महाभारत शल्य पर्व अध्याय 61 श्लोक 19-37

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एकषष्टितमअध्यायः (61) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: एकषष्टितमअध्यायःअध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद

यह निर्लज पापी तो उसी समय मर चुका था जब लोभ में फंसा और पापियों को अपना सहायक बनाकर सुहृदयों के शासन से दूर रहने लगा । विदुर, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, भीष्म तथा सृंजयों के बारंबार प्रार्थना करने पर भी इसने पाण्डवों को उनका पैतृक भाग नहीं दिया । यह नराधम अब किसी योग्य नहीं है। न यह किसी का मित्र है ओर न शत्रु। राजाओं ! यह तो सूखे काठ के समान कठोर है। इसे कटुवचनों द्वारा अधिक झुकाने की चेष्ठा करने से क्या लाभ ? अब शीघ्र अपने रथों पर बैठो। हम सब लोग छावनी की ओर चलें। सौभाग्य से यह पापात्मा अपने मन्त्री, कुटुम्ब और भाई-बन्धुओं सहित मार डाला गया । प्रजानाथ! श्रीकृष्ण के मुख से यह आक्षेपयुक्त वचन सुन राजा दुर्योधन अमर्ष के वशीभूत होकर उठा और दोनों हाथ पृथ्वी पर टेककर चूतड़ के सहारे बैठ गया । तत्पश्चात उसने श्रीकृष्ण की ओर भौंहे टेढी करके देखा, उसका आधा शरीर उठा हुआ था। उस समय राजा दुर्योधन का रूप उस कुपित विषधर के समान जान पड़ता था, जो पूंछ कट जाने के कारण अपने आधे शरीर को ही उठाकर देख रहा हो । उसे प्राणों का अन्त कर देने वाली भयंकर वेदना हो रही थी, तो भी उसकी चिन्ता न करते हुए दुर्योधन ने अपने कठोर वचनों द्वारा वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को पीड़ा देना प्रारम्भ किया- । ओ कंस के दत्तक बेटे! मैं जा गदायुद्ध में अधर्म से मारा गया हूं, इस कुकृत्य के कारण क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती है ? । भीमसेन को मेरी जांघें तोड़ डालने का मिथ्या स्मरण दिलाते हुए तुमने अर्जुन से जो कुछ कहा था, क्या वह मुझे ज्ञात नहीं है ? । सरता से धर्मानुकूल युद्ध करने वाले सहस्त्रों भूमिपालों को बहुत-से कुटिल उपायें द्वारा मरवाकर न तुम्हें लज्जा आती है और न इस बुरे कर्म से घृणा ही होती है । जो प्रतिदिन शूरवीरों का भारी संहार मचा रहे थे, उन पितामह भीष्म का तुमने शिखण्डी को आगे रखकर वध कराया । दुर्मते! अश्वत्थामा के सदृश नाम वाले एक हाथी को मारकर तुम लोगों ने द्रोणाचार्य के हाथ से शस्त्र नीचे डलवा दिया था, क्या वह मुझे ज्ञात नहीं है ? । इस नृशंस धृष्‍टद्युम्न ने पराक्रमी आचार्य को उस अवस्था में मार गिराया, जिसे तुमने अपनी आंखों देखा; किंतु मना नहीं किया । पाण्डूपुत्र अर्जुन के वध के लिये मांगी हुई इन्द्र की शक्ति को तुमने घटोत्कच पर छुडवा दिया। तुमसे बढकर महापापी कौन हो सकता है ? । बलवान भूरिश्रवा का हाथ कट गया था और वे आमरण अनशन का व्रत लेकर बैठे हुए थे। उस दशा में तुमसे ही प्रेरित होकर महामना सान्यकि ने उनका वध किया । मनुष्यों में अग्रगण्य कर्ण अर्जुन को जीतने की इच्‍छा से उत्तम पराक्रम कर रहा था। उस समय नागराज अश्वसेन को जो कर्ण के बाण के साथ अर्जुन के वध के लिये जा रहा था, तुमने अपने प्रयत्न से विफल कर दिया। फिर जब कर्ण के रथ का पहिया गड्डे में गिर गया और वह उसे उठाने में व्यक्रतापूर्वक संलग्न हुआ, उस समय उसे संकट पीड़ित एवं पराजित जानकर तुम लोगों ने मार गिराया । यदि मेरे, कर्ण के तथा भीष्म और द्रोणाचार्य के साथ मायारहित सरल भाव से तुम युद्ध करते तो निश्चय ही तुम्हारे पक्ष की विजय नहीं होती ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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