुवाद

‘कुरुक्षेत्र से वायु द्वारा उड़ायी हुई धूलियां भी यदि ऊपर पड़ जायं तो वे पापी मनुष्य को भी परम पद की प्राप्ति कराती हैं । ‘श्रेष्ठ देवताओं ! यहां ब्राह्मणशिरोमणि तथा नृग आदि मुख्य-मुख्य पुरुषसिंह नरेश महान् यज्ञों का अनुष्ठान करके देहत्याग के पश्चात् उत्तम गति को प्राप्त हुए हैं । ‘तरन्तुक, अरन्तुक, रामहंद ( परशुराम कुण्ड ) तथा मचक्रुक-इनके बीच का जो भूभाग है, यही समन्तपन्चक एवं कुरुक्षेत्र है। इसे प्रजापति की उत्तर वेदी कहते हैं । ‘यह महान् पुण्यप्रद, कल्याणकारी, देवताओं का प्रिय एवं सर्वगुणसम्पन्न तीर्थ है। अतः यहां रणभूमि में मारे गये सम्पूर्ण नरेश सदा पुण्यमयी अक्षय गति प्राप्त करेंगे’ । ब्रह्मा आदि देवताओं सहित साक्षात् इन्द्र ने ऐसी बातें कही थीं तथा ब्रह्मा, विष्णु और महादेवजी ने इन सारी बातों का अनुमोदन किया था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा और सारस्वतोपाख्यान के प्रसंग में कुरुक्षेत्र की महिमा का वर्णन विषयक तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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