महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 47 श्लोक 50-51

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सप्तचत्वारिंश(47) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 50-51 का हिन्दी अनुवाद

विश्वेदेव, मरुद्गण, रुद्र, इन्द्र, आदित्य, अश्विनिीकुमार, वसु, सिद्ध और साध्य - ये सब जिनकी विभूतियाँ हैं, उन देवस्वरूप परमात्मा को नमस्कार है।। अव्यक्त प्रकृति, बुद्धि ( महत्तत्त्व ), अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ, तन्मात्राएँ और उनका कार्य - वे सब तिनके ही स्वरूप हैं, उन तत्त्वमय परमात्मा को नमस्कार है।। जो भूत, वर्तमान और भविष्य - काल रूप हैं, जो भूत आदि की उत्पत्ति और प्रलय के कारण हैं, जिन्हें सम्पूर्ण प्राणियों का अग्रज बताया गया है, उन भूतात्मा परमेश्वर को नमस्कार है।। सूक्ष्म तत्त्व को जानने वाले ज्ञानी पुरुष जिस परम सूक्ष्म तत्त्व का अनुसंधान करते रहते हैं, जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है, वह ब्रह्म जिनका स्वरूप हैं, उन सूक्ष्मात्मा को नमस्कार है।। जिन्होंने मत्स्य शरीर धारण करके रसातल में जाकर नष्ट हुए सम्पूर्ण वेदों को ब्रह्माजी के लिये शीघ्र ला दिया था, उन मत्स्य रूपधारी भगवान् श्रीकृष्ण को नमस्कार है।। जिनहोंने अमृत के लिये समुद्र मन्थन के समय अपनी पीठ पर मछराचल पर्वत को धारण किया था, उन अत्यन्त कठोर देहधारी कच्छपरूप भगवान् श्रीकृष्ण् को नमस्कार है। जिनहोंने वाराहरूप धारण करके अपने एक दाँत से वन और पर्वतों सहित समूची पृथ्वी का उद्धार किया था, उन वाराहरूपधारी भगवान् को नमस्कार है।। जिन्होंने नृसिंहरूप धारण करके सम्पूर्ण जगत् के लिये भयंकर हिरण्यकशिपु नामक राक्षस का वध किया था, उन नृसिंहस्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है।। जिन्होंने वामनरूप धारण करके माया द्वारा बलि को बाँधकर सारी त्रिलोकी को अपने पैरों से नाप लिया था, उन क्रान्तिकारी वामनस्पधारी श्रीकृष्ण को प्रणाम है।। जिनहोंने शास्त्रधारियों में श्रेष्ठ जमदग्निपुत्र परशुराम का रूप धारण करके इस पृथ्वी को क्षत्रियों से हीन कर दिया, उन परशुराम स्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है।। जिन्होंने अकेले की धर्म के प्रति गौरव का उल्लंघन करने वाले क्षत्रियों का युद्ध में इक्कीस बार संहार किया, उन क्रोधात्मा परशुराम को नमस्कार है। जिनहोंने दशरथनन्दन श्रीराम का रूप धारण करके श्ुद्ध में पुलत्स्य कुलनन्दन रावण का वध किया था, उन क्षत्रियात्मा श्रीराम स्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है। जो सदा हल, मूसल धारण किये अद्भुत शोभा से सम्पन्न हो रहे हैं, जिनके श्रीअंगों पर नील वस्त्र शोभा पाता है, उन शेषावतार रोहिणीनन्दन राम को नमस्कार है। जो शंख, चक्र, शारंग धनुष, पीताम्बर और वनमाला धारण करते हैं, उन श्रीकृष्ण स्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है।। जो कंस वध के लिये वसुदेव के शोभाशाली पुत्र के रूप में प्रकट हुए और नन्द के गोकुल में भाँति-भाँति की लीलाएँ करते रहे, उन लीलामय श्रीकृष्ण को नमस्कार है।
जिन्होंने यदुवंश में प्रकट हो वासुदेव के रूप में आकर पृथ्वी का भार उतारा है, उन श्रीकृष्णात्मा श्रीहरि को नमस्कार है।। जिन्होंने अर्जुन का सारथित्व करते समय तीनों लोकों के उपकार के लिये गीता-ज्ञानमय अमृत प्रदान किया था, उन ब्रह्मात्मा श्रीकृष्ण को नमस्कार है।। जो सृष्टि की रक्षा के लिये दानवों को अपने अधीन करके पुनः बुद्धभाव को प्राप्त हो गये, उन बुद्धस्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है।। जो कहलयुग आने पर घोड़े पर सवार हो धर्म की स्थापना के लिये म्लेच्छों का वध करेंगे, उन कल्किरूप श्रीहरि को नमस्कार है।। जिन्होंने तारामय संग्राम में दानवराज कालनेमि का वध करके देवराज इन्द्र को सारा राज्य दे दिया था, उन मुख्यात्मा श्रीहरि को नमस्कार है।। जो समसत प्राणियों के शरीर में साक्षी रूप से स्थित हैं तथा सम्पूर्ण क्षर ( नाशवान् ) भूतों में अक्षर ( अविनाशी ) स्वरूप से विराजमान हैं, उन साक्षी परमातमा को नमस्कार है।। महादेव ! आपको नमस्कार है। भक्तवत्सल ! आपको नमस्कार है। सुब्रह्मण्य ( विष्णु ) ! आपको नमस्कार है। परमेश्वर ! आप मुझपर प्रसन्न हों। प्रभो ! आपने अव्यक्त और व्यक्त रूप से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त कर रखा है।। मैं सहस्त्रों नेत्र धारण करने वाले, सब ओर मुख वाले हिरण्यनाभ, यज्ञांग स्वरूप, अमृतमय, सब ओर मुख वाले और कमलनयन पुरुषोत्तम श्रीनारायणदेव की शरण लेता हूँ।। जिनके हृदय में मंगलभवन देवेश्वर श्रीहरि विराजमान हैं, उनका सभी कार्यों में सदा मंगल ही होता है - कभी किसी भी कार्य में अमंगल नहीं होता।। भगवान् विष्णु मंगलमय हैं, मधुसूदन मंगलमय हैं कमलनयन मंगलमय हैं और गरुड़ध्वज मंगलमय हैं।। जिनका सारा व्यवहार केवल धर्म के ही लिये है, उन वश में की हुई इन्द्रियों के द्वारा जो मोक्ष के साधनभूत वैदिक उपायों से काम लेकर सेतों की धर्म-मर्यादा का प्रयास करते हैं, उन सत्यस्वरूप परमात्मा को नमस्कार है।जो भिन्न-भिन्न धर्मों का आचरण करके अलग-अलग उनके फलों की इच्छा रखते हैं, ऐसे पुरुष पृथक् धर्मों के द्वारा जिनकी पूजा करते हैं, उन धर्मस्वरूप भगवान् को प्रणाम है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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