महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 29 श्लोक 20-36
एकोनत्रिंश (29) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
’उन्होंने देवराज इन्द्र से स्पर्धा रखने के कारण अपने यज्ञ वैभव द्वारा उन्हें पराजि कर दिया था। इन्द्र का प्रिय चाहने वाले बृहस्पति जी ने जब उनका यज्ञ कराने से इन्कार कर दिया, तब उन्होंने छोटे-भाई संवर्त ने मरूत्तका यज्ञ कराया था। नृपश्रेष्ठ! राजा मरुत्त जब इस पृथ्वी का शासन करते थे, उस समय यह बिना जोते-बोये ही अन्न पैदा करती थी और समस्त भूमण्डल में देवालयों की माला-सी दृष्टिगोचर होती थी, जिससे इस पृथ्वी की बड़ी शोभा होती थी। ’महामना मरुत्त के यज्ञ में विश्वे देवगण सभासद थे और मरूइन्द्र तथा साध्यगण रसोई परोसने का काम करते थे। ’मरुद्रोण ने मरुत्त के यज्ञ में उस समय खूब सोमरस का पान किया था। राजा ने जो दक्षिणाएँ दी थीं, वे देवताओें मनुष्यों और गन्धर्वों के सभी यज्ञों से बढकर थी। ’सृजय! धर्म, ज्ञान, वैराग्य तथा ऐश्वर्य - इन चारों बातों में राजा मरुत्त तुम से बढ़-चढ़कर थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। जब वे भी मर गये, तब औरों की क्या बात है? अतः तुम अपने पुत्र के लिये शोक न करो। ’सृजय! अतिथिसक्तकार के प्रेमी राजा सुहोत्र भी जीवित नहीं रहे, ऐसा सुनने में आया है। उनके राज्य में इन्द्र ने एक वर्ष तक सोने की वर्षा की थी। ’राजा सुहात्र को पाकर पृथ्वी का वसुमती नाम सार्थक हो गया था। जिस समय वे जनपद के स्वामी थे, उन दिनों वहाँ की नदियाँ अपने जल के साथ-साथ सुवर्ण बहाया करती थीं। ’राजन्! लोकपूजित इन्द्र ने सोने के बने हुए बहुत से कछुए, केकड़े,नाके, मगर, सूँस और मत्स्य उन नदियों में गिराये थे। ’उन नदियों में सैकड़ों और हजारों की संख्या में सुवर्णमय मत्स्यों, ग्रहों और कछुओं को गिराया गया देख अतिथि प्रिय राजा सुहोत्र आश्चर्य चकित हो उठे थे। ’ वह अनन्त सुवर्ण राशि कुरूजांगल देश में छा गयी थी। राजा सुहोत्र न वहाँ यज्ञ किया और उसमें वह सारी धनराशि ब्राह्मणों में बाँट दी। ’श्वेतपुत्र सृजंय! वे धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य -इन चारों कल्याणकारी गुणों में तुमसे बढ़-चढ़कर थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। जब वे भी मर गये, तब दूसरों क्या बात है? अतः तुम अपने पुत्र के लिये शोक न करो। उसने न तो कोई यज्ञ किया था और न दक्षिणा ही बाटी थी, अतः उसके लिये शोक न करो, शान्त हो जाओ। ’सृजय! अंगद देश के राजा बृहद्रथ की भी मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने सुना है। उन्होनें यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ में दस लाख श्वेत घोड़े और सोने के आभूषणों से भूषित दस लाख कन्याएँ दक्षिणा रूप में बाँटी थीं। ’इसी प्रकार यजमान बृहद्रथ ने उस विस्तृत यज्ञ में सुवर्ण मय कमलों की मालाओं से अलगंकृत दस लाख हाथी भी दक्षिणा में बाँटे थे। ’उन्होंने उस यज्ञ में एक करोड़ सुवर्ण मालाधारी गाय, बैल और उनके सहस्त्रों सेवक दक्षिणा रूप में दिये।यजमान अंग जब विष्णु पद पर्वत पर यज्ञ कर रहे थे, उस समय इन्द्र वहाँ सोमरस पीकर मतवाले हो उठे थे और दक्षिणाओं से ब्राह्मणों पर आनन्दोन्माद छा गया था। ’राजेन्द्र! प्राचीन काल में अंगराज ने ऐसे-ऐसे सौ यज्ञ किये थे और उन सब में जो दक्षिणाएँ दी गयी थीं, वे देवताओं, गन्धवों और मनुष्यों के यज्ञों से बढ़ गयी थीं।
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